साल 2018 में पलायन (Migration) दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बड़ी समस्या बना रहा. कहीं युद्ध की विभीषिका ने लोगों को घर-बार छोड़कर भागने पर मजबूर किया तो कहीं प्राकृतिक विभीषिकाओं ने लोगों से उनका घर-द्वार छीन लिया. कहीं राजनीतिक कारणों से लोगों को नया आसरा तलाशना पड़ा तो कहीं विकास के नाम पर लोगों को अपनी पैतृक भूमि से जुदा होना पड़ा. यह समस्याएं दुनिया के कई देशों में अलग-अलग रूपों में सामने आईं.
पलायन की चपेट में म्यांमार, बाग्लादेश, अमेरिका, भारत सहित यूरोप के कई देश रहे. एक देश से दूसरे देश में जाकर बसे लोग शरणार्थी बन गए. कई देशों में लोग अवैध रूप से सीमाओं को पार करके शरणार्थी बने. इसके चलते कई देशों के बीच तनाव के हालात भी बने.
रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार से खदेड़ा गया
इस साल सबसे अधिक चर्चा म्यांमार से पलायन करने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की हुई. म्यांमार के रखाइन प्रांत से लाखों मुसलमानों को सैनिक कार्रवाई के कारण देश छोड़ने को मजबूर होना पड़ा. इस घटना को लेकर आंग सांग सू की दुनिया भर में निंदा हुई. रोहिंग्या मुसलमानों को देश से खदेड़ने वाले म्यांमार का दावा था कि वह अपने क्षेत्र में शांति की पहल के चलते इन्हें अपने देश में नहीं रहने दे सकता. म्यांमार की सेना की कठोर कार्रवाई से भयभीत होकर करीब सात लाख रोहिंग्या मुसलमानों ने सीमा पार कर पड़ोसी देश भारत और बांग्लादेश में शरण ली. म्यांमार से करीब 60,000 रोहिंग्या भारत आए और अब विभिन्न राज्यों में रह रहे हैं. इन्होंने समुद्र के रास्ते से, बांग्लादेश और म्यांमार की सीमा से लगे चिन इलाके से होकर भारत में घुसपैठ की. जम्मू और कश्मीर के हिन्दू बहुल क्षेत्र जम्मू में 10 हजार से अधिक रोहिंग्या मुस्लिमों ने शरण ले रखी है. बांग्लादेश और म्यांमार की सीमा पर सबसे बड़ी तादाद में रोहिंग्या मुस्लिमों के शरणार्थी शिविर हैं. यहां करीब 3,50,000 शरणार्थी रह रहे हैं.
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आतंकवाद ने देश छोड़ने को मजबूर किया
इस्लामिक स्टेट के आतंक के चलते सीरिया और इराक से शिया, ईसाई और अन्य समुदायों के लोगों को यूरोप के कई देशों में शरण लेनी पड़ी. सिर्फ सीरिया में ही 65 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए. करीब इतनी ही जनसंख्या ने इराक से पलायन किया. तुर्की में सबसे अधिक शरणार्थियों ने शरण ली. तुर्की में करीब 35 लाख पंजीकृत शरणार्थी हैं. इनमें बड़ी संख्या सीरियाई लोगों की है. जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन में भी शरणार्थी पहुंचे. यूरोप के इन देशों में लाखों की संख्या में इराक और सीरिया के शरणार्थी रह रहे हैं.
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अमेरिकी की वीजा नीति ने भविष्य अंधकारमय किया
उधर अमेरिका में भारतीय-अमेरिकियों के एच-1 वीजा से संबंधित समस्या ने भी खासी परेशानियां पैदा कीं. इसके चलते अमेरिका में भी पलयन का स्थितियां बनीं. अमेरिका और मैक्सिको की सीमा पर जमे हजारों शरणार्थियों के हालात और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की ऊल-जलूल टिप्पणियां चर्चा में रहीं.
पाकिस्तान में जुल्मों के शिकार हुए सिख
पाकिस्तान में सिख समुदाय को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा. पेशावर शहर में अल्पसंख्यक सिख समुदाय के लोग इस्लामिक चरमपंथियों से परेशान होकर पलायन करने को मजबूर हुए. लगातार हो रहे आतंकी हमलों के कारण उन्हें पाकिस्तान के अन्य इलाकों में शरण लेनी पड़ी. पेशावर में रहने वाले करीब 30 हजार सिखों में से 60 फीसदी ने शहर छोड़ दिया. इनमें से कई पाकिस्तान के अन्य शहरों में गए तो कई भारत आ गए.
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गुजरात में भड़की नफरत की आग से पलायन
भारत में भी लोगों का एक हिस्से से दूसरे हिस्से में पलायन होता रहा. रोजगार के लिए पलायन तो भारत में हमेशा होता है लेकिन इस साल कुछ घटनाओं ने सामाजिक वैमनस्य पैदा किया जिससे लोगों को भागने पर मजबूर होना पड़ा. सबसे बड़ी घटना गुजरात में हुई जहां एक बच्ची की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई. गुजरात के साबरकांठा जिले में 14 माह की बच्ची से बलात्कार की घटना के बाद गैर गुजरातियों पर हमलों का सिलसिला शुरू हो गया. इस घटना से गुजरात में यूपी और बिहार के लोगों के खिलाफ नफरत का मौहाल बन गया. उत्तर भारतीय लोगों पर हमले शुरू हो गए और इससे उन्हें गुजरात छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. अहमदाबाद में करीब 47 उत्तर भारतीयों को बंधक बना लिया गया. गुजरात से करीब 20,000 उत्तर भारतीयों ने पलायन किया.
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यूपी के कौशांबी में साम्प्रदायिक द्वेष के हालात बनने से पलायन की घटनाएं हुईं. कैराना, संभल और मुजफ्फरनगर के अलावा कौशांबी से भी पलायन हुआ. यहां वर्ग विशेष की महिलाओं ने पुलिस पर उनके उत्पीड़न का आरोप लगाया और बड़ी संख्या में महिलाएं गांव छोड़कर चली गईं.
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