World Coronavius: कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है. चीन में पिछले साल आठ दिसंबर को कोविड-19 का पहला केस मिला था. इसके बाद छह माह बीत चुके हैं और यह महामारी करीब पूरी दुनिया में फैल चुकी है. यह आपदा थमने का नाम नहीं ले रही है. जब कोरोना का कहर बढ़ा और लॉकडाउन शुरू हुआ तो भारत में जहां प्रवासी अपने-अपने शहरों, गांवों की ओर चल दिए वहीं विदेशों में बसे सैकड़ों भारतीय भी स्वदेश लौट आए. लेकिन लाखों अप्रवासी भारतीय अलग-अलग देशों में रह रहे हैं. अमेरिका, ब्रिटेन और इटली सहित यूरोप के कई देशों में हालात काफी खराब हैं और इन देशों में रहने वाले भारतीयों की संख्या भी खासी है. दुनिया के अलग-अलग देशों में बसे भारतीय कोविड-19 महामारी के बुरे दौर का डटकर मुकाबला कर रहे हैं. कई देशों में लॉकडाउन अलग-अलग तरह से जारी है. अप्रवासी भारतीय इस दौर को कैसे बिता रहे हैं? NDVT ने कुछ अप्रवासी भारतीयों से फोन पर बात की तो किसी में निराशा का भाव नहीं था. उनमें कोरोना को मात देने की आशा है और वे लॉकडाउन के दौर का भी अपने पक्ष में इस्तेमाल कर रहे हैं.
लॉकडाउन में तो अपूर्व सुख भी छिपा था
ब्रिटेन में अब कोरोना वायरस से 2,92,860 लोग संक्रमित हैं. इनमें से एक्टिव केस 2,50,218 हैं और 1,278 लोग इस बीमारी से उबर चुके हैं. ब्रिटेन में इस महामारी से अब तक 41,364 लोगों की मौत हो चुकी है. लंदन में रह रहे मेडिकल एजुकेशन के छात्र सम्यक कहते हैं कि ''कोविड महामारी दुनिया को गहरी चिंता की स्थिति में ले आई है. यह कठिन चुनौती का समय है. लॉकडाउन से दुनिया की रफ्तार धीमी पड़ गई है लेकिन इसका एक प्रतिपक्ष भी है. मुझे लॉकडाउन में ही पता चला कि इसमें अपूर्व सुख भी छिपा था. मुझे इस दौरान वे अनमोल पल हासिल हुए जो शायद मुझे फिर कभी नहीं मिलेंगे. हमें नहीं पता कि हम अपने परिवारों के साथ कब इतना ज्यादा समय बिता पाएंगे और एक-दूसरे की इतनी देखभाल कर सकेंगे.''
सम्यक ने कहा कि ''हमारे लिए लॉकडाउन एक अजीब अनुभव रहा है, जिसके बारे में सभी लोग सहमत होंगे क्योंकि इस महामारी ने तो पूरी दुनिया की मनोदशा बदल डाली है. लंदन वास्तव में चिंताजनक स्थिति में है और यूके ने कोरोना वायरस संक्रमण के हालात का सामना कैसे किया है... इसे देखना, अनुभव करना डरा देने वाला है. एक हफ्ते तक रोज 900 मौतें होती रहीं. यह भय के साथ जिंदगी जीने का कटु अनुभव रहा है.''
सम्यक बताते हैं कि ''मैं एमबीबीएस का छात्र हूं लेकिन इस महामारी के दौर में मुझे कोविड 19 के इलाज के लिए मूल्यवान चिकित्सा अनुभव नहीं मिल सका. जबकि मुझे जिस अस्पताल में ट्रेनिंग दी जाती है उसमें देश के प्रधानमंत्री को भर्ती किया गया था.''
वे कहते हैं कि ''ब्रिटेन में बदले हालात में छात्र परीक्षा को लेकर चिंता में हैं. यूनिवर्सिटी के अंतिम वर्ष के कई छात्र इन सवालों को लेकर चिंतित हैं कि ऑनलाइन परीक्षाओं के बाद उनको मिलने वाली डिग्री की वेल्यू कम तो नहीं होगी? और क्या उन्हें फिर से परीक्षा देने का मौका मिलेगा?''
