
"द मिडिल-इनकम ट्रैप" शीर्षक वाली नई रिसर्च के मुताबिक भारत को विकास के उस पारंपरिक तरीके का पालन करने की जरूरत नहीं है जो उसे प्रति व्यक्ति आय से जोड़ता है. भारत एक साथ सभी मोर्चों पर विकास करते हुए 2047 तक विकसित देश का दर्जा प्राप्त कर सकता है. "मिडिल-इनकम ट्रैप से इनोवेट करते हुए बाहर निकलना" शीर्षक वाली अपनी रिपोर्ट में चिन्तन रिसर्च फाउंडेशन (CRF) ने सुझाव दिया है कि भारत जैसे देश को रैखिक (step-by-step) तरीके की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसके पास एक युवा, मजबूत और कुशल वर्क फोर्स है.
विकास का पारंपरिक मॉडल पिछले साल की विश्व बैंक की "मिडिल-इनकम ट्रैप" रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि कम आय वाले देशों को पहले बुनियादी ढांचे में निवेश करना चाहिए. जब वे Low-middle-income स्तर पर पहुंचें, तब "इन्फ्यूजन" शुरू करें, और जब प्रति व्यक्ति आय \$14,000 से ऊपर पहुंच जाए, तभी नवाचार (innovation) और तकनीक का वैश्विक निर्यात करना चाहिए.
लेकिन चिन्तन रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट कहती है कि भारत विकसित राष्ट्र बनने की जल्दबाज़ी में है. "विकसित@47" लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए और उसके पास विश्व बैंक द्वारा सुझाए गए विकास मॉडल का पालन करने की "विलासिता" नहीं है. "विकसित भारत" कोई छलांग नहीं, बल्कि मापन योग्य और टिकाऊ प्रवृत्तियों का एक विस्तार है. हालांकि भारत पूरे सधे हुए कदमों के साथ तेजी से आगे बढ़ रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि "लीपफ्रॉगिंग" (प्रत्यक्ष रूप से नवाचार पर जाना, बिना चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़े) को लेकर विश्व बैंक की चेतावनी तेज़ प्रगति की संभावना को नकारती है. यह पारंपरिक सोच को मजबूत करती है. 'दूसरों ने इस रास्ते पर 20 साल लगाए, तो तुम्हें भी उतना ही समय लगाना चाहिए.'
सीआरएफ ने कहा कि उसके अनुसंधान से पता चलता है कि भारत में वैज्ञानिक उत्पादन जारी है, भारतीय शोधकर्ता कई ऊपरी-मध्यम आय वाले देशों के समकक्ष या उनसे आगे हैं, और प्रतिभा खोज और अनुसंधान की ओर प्रवाहित हो रही है, न कि उससे दूर.
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