
- व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार दिए जाने की मांग की है.
- ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम कराने का दावा किया, लेकिन भारत सरकार ने इसे खारिज कर दिया है.
- विदेश मंत्री जयशंकर ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान के साथ संघर्षविराम में किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं था.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार पाने की ऐसी तलब मची है कि अपने मुंह मियां मिट्ठू बने घूम रहे हैं. अब खुद की जुबान थकी तो व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट को आगे कर दिया है. कोरोलिन लेविट ने भी अब कहा है कि डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जाना चाहिए. उन्होंने दावा किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने दुनिया भर में कई संघर्षों को समाप्त कराया है, इसमें भारत और पाकिस्तान के बीच का संघर्ष भी शामिल है. ये वहीं झूठा दावा है जिसे ट्रंप बार-बार दोहराते रहे हैं.
ट्रंप ने 10 मई को सोशल मीडिया पर यह घोषणा की थी कि भारत और पाकिस्तान ने वाशिंगटन की मध्यस्थता में ‘‘एक रात तक चली'' बातचीत के बाद ‘‘पूर्ण रूप से और तुरंत'' संघर्षविराम पर सहमति जतायी है. इसके बाद से वह बार-बार यह दावा करते रहे हैं कि उन्होंने दोनों देशों के बीच तनाव कम कराने में मदद की.
प्रेस सचिव ने कहा, ‘‘राष्ट्रपति ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार दिए जाने का वक्त आ गया है.''
नोबेल के लिए कुछ भी करेंगे... ट्रंप यानी झूठ की मशीन
ट्रंप ने यह दावा करीब 30 बार दोहराया है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव ‘‘कम कराने में मदद की” और परमाणु हथियार संपन्न इन दो दक्षिण एशियाई पड़ोसी देशों से कहा कि अगर वे संघर्ष रोकते हैं, तो अमेरिका उनके साथ “बहुत ज्यादा व्यापार” करेगा. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सप्ताह संसद में कहा कि किसी भी देश के किसी भी नेता ने भारत से ‘ऑपरेशन सिंदूर' रोकने के लिए नहीं कहा था.
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को स्पष्ट रूप से कहा कि पाकिस्तान के साथ संघर्षविराम लाने में किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप नहीं था. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सैन्य कार्रवाई रोकने और व्यापार के बीच कोई लेना-देना नहीं था. राज्यसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर' पर विशेष चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए जयशंकर ने कहा कि 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले से लेकर 16 जून तक प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप के बीच टेलीफोन पर कोई बातचीत नहीं हुई थी.
अब बात थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीजफायर की. थाईलैंड-कंबोडिया संघर्ष के साथ अपनी टिप्पणी शुरू करते हुए, लेविट ने कहा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "शांति के मोर्चे पर, राष्ट्रपति ट्रंप ने थाईलैंड और कंबोडिया के बीच तत्काल और बिना शर्त युद्धविराम कराने में मदद की. दोनों देश एक घातक संघर्ष में लगे हुए थे, जिसमें 300,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए थे, जब तक कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने इसे समाप्त करने के लिए कदम नहीं उठाया." CNN की रिपोर्ट के अनुसार, संघर्ष विराम समझौते की घोषणा एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के वर्तमान अध्यक्ष और मलेशियाई प्रधान मंत्री अनवर इब्राहिम ने की, जिन्होंने राजधानी कुआलालंपुर के पास अपने आधिकारिक आवास पर कंबोडियाई प्रधान मंत्री हुन मानेट और कार्यवाहक थाई प्रधान मंत्री फुमथम वेचायाचाई के बीच बातचीत में मध्यस्थता की. ट्रंप ने सीजफायर के लिए टैरिफ वाले हथकंड़े को अपनाने का दबाव डाला था. लेकिन थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीजफायर पर सहमती मलेशिया में आमने सामने की बातचीत के बाद बनी जहां सबसे बड़ा मध्यस्थत ट्रंप नहीं मलेशिया के पीएम थे.
ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के पहले ही चुनावी वादा किया था कि कुर्सी पर बैठते ही वो रूस-यूक्रेन जंग और इजरायल-गाजा जंग को खत्म कर देंगे. आज उनको राष्ट्रपति बने 6 महीने से अधिक का वक्त गुजर गया है लेकिन सीजफायर तो दूर उसकी उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है. ट्रंप ने यूक्रेन और यूरोपीय शक्तियों को दरकिनार कर पुतिन को समझाने और अपने साथ लाने की कोशिश की, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ. यूक्रेन पर रूस का हमला जारी है. इसी तरह गाजा में इजरायल की सैन्य कार्रवाई चरम पर है, गाजा में लोगों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही और ट्रंप की चौधराहट इजरायल को रोकने में सफल नहीं हुई है.
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