सम्यक कहते हैं कि ''समस्या सिर्फ हायर एजुकेशन में ही नहीं है, स्कूली छात्र भी अपने भविष्य को लेकर पसोपेश में हैं. उन्होंने कहा कि मेरे भाई अवि की तरह हाई स्कूल के अंतिम वर्ष में पढ़ने वाले तमाम छात्र चिंतित हैं क्योंकि उनकी परीक्षाएं कैंसिल कर दी गई हैं. यह उनके जीवन की सबसे अहम परीक्षा है जो यह निर्धारित करती है कि वे किस यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले सकेंगे और वे किस तरह के कैरियर के लिए आगे बढ़ सकेंगे. यह परीक्षाएं नहीं होने से उन्हें उनके शिक्षकों के आकलन के मुताबिक ग्रेड मिलेगा. क्या यह अनुमानित ग्रेड वास्तव में उनकी योग्यता का सही आकलन होगा? क्या वे गर्मियों की इन परीक्षाओं में साल भर के प्रदर्शन से भी कहीं अधिक बेहतर रिजल्ट नहीं ला सकते थे?''
सम्यक ने बताया कि ''लॉकडाउन के दौरान मैं अपने स्टूडेंट एकमोडेशन से अपने घर पर लौट आया. यहां आकर अनुभव हुआ कि वास्तव में लॉकडाउन में अपूर्व सुख भी छिपा था. मुझे इस दौरान वे अनमोल पल हासिल हुए जो शायद मुझे फिर कभी नहीं मिलेंगे. हमें नहीं पता कि हम अपने परिवारों के साथ कब इतना ज्यादा समय बिता पाएंगे और एक-दूसरे की इतनी देखभाल कर सकेंगे.''
अपने पिता रवि और भाई अवि के साथ सम्यक.
सम्यक कहते हैं कि ''हम भाग्यशाली हैं कि इस वैश्विक महामारी के बीच परिवार के साथ स्वस्थ और सुरक्षित हैं. मेरे माता-पिता दोनों घर पर हैं. भले ही मेरे पिता रवि पांडे घर में अपनी डेस्क पर बहुत समय बिता रहे हैं, पर इसके साथ वे हम सभी के साथ क्वालिटी टाइम भी बिता रहे हैं. हम हर दिन टीवी वेब-सीरीज़ देख रहे हैं. नेटफ्लिक्स और अमेजान प्राइम पर करीब सारा हिंदी केंटेंट देख डाला है. मुझे तो अब लगता है कि हम चारों क्रिटिक बन सकते हैं. पहले कभी नहीं सोचा था कि हम कभी अपनी वॉच लिस्ट से टीवी और फिल्मों का आनंद ले सकेंगे.''
उन्होंने कहा कि ''लॉकडाउन के इस दौर में शानदार लंच और डिनर तैयार करने वाली मेरी मां राखी किसी शेफ से कम साबित नहीं हुई हैं. घर के बगीचे में भोजन का आनंद लेने का एक अनुभव भी इन्हीं दिनों में मिल सका है. बात यहीं खत्म नहीं हो जाती लॉकडाउन के दौरान ही अपनी चिंताओं को परे रखकर हमने हनुमान चालीसा पाठ के लिए एक बेहतरीन जूम पार्टी का आयोजन किया.''
गौरतलब है कि लंदन में कोविड-19 से छह हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हुए हैं और करीब 200 लोगों की मौत हो चुकी है.
दुनिया बदल जाएगी, लेकिन फिर भी पहले की तरह दौड़ेगी
अमेरिका पूरी दुनिया में कोरोना महामारी से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है. अमेरिका में वायरस संक्रमण के अब तक 20,23,385 मामले आए जिसमें से 13,70,922 एक्टिव केस हैं. यहां 5,38,645 मरीज इस बीमारी से उबर चुके हैं और 1,13,818 लोगों की मौत हो चुकी है. अंकिता शर्मा अमेरिका के वाशिंगटन स्टेट के मिल क्रीक में रहती हैं. महामारी की इस त्रासद स्थिति में उनकी मनोदशा का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है, लेकिन इसके बावजूद उनसे जब बात की तो उन्होंने सबसे पहले यही कहा कि वक्त तो बदलता रहता है, हमेशा सब कुछ अच्छा तो नहीं हो सकता. यह वक्त भी निकल जाएगा और भले ही तब दुनिया में बहुत कुछ बदल जाएगा लेकिन यह तब भी दुनिया दौड़ेगी, अपने पुराने जोश के साथ दौड़ेगी.
