सुषमा स्वराज बर्लिन में अपने जर्मन समकक्ष फ्रैंक वाल्टर स्टेनमेयर के साथ (फोटो : पीटीआई)
बर्लिन:
भारत और जर्मनी जर्मन भाषा से जुड़े विवाद को हल करने के नजदीक पहुंच गए हैं। इस विवाद के कारण पिछले साल द्विपक्षीय संबंधों में थोड़ी कड़वाहट आ गई थी।
मुद्दे के समाधान के बारे में इस साल अक्टूबर में चासंलर एंजेला मर्केल के भारत दौरे के समय ऐलान हो सकता है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की शनिवार को बर्लिन में उनके जर्मन समकक्ष फ्रैंक वाल्टर स्टेनमेयर के साथ मुलाकात के दौरान यह मुद्दा प्रमुखता से उठा तथा दोनों पक्षों ने समाधान को लेकर चर्चा की।
दोनों देशों के बीच व्यापक तौर पर सहमति के अनुसार भारत अतिरिक्त भाषा के तौर पर जर्मन को पढ़ाना जारी रखेगा, जबकि जर्मनी अपने शैक्षणिक संस्थानों में संस्कृत सहित भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहित करेगा।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया, हम इस मुद्दे के समाधान के निकट पहुंच गए हैं। दोनों पक्षों को उम्मीद है कि चांसलर एजेंला मर्केल के आगामी भारत दौरे के समय इस बारे में ऐलान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष इस बात से खुश हैं कि इस मुद्दे का समाधान किया जा रहा है।
सूत्रों ने कहा, बुनियादी तौर पर हमने कुल मिलाकर यह कहा है कि हम अपनी तीन भाषा की नीति को कायम रखते हुए जर्मन को अतिरिक्त भाषा के तौर पर पढ़ाना जारी रखेंगे। जर्मनी में वे संस्कृत एवं दूसरी भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देंगे।
पिछले साल नवंबर में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने जर्मन भाषा को संस्कृत के विकल्प के तौर पर पढ़ाई को खत्म करने का फैसला किया था और इस फैसले के लिए 'राष्ट्रीय हितों' का हवाला दिया था। जर्मनी ने इस फैसले की आलोचना की थी।
मुद्दे के समाधान के बारे में इस साल अक्टूबर में चासंलर एंजेला मर्केल के भारत दौरे के समय ऐलान हो सकता है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की शनिवार को बर्लिन में उनके जर्मन समकक्ष फ्रैंक वाल्टर स्टेनमेयर के साथ मुलाकात के दौरान यह मुद्दा प्रमुखता से उठा तथा दोनों पक्षों ने समाधान को लेकर चर्चा की।
दोनों देशों के बीच व्यापक तौर पर सहमति के अनुसार भारत अतिरिक्त भाषा के तौर पर जर्मन को पढ़ाना जारी रखेगा, जबकि जर्मनी अपने शैक्षणिक संस्थानों में संस्कृत सहित भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहित करेगा।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया, हम इस मुद्दे के समाधान के निकट पहुंच गए हैं। दोनों पक्षों को उम्मीद है कि चांसलर एजेंला मर्केल के आगामी भारत दौरे के समय इस बारे में ऐलान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष इस बात से खुश हैं कि इस मुद्दे का समाधान किया जा रहा है।
सूत्रों ने कहा, बुनियादी तौर पर हमने कुल मिलाकर यह कहा है कि हम अपनी तीन भाषा की नीति को कायम रखते हुए जर्मन को अतिरिक्त भाषा के तौर पर पढ़ाना जारी रखेंगे। जर्मनी में वे संस्कृत एवं दूसरी भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देंगे।
पिछले साल नवंबर में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने जर्मन भाषा को संस्कृत के विकल्प के तौर पर पढ़ाई को खत्म करने का फैसला किया था और इस फैसले के लिए 'राष्ट्रीय हितों' का हवाला दिया था। जर्मनी ने इस फैसले की आलोचना की थी।
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