
सांप को मारने जाओ तो एक हाथ में डंडा रखो और दूसरे हाथ में बीन. जब जरूरत पड़े तो सांप नाचे भी और जब हद से आगे बढ़े तो मार दिया जाए. कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को निशाने पर ले लिया है. इस्लाबाद को यह डर सता रहा है कि न जाने कब भारत बॉर्डर पर अपनी सैन्य कार्रवाई शुरू कर दे. ऐसी स्थिति में भारत डिप्लोमैसी की किताब से सबसे स्मार्ट सामरिक स्ट्रैटजी निकाल रहा है और उसे अमल में ला रहा है. भारत सरकार की नजर पाकिस्तान के दूसरे छोर पर मौजूद अफगानिस्तान पर है. नई दिल्ली ने पहलगाम हमले में इस्लामाबाद के कनेक्शन को उजागर करने के लिए खुद काबुल से संपर्क किया है.
विदेश मंत्रालय के पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान (PAI) डिवीजन में ज्वाइंट सेक्रेटरी आनंद प्रकाश ने 27 अप्रैल को काबुल में अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी अमीर खान मुत्ताकी से मुलाकात की और राजनीतिक संबंधों और क्षेत्रीय विकास पर चर्चा की. भारतीय दूत के काबूल पहुंचने से पहले ही तालिबान शासन ने 26 लोगों की जान लेने वाले इस जघन्य हमले की निंदा कर दी थी और भारत से कहा है कि वह इसके अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे. भारत के तालिबान तक पहुंचने के इस दांव से पाकिस्तानी सेना के जनरलों की पेशानी पर बल आ रहा होगा.
د هند جمهوریت بهرنیو چارو وزارت خاص استازي او د افغانستان، ایران او پاکستان د څانګې عمومي رئیس آنند پرکاش د افغانستان اسلامي امارت بهرنیو چارو وزیر مولوي امیرخان متقي سره وکتل.
— Hafiz Zia Ahmad (@HafizZiaAhmad) April 27, 2025
دې ناسته کې د دواړو هیوادونو تر منځ پر دوه اړخیزو سیاسي اړیکو، سوداګرۍ، ټرانزیټ او وروستیو... pic.twitter.com/1UWdxNyHHO
तालिबान की वापसी और पाकिस्तान से बढ़ी उसकी तकरार
2021 में अमेरिकी सेना के लौटने के साथ एक बार फिर अफगानिस्तान में तालिबान का शासन हो गया. इसके बाद पाकिस्तान को लगा था कि पड़ोसी अच्छा मिल गया. उस समय के पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान ने तो तालिबान की सत्ता में वापसी की तुलना अफगानों द्वारा "गुलामी की बेड़ियां तोड़ने" से की थी. लेकिन यह हनीमून पीरियड ज्यादा दिनों तक चला नहीं. रिश्ते तालिबान शासन के साथ तल्ख दिखने लगे.
TTP और अफगान तालिबान ने सालों से सहजीवी संबंध बनाए हैं यानी एक दूसरे का साथ देते रहे हैं. इसकी संभावना नहीं है कि अफगानिस्तान के बॉर्डर इलाकों में मौजूद TTP के लड़ाकों के खिलाफ कार्रवाई की किसी पाकिस्तानी मांग को तालिबान स्वीकार करेगा. इसकी वजह है कि इस तरह की कार्रवाई से TTP के साथ तालिबान का संतुलन बिगड़ जाएगा और इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आईएसकेपी) जैसे अन्य चरम समूहों के लिए जगह खुल जाएगी.
भारत ने नए तालिबान शासन से रिश्ते किए हैं मजबूत
जनवरी में ही भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दुबई में तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी से मुलाकात की थी. यह काबुल पर 2021 के कब्जे के बाद दोनों देशों के बीच सबसे टॉप स्तर की मुलाकात थी. उस मुलाकात में तालिबान सरकार ने भारत को "महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और आर्थिक शक्ति" बताते हुए उसके साथ राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने की बात कही.
पहलगाम हमले में भी पाकिस्तान का हाथ सामने आने के बाद भी भारत तालिबान के पास पहुंचा है. ऐसे में साफ दिख रहा है कि दिल्ली ने अब तालिबान नेतृत्व को वह वास्तविक वैधता दे दी है जो उसने सत्ता में वापसी के बाद से अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांगी थी. पाकिस्तान के दूसरे छोर पर बसे होने की वजह से अफगानिस्तान भारत के लिए अहम हो जाता है.
तालिबान पुराना खिलाड़ी है, भारत को नजर बनाए रखनी होगी
तालिबान के साथ रिश्ते मजबूत करने में अगर सबसे बड़ा खतरा है तो वह खुद तालिबान है. घुमा-फिरा कर सच्चाई यही है कि वह पाकिस्तान के पड़ोस में बैठा एक हिंसक और क्रूर शासक हैं, जिसके अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी समूहों (जिसमें से कई पाकिस्तान में हैं) से घनिष्ठ संबंध हैं. उसने 1990 के दशक की तुलना में आज भी खुद को सुधारने के लिए बहुत कम प्रयास किया है. भारत को तो यही उम्मीद है कि वह तालिबान को अपने पाले में रखे और बदले में तालिबान भारत या उसके हितों को कमजोर न करके उसके पक्ष में बात करे. और यह सच भी हो सकता है. लेकिन सवाल यही कि क्या हम सचमुच तालिबान पर भरोसा कर सकते हैं?
इसी स्थिति से निपटने के लिए डिप्लोमेसी में प्रैगमेटिक सोच की बात करते हैं, यानी भावनाओं से फैसले न लेकर समय की नजाकत को समझते हुए तार्किक कदम उठाना. पाकिस्तान को उसके गुनाहों की सजा देने के लिए अगर तालिबान काम आए, तो वह कदम ही सही. आखिरकार दुश्मन का दुश्मन दोस्त जो माना जाता है.
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