अंकिता कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के अब तक बीते दौर के बारे में अपने अनुभव बताते हुए सिहर उठती हैं. वे कहती हैं कि ''हमने अपने काउंटी में कोरोना वायरस के संक्रमण के पहले मामले के बारे में जब सुना तब वह जनवरी का महीना था. हम थोड़े डरे जरूर थे लेकिन यह अंदाजा नहीं था कि हालात बड़ी तेजी से बहुत बुरे हो जाएंगे. मुझे ठीक तरह से याद है वह 29 फरवरी का दिन था जब मैं अपने दोस्तों के साथ थी और तभी पता चला कि कोरोना वायरस से लोगों की मौत होने लगी हैं. इसके बावजूद यहां जीवन तो आम दिनों की तरह ही चल रहा था. मैं और मेरे पति राजेश पहले की तरह ही काम कर रहे थे और हमारा बेटा शुभ स्कूल जा रहा था. आम तौर पर सफाई रखने के जैसे निर्देश हम हमेशा उसे देते हैं, तब भी दे रहे थे.''
अंकिता अपने पति राजेश और बेटे शुभ के साथ.
अंकिता ने कहा कि ''कुछ ही समय गुजरा और अपने साथ त्रासदी की स्थिति लेकर आ गया. पूरे अमेरिका में वाशिंगटन एक ऐसा स्टेट बन गया जिसमें कोविड-19 के सबसे अधिक पॉजिटिव केस थे. मौतों की संख्या हमें भयभीत कर रही थी. मार्च आधा गुजरते-गुजरते स्कूल बंद कर दिए गए और कामकाज वर्क फ्राम होम कर दिया गया. किराने का सामान आसानी से मिलना बंद हो गया. हालांकि वाशिंगटन स्टेट में टोटल शटडाउन नहीं हुआ था. किराने के सामान की दुकानें कभी बंद नहीं हुई थीं. जबकि पॉजिटिव केस स्कूलों, दफ्तरों, हमारी सोसायटी, ग्रासरी शॉप.. हर जगह मिल रहे थे.''
अंकिता कहती हैं कि ''अमेरिका में कोविड का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है. जैसे-जैसे समय बीत रहा है हम इस महामारी के वक्त के साथ चलने की कोशिश करते हुए सामान्य होते जा रहे हैं, लेकिन यह तय है कि हम पहले जैसे नहीं रहे.''
बेटी के साथ खेलने का ऐसा आनंद पहले नहीं मिला
ऑस्ट्रेलिया में कोरोना वायरस का असर अमेरिका, ब्रिटेन, स्पेन या भारत जैसे देशों से काफी कम हुआ. इस देश में कोविड-19 संक्रमण के 17 हजार से कुछ अधिक केस पाए गए जिसमें से अब 400 से अधिक एक्टिव केस हैं. कोरोना वायरस से यहां 674 लोगों की मौत हो चुकी है. हालात ज्यादा नहीं बिगड़े लेकिन दुनिया के साथ यहां के लोगों की भी चिंताएं तो बढ़ी ही रही हैं. इस विशाल देश में सरकार ने तुरंत प्रभावी कदम उठाकर महामारी फैलने के रास्ते काफी हद तक बंद कर दिए.
ऑस्ट्रेलिया में हालात धीरे-धीरे सामान्य होते जा रहे हैं. मेलबर्न में रहने वालीं ऋचा दुबे बैंक अधिकारी हैं. उन्होंने बताया कि ''हम लोगों को लॉकडाउन के कारण घर में बंद हुए 10 हफ्ते से अधिक वक्त बीत गया. इस अरसे में बहुत कुछ बदल गया, मेलबर्न में भी बदलाव आया.''
