विज्ञापन
This Article is From Apr 02, 2025

'बांग्लादेश को ही तोड़ो...': यूनुस से चीन को न्योता, त्रिपुरा के पूर्व शाही परिवार के नेता ने बताया ‘इलाज’

बांग्लादेश के नेता मोहम्मद यूनुस ने सात पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में ऐसी बात की है जिसपर भारत ने और भारतीय नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है.

'बांग्लादेश को ही तोड़ो...': यूनुस से चीन को न्योता, त्रिपुरा के पूर्व शाही परिवार के नेता ने बताया ‘इलाज’
बांग्लादेश के लीडर मुहम्मद यूनुस और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग

बांग्लादेश के नेता मोहम्मद यूनुस ने सात पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में ऐसी बात की है जिसपर भारत ने और भारतीय नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. बांग्लादेश के अंतरिम नेता ने भारत के इस संप्रभू क्षेत्र को "चीनी अर्थव्यवस्था का विस्तार" कहा है और उसे वह बीजिंग से अपने कब्जे में लेने का आग्रह करते दिखे हैं. इसपर पलटवार करते हुए त्रिपुरा की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी टिपरा मोथा के फाउंडर प्रघोत माणिक्य ने "बांग्लादेश को ही तोड़ने" की बात कही है.

एक्स पर एक पोस्ट करते हुए प्रघोत माणिक्य, जो राज्य के पूर्व शाही परिवार के सदस्य हैं, ने दिल्ली को सुझाव दिया गया कि पूर्वोत्तर राज्यों पर भौतिक नियंत्रण करने, संचार स्थापित करने और बनाए रखने के तरीकों पर "अरबों खर्च करने के बजाय", बांग्लादेश के उन हिस्सों पर नियंत्रण कर लिया जाए जो "हमेशा भारत का हिस्सा बनना चाहते थे".

उन्होंने कहा कि इससे पूर्वोत्तर राज्यों को भी "समुद्र तक हमारी पहुंच" मिल जाएगी. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख ने बताया कि चीन के पास फिलहाल इसकी कमी है.

उन्होंने एक्स पर लिखा, "चटगांव के पहाड़ी इलाकों में हमेशा स्वदेशी जनजातियां रहती थीं जो हमेशा भारत का हिस्सा बनना चाहती थीं... लाखों त्रिपुरी, गारो, खासी और चकमा लोग बांग्लादेश में रह रहे हैं (लेकिन) अपनी पारंपरिक भूमि में भयानक परिस्थितियों में रहते हैं."

उन्होंने कहा, "इसका उपयोग हमारे राष्ट्रीय हित और उनकी भलाई के लिए किया जाना चाहिए."

देश के निर्माण के बाद से चटगांव पहाड़ी क्षेत्र बांग्लादेश के लिए एक समस्या रही है. यहां एमएन लार्मा और 'शांति वाहिनी' के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे, जो वहां के स्वदेशी लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक राजनीतिक समूह की सशस्त्र शाखा थी. इस समूह ने क्षेत्र में विभिन्न आदिवासी समुदायों की स्वदेशी पहचान की स्वायत्तता और मान्यता की मांग की. आखिरकार, 1997 में शेख हसीना की सरकार ने एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए.

इस एक्स पोस्ट की कुछ हलकों से आलोचना हुई, लेकिन टिपरा मोथा के प्रमुख इससे प्रभावित नहीं हुए और जोर देकर कहा, "बांग्लादेश कभी भी हमारा मित्र नहीं था... इसलिए हमें मूर्ख नहीं बनना चाहिए". उन्होंने कहा, उस देश में भारत के एकमात्र 'मित्र' दिवंगत शेख मुजीउर रहमान थे, जिनकी बेटी शेख हसीना पिछले साल के विद्रोह तक प्रधान मंत्री थीं.

शेख हसीना अब भारत में हैं और यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने उनसे प्रत्यर्पण का अनुरोध किया है.

प्रघोत माणिक्य ने कहा है, "आइए हम खुद को मूर्ख न बनाएं... मैं यहां पूर्वोत्तर में रहता हूं और हम हर दिन स्पष्ट और मौजूदा खतरे को देखते हैं. मैं समझता हूं कि आपका वामपंथी झुकाव इसे कठिन बनाता है... लेकिन हमारे विचारों को भी समझिए."

माणिक्य ने जो सुझाव दिया है उसका इतिहास में कुछ आधार है. लेकिन साथ ही वर्तमान संदर्भ भी उतना ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने जो बात कही है वह असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की ही लाइन पर है.

सीएम सरमा ने यूनुस की टिप्पणी को "अपमानजनक" और "दृढ़ता से निंदनीय" कहा है. उन्होंने केंद्र सरकार से देश के बाकी हिस्सों और पूर्वोत्तर के बीच रेल और सड़क संपर्क विकसित करने का आह्वान किया है. अभी मेनलैंड इंडिया की इन राज्यों तक भूमि पहुंच केवल सिलीगुड़ी, या 'चिकन नेक', कॉरिडोर के माध्यम से है.

Latest and Breaking News on NDTV

सीएम सरमा ने यह भी कहा कि बांग्लादेश नेता की टिप्पणी, "कॉरिडोर से जुड़ी लगातार भेद्यता की कहानी को रेखांकित करती है". यह पूरा विवाद इसलिए शुरू हुआ है क्योंकि यूनुस ने तीन प्रमुख समुद्री बंदरगाहों - चट्टोग्राम (पहले चटगांव), मोंगला, और पेरा - और एक निर्माणाधीन चौथे - माताबारी - का जिक्र करते हुए क्षेत्र में "समुद्र के संरक्षक" के रूप में अपने देश की स्थिति का लाभ उठाने के लिए चीन को आमंत्रित किया था.

चैटोग्राम बंदरगाह का अत्यधिक रणनीतिक महत्व है. यह न केवल बांग्लादेश में सबसे बड़ा है, बल्कि इसे दिल्ली द्वारा त्रिपुरा की राजधानी अगरतला तक माल ले जाने के लिए एक ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में भी माना जा रहा था. एशियन डेवलपमेंट बैंक के एक पेपर में कहा गया है कि कोलकाता बंदरगाह से अगरतला तक परिवहन लागत 6,300 रुपये से 7,000 रुपये प्रति टन के बीच है. वहीं चट्टोग्राम मार्ग के रास्ते - यानी, कोलकाता से बांग्लादेशी बंदरगाह तक और फिर रेल द्वारा- लागत बहुत कम है.

लेकिन बांग्लादेश में सरकार के बदलने से मुद्दे जटिल हो गए हैं.

इस बीच, बांग्लादेश ने चीन को तीस्ता जल प्रबंधन परियोजना का हिस्सा बनने के लिए भी आमंत्रित किया है और इसपर भी चिंताएं हैं. यूनुस की चीन यात्रा के दौरान ढाका ने कहा कि इस मुद्दे पर बीजिंग के साथ बातचीत आगे बढ़ी है. यदि ऐसा होता है, तो इससे चीन को बंगाल के जलपाईगुड़ी जैसे जिलों के दक्षिण में उपस्थिति मिल जाएगी.

चीन ने पहले से ही उत्तर में अपनी सैन्य उपस्थिति बना ली है. लेकिन अब बांग्लादेश के आमंत्रण से चिकन नेक कॉरिडोर की सुरक्षा के लिए बहुत गंभीर प्रभाव हो सकता है. भारत को इस कॉरिडोर या उत्तर-पूर्व में खतरों से निपटने के लिए रणनीतिक जवाबी उपाय तैयार रखने की आवश्यकता होगी.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com