अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी ने डोनाल्ड ट्रंप के पेरिस समझौता से हटने के फैसले की आलोचना की है.
वाशिंगटन:
अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री जॉन केरी ने पर्यावरण संरक्षण पर पेरिस समझौते से अमेरिका को बाहर करने के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निर्णय की आलोचना की है और राष्ट्रपति द्वारा अलग समझौते के लिए नए सिरे से बातचीत करने के दावे का मजाक उड़ाया है. एनबीसी न्यूज को रविवार को दिए एक साक्षात्कार में केरी ने कहा, "जब डोनाल्ड ट्रंप कहते हैं, 'अच्छा, हम एक अच्छे समझौते के लिए बातचीत करने जा रहे हैं', तब क्या आपको लगता है कि वह बाहर जाकर एक अच्छा समझौता खोजेंगे? जैसे कि ओजे सिंपसन (अपनी पत्नी की हत्या के आरोपी पूर्व फुटबाल खिलाड़ी) कह रहे हों कि वह बाहर जा रहे हैं और वास्तविक हत्यारे की तलाश करेंगे."
पूर्व विदेश मंत्री ने कहा, "सभी जानते हैं कि वह (ट्रंप) ऐसा नहीं करने जा रहे हैं क्योंकि वह इसमें विश्वास नहीं करते हैं." उन्होंने कहा, "यदि उनका इसमें विश्वास होता तो वह पेरिस समझौते से बाहर आते ही नहीं. अमेरिका ने इस मुद्दे पर एकतरफा रूप से विश्व का नेतृत्व त्याग दिया है, जबकि खुद रिपब्लिकन पार्टी के शासनकाल में राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश ने भी इसी दिशा में कार्य किया था."
एक जून को राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान किए गए वादे को पूरा करते हुए अपने बहुप्रतीक्षित निर्णय में पेरिस जलवायु समझौते से हटने की घोषणा की थी. पेरिस समझौते का उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन में कमी करना है जो जलवायु परिवर्तन में बड़ा योगदान देता है.
एनबीसी न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा प्रशासन ने कहा था कि अमेरिका 196 देशों द्वारा हस्ताक्षरित इस समझौते को स्वीकार करेगा. ट्रंप ने इसे उलट दिया है.
केरी ने मौजूद विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन का जिक्र किया जिन्होंने भी पेरिस समझौते से अमेरिका के अलग होने का विरोध किया था. केरी ने पूछा, "मैं जानना चाहता हूं कि डोनाल्ड ट्रंप वह कौन सी बात जानते हैं जो एक्सान मोबाइल के पूर्व सीईओ रेक्स टिलरसन नहीं जानते?"
पेरिस समझौते से अमेरिका को निकालने के लिए जोर लगाने वाले पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) के प्रमुख स्कॉट प्रुइट ने रविवार को एक बार फिर दृढ़ता के साथ राष्ट्रपति के निर्णय का बचाव किया. उन्होंने अपने दावे को दोहराया कि विश्व भर के अनेक देशों ने अमेरिका के निर्णय की 'प्रशंसा' इसीलिए की थी क्योंकि समझौते पर हमारे हस्ताक्षर ने हमें 'आर्थिक रूप से पीछे डाल दिया था.'
प्रुइट ने पूछा था, "चीन और भारत को 2030 तक कोई भी कदम क्यों नहीं उठाना है?" एनबीसी के अनुसार प्रुइट का कहना है "क्यों भारत ने अपने सीओ-टू (कार्बन डाईऑक्साइड) को 2.5 ट्रिलियन डॉलर की सहायता मिलने पर ही कम किया? हम कदम उठाने जा रहे हैं, हम हमारी लागतों को कम करने जा रहे हैं जबकि बाकी का विश्व सीओ-टू को कम करने का इंतजार करेगा!! यही कारण है कि इसने हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक आर्थिक नुकसान में रख दिया."
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
पूर्व विदेश मंत्री ने कहा, "सभी जानते हैं कि वह (ट्रंप) ऐसा नहीं करने जा रहे हैं क्योंकि वह इसमें विश्वास नहीं करते हैं." उन्होंने कहा, "यदि उनका इसमें विश्वास होता तो वह पेरिस समझौते से बाहर आते ही नहीं. अमेरिका ने इस मुद्दे पर एकतरफा रूप से विश्व का नेतृत्व त्याग दिया है, जबकि खुद रिपब्लिकन पार्टी के शासनकाल में राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश ने भी इसी दिशा में कार्य किया था."
एक जून को राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान के दौरान किए गए वादे को पूरा करते हुए अपने बहुप्रतीक्षित निर्णय में पेरिस जलवायु समझौते से हटने की घोषणा की थी. पेरिस समझौते का उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन में कमी करना है जो जलवायु परिवर्तन में बड़ा योगदान देता है.
एनबीसी न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्ष पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा प्रशासन ने कहा था कि अमेरिका 196 देशों द्वारा हस्ताक्षरित इस समझौते को स्वीकार करेगा. ट्रंप ने इसे उलट दिया है.
केरी ने मौजूद विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन का जिक्र किया जिन्होंने भी पेरिस समझौते से अमेरिका के अलग होने का विरोध किया था. केरी ने पूछा, "मैं जानना चाहता हूं कि डोनाल्ड ट्रंप वह कौन सी बात जानते हैं जो एक्सान मोबाइल के पूर्व सीईओ रेक्स टिलरसन नहीं जानते?"
पेरिस समझौते से अमेरिका को निकालने के लिए जोर लगाने वाले पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) के प्रमुख स्कॉट प्रुइट ने रविवार को एक बार फिर दृढ़ता के साथ राष्ट्रपति के निर्णय का बचाव किया. उन्होंने अपने दावे को दोहराया कि विश्व भर के अनेक देशों ने अमेरिका के निर्णय की 'प्रशंसा' इसीलिए की थी क्योंकि समझौते पर हमारे हस्ताक्षर ने हमें 'आर्थिक रूप से पीछे डाल दिया था.'
प्रुइट ने पूछा था, "चीन और भारत को 2030 तक कोई भी कदम क्यों नहीं उठाना है?" एनबीसी के अनुसार प्रुइट का कहना है "क्यों भारत ने अपने सीओ-टू (कार्बन डाईऑक्साइड) को 2.5 ट्रिलियन डॉलर की सहायता मिलने पर ही कम किया? हम कदम उठाने जा रहे हैं, हम हमारी लागतों को कम करने जा रहे हैं जबकि बाकी का विश्व सीओ-टू को कम करने का इंतजार करेगा!! यही कारण है कि इसने हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक आर्थिक नुकसान में रख दिया."
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं