अमेरिका और यूरोपीय देशों में गर्भपात के अधिकारों (Abortion Rights) पर बहस छिड़ी हुई है. ये देश अबॉर्शन कानून के अधिकार पर बंटे हुए हैं, जिसका असर जी-7 समिट में भी देखा गया. ये मुद्दा इटली में हुए जी-7 समिट (Abortion Issue In G-7 Summit) में भी जमकर गूंजा. इस मुद्दे पर जी-70 नेताओं में भी दो फाड़ देखने को मिला. मैक्रों और मेलोनी के बीच तो इस पर तीखी नोंकझोंक भी हो गई. कहा जा रहा है कि मेलोनी के विरोध की वजह से जी-7 नेताओं ने सम्मेलन में अपने अंतिम वक्तव्य में गर्भपात के अधिकारों पर प्रतिबद्धता को हटा लिया है.
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हालांकि मेलोनी के कार्यालय ने इसे हटाए जाने और इस मामले पर ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, जापान और अमेरिका के साथ बातचीत से इनकार किया है. बता दें कि 'सुरक्षित और कानूनी अबॉर्शन तक पहुंच' के मुद्दे पर हिरोशिमा में पिछले साल हुए जी-7 सम्मेलन में नेताओं ने प्रतिबद्धता जताई थी. लेकिन इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी के विरोध की वजह से इस साल के सम्मेलन के वक्तव्य के मसौदे से इसे हटाना पड़ा.
अबॉर्शन अधिकार पर क्या है मेलोनी की राय
न्यूज एजेंसी ANSA के मुताबिक, जॉर्जिया मेलोनी ने कहा, "निष्कर्षों में अबॉर्शन शब्द की मौजूदगी या गैरमौजूजगी पर विवाद पूरी तरह से गलत है." उन्होंने कहा कि डॉक्यूमेंट हिरोशिमा टेक्स्ट की भाषा को याद दिलाएगा, जिसमें हमने पिछले साल ही इस बात की अनुमति दी थी 'सुरक्षित और कानूनी' गर्भपात की गारंटी की जरूरत है.
बता दें कि इटली में गर्भपात कानून को साल 1978 में गी मंजूरी दे दी गई थी. लेकिन ज्यातादर गायनोकॉलोजिस्ट महिलाएं होने की वजह से यह बहुत ही चैलेंजिंग है. ये डॉक्टर नैतिक और धार्मिक आधार पर अबॉर्शन करने से इनकार कर देती हैं. इटली की नई पीएम जॉर्जिया मेलोनी गर्भपात विरोधी हैं. उन पर सत्ता में आने के बाद गर्भपात कानून को कठिन बनाने के आरोप लगते रहे हैं.
जी-7 नेताओं की घोषणा को कमजोर करने का आरोप
यूरोपीय संघ के एक सीनियर अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की है कि जी-7 में गर्भपात पर स्पष्ट शब्दों का उपयोग करने की कोशिशें फेल हो गई हैं. इटली के इस रुख के अमेरिका भी खिलाफ है. अमेरिका का "सुरक्षित और कानूनी" गर्भपात के वक्तव्य को हटाए जाने और जी-7 नेताओं की घोषणा को कमजोर करने की इटली की कथित कोशिशों के खिलाफ गुरुवार को कड़ा रुख देखने को मिला.
राजनयिक सूत्रों का कहना है कि इटली की पीएम और जी-7 की मेजबान मेलोनी पिछले साल जापान में दोहराई गई प्रतिबद्धता को कमजोर करने की कोशिश कर रही हैं. उनके इस कदम से साथी देशों में काफी नाराजगी है. अमेरिका के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने "बहुत दृढ़ता से महसूस किया कि हमें कम से कम उस भाषा की जरूरत है, जो हिरोशिमा में महिलाओं के स्वास्थ्य और रिप्रोडक्टिव अधिकारों पर हमने जो कुछ भी किया."
गर्भपात कानून पर क्या है फ्रांस का रुख
फ्रांस में महिलाओं को गर्भपात का संवैधानिक अधिकार है. इंटरनेशनल वुमन्स डे के मौके पर राष्ट्कपति मैक्रों ने महिलाओं को बड़ा तोहफा देते हुए गर्भपात को संवैधानिक अधिकार में शामिल कर दिया था. 200 साल पुरानी प्रिंटिंग मशीन का इस्तेमाल कर इस संवैधानिक कानून की कॉपी भी निकाली गई थी. वोटिंग के बाद फ्रांस ने यह फैसला लिया था. फैसले के पक्ष में 780 और फैसले के खिलाफ 72 वोट पड़े थे. जब अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्रिटेन समेत तमाम देशों में अबॉर्शन को कानून बनाने की मांग उठ रही थी, ऐसे समय में फ्रांस पहला देश था, जिसने गर्भपात को संवैधानिक कानून बना दिया. फ्रांस में अब 14 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को खत्म किया जा सकता है.
गर्भपात कानून पर क्या है अमेरिका की राय
अमेरिका में भी गर्भपात कानून पर बड़ी बहस छिड़ी हुई है. दरअसल साल 2022 में वहां की सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन के संवैधानिक अधिकार को खत्म कर दिया था. जब कि यह कानून करीब पांच दशक पुराना था. अमेरिका में करीब 50 साल पहले 1973 में महिलाओं को गर्भपात का कानूनी अधिकार दिया गया था. जब यह अधिकार महिलाओं से छीना गया तो देश का माहौल उबल उठा. इसे लेकर काफी विरोध-प्रदर्शन भी हुए. हालांकि अमेरिका की मौजूदा बाइडेन सरकार कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ है. बाइडेन सरकार इसे क्रेूर फैसला मानती है. बाइडेन का मानना है कि रिपब्लिकन महिलाओं के अधिकारों को छीना गया है. यह अमेरिकी चुनाव में भी बड़ा मुद्दा है. बाइडेन ने कहा है कि अगर वह फिर से राष्ट्रपति बने तो वह गर्भपात अधिकारों पर कानून को फिर से लागू कर देंगे.
गर्भपात कानून पर इटली का विरोध क्यों?
गर्भपात कानून पर इटली की राय अन्य यूरोपीय देशों से बटी हुई है. इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी इस कानून के सख्त खिलाफ हैं. वह समलैंगिक शादी की तरह ही गर्भपात कानून को सही नहीं मानती हैं. जबकि इटली में गर्भपात का अधिकार महिलाओं को 1979 से मिला हुआ है. यहां की महिलाएं 90 दिनों के भीतर अबॉर्शन करवा सकती है. लेकिन पीएम जॉर्जिया मेलोनी इस कानून का विरोध करती रही हैं. साल 2022 में पीएम बनने से पहले गर्भपात को ही एक मात्र समाधान मानने वाली महिलाओं को अलग फैसला लेने का अधिकार देने की कसम खाई थी. उनके इस रुख का असर जी-7 में भी देखने को मिला है.
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