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This Article is From Sep 07, 2015

खाड़ी के अमीर अरब देशों में सीरियाई शरणार्थियों को लेकर चुप्पी से कई हैं शर्मिंदा

खाड़ी के अमीर अरब देशों में सीरियाई शरणार्थियों को लेकर चुप्पी से कई हैं शर्मिंदा
ग्रीस के इडोमेनी गांव के करीब अपने बच्चे को थामे एक अप्रवासी (फोटो - रायटर्स)
दुबई: साल 1990 में इराक ने जब कुवैत पर हमला किया था, तब कुवैत के हजारों विस्थापितों को पनाह देने के लिए कई दूसरे खाड़ी देश आगे आए थे। वहीं 25 वर्षों बाद जंग जैसे हालात से जूझते सीरिया और उसके आस-पास के लाखों बेघरों को जब शरण की तलाश है, तो दुनिया के अमीर देशों में शुमार अरब देशों से उन्हें निराशा ही हाथ लग रही है।

समुद्र में डूबे सीरियाई कुर्दिश बच्चे अयलान की तस्वीर सामने आने के बाद जहां यूरोप में शरणार्थी मुद्दे को लेकर जहां बहस छिड़ी हुई है, वहीं अरब देशों में इसे लेकर सरकार की आधिकारिक चुप्पी ने वहां के लोगों को खासा असहज कर रखा है।

अयलान की तस्वीरों, पेंटिंग्स और कार्टून अरब देशों में सोशल मीडिया पर छाए हुए है, और लोग इनके जरिये अपनी भावनाएं जाहिर कर रहे हैं।

वहीं मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल की सारा हशाश अरब देशों के इस रवैये को 'बेहद शर्मनाक' करार देती है और आधिकारिक तौर पर एक भी शरणार्थी को पनाह नहीं देने को लेकर कतर, कुवैत, बहरीन, सउदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की आलोचना करती है।

आपको बता दें कि तुर्की ने 20 लाख शरणार्थियों को, जबकि बेहद छोटे से देश लेबनान से दस लाख से अधिक लोगों को पनाह दे रखा है।

हालांकि इस पर खाड़ी देशों के समर्थक कहते हैं कि सीरियाई संकट से बेघर हुए शरणार्थियों की संख्या कुवैत की तुलना में काफी ज्यादा है। इसके साथ ही वह सीरिया से सटे देशों को खाड़ी देशों द्वारा दी जा रही सहायता का भी हवाला देते हैं।

हालांकि इस बीच सीरिया शरणार्थियों को लेकर सहानुभूति धीरे-धीरे बढ़ रही है। कुवैत के अल-अन अखबार में अपने कॉलम में जैद अल-जैद लिखते हैं कि समुद्र में डूबने से मरे अयलान की तस्वीर से सीरियाई शरणार्थियों के मुद्दे के मुद्दे पर कुछ यूरोपीय देशों की सरकारों और लोगों द्वारा एकजुटता और सहानुभूति के अभियान चलाए जाने की हल्की सी उम्मीद जगती है। इसके साथ ही वह लिखते हैं, 'हालांकि अरब देशों की सरकार द्वारा कोई  पहल नहीं किया जाना हमें शर्मिंदा करती है।'

संयुक्त अरब अमिरात में एक टीकाकार सुल्तान सऊद अल कासेमी कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि खाड़ी देश राजनीतिक रूप से मुखर इन अरब लोगों की इस बड़ी संख्या को अपने यहां पनाह देंगे, जो कि पारंपरिक रूप से निष्क्रिय समाज को प्रभावित कर सकती है। हालांकि इसके साथ ही वह कहते हैं कि खाड़ी देशों को इन शरणार्थियों के अपने दरवाजे खोलने चाहिए।

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