ऋचा ने कहा कि ''चूंकि कोरोना वायरस का संक्रमण बुजुर्गों पर ज्यादा असर करता है इसलिए यहां की सरकार ने सुबह सात से आठ बजे तक का समय बुजुर्गों के शॉपिंग करने के लिए तय किया. इस समय वे अपने लिए दूध, सब्जियां वगैरह खरीद लेते हैं. इस अवधि में 60 साल से अधिक उम्र का कोई व्यक्ति बाजार में नहीं जा सकता.''
बेटी सिया के साथ ऋचा.
वे कहती हैं कि ''सरकार के बनाए इस तरह के नियमों से बेहतर परिणाम मिले हैं. इससे कोरोना संक्रमितों की संख्या कम हुई. इसी के कारण सरकार ने तीन चरणों में लॉकडाउन खत्म करने का प्लान बनाया. फिलहाल पहला चरण चल रहा है. यह ठीक रहा तो फिर अगले चरणों में क्रमश: लॉकडाउन खत्म किया जाएगा. सरकार की कोशिश है कि जुलाई खत्म होते-होते सब कुछ सामान्य हो जाए.''
ऋचा का परिवार.
ऋचा कहती हैं कि ''लॉकडाउन में मेरे परिवार का रुटीन भी बदल गया है. सुबह उठकर व्यायाम फिर भगवान का ध्यान और फिर ऑफिस का काम करते-करते खाना बनाना.'' उन्होंने बताया कि ''लॉकडाउन में वर्क फ्राम होम होने के कारण पूरा वक्त परिवार के साथ बीत रहा है. पति अंशुल और मैं अपनी बेटी सिया के साथ भरपूर समय बिता पा रहे हैं. उसे बहुत कुछ ऐसा सिखा रहे हैं जो आम दिनों की व्यस्तताओं में संभव नहीं हो पाता. हम अलग-अलग तरह की डिशें बनाते हैं और उन्हें इनज्वॉय करते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि हम खेल भी पाते हैं.'' ऋचा कहती हैं कि जल्द से जल्द इस महामारी से छुटकारा मिल जाए तो दुनिया अपनी गति को फिर से पा सकेगी.
सकारात्मक सोच विकसित करने का वक्त
सउदी अरब के अल जुबैल में रह रहीं टीचर रूमा दुबे कहती हैं कि ''मैं और मेरा परिवार पिछले 14 साल से अल जुबैल में है. यहां बड़ी संख्या में भारतीय हैं. हमारा परिवार शहर के इंडिया कम्पाउंड इलाके में रहता है. मैं इंडिया स्कूल में हिन्दी पढ़ाती हूं.'' उन्होंने बताया कि ''कुछ अरसे पहले तक सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक कोरोना वायरस ने सउदी अरब को भी हिला दिया. इसने जैसे अचानक जनजीवन पर ब्रेक लगा दिया और सब कुछ बदल गया. यहां आठ मार्च से स्कूल बंद हो गए. मेरा छोटा बेटा 12वीं में पढ़ता है. उसकी परीक्षाएं रुक गईं और उसके भविष्य पर ग्रहण लग गया. हालांकि सउदी अरब सरकार ने देश के हालात नहीं बिगड़ने दिए और कोरोना की आहट मिलते ही लॉकडाउन कर दिया. चूंकि यहां की आबादी काफी कम है इसलिए सोशल डिस्टेंसिंग को लेकर ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत भी नहीं थी.''
रूमा ने कहा कि ''लॉकडाउन से दुनिया थमी हुई है लेकिन इसके कई फायदे भी हुए हैं. मेरा अनुभव बहुत अच्छा है. इस दौरान मैं अपने परिवार को काफी समय दे पा रही हूं. योग और कुकिंग के लिए भी भरपूर समय मिल पा रहा है. हालांकि मेरा स्कूल अब बंद नहीं है. मैं जूम क्लास के जरिए अपने छात्रों को पढ़ा रही हूं. मेरे विद्यार्थी पूछते हैं कि स्कूल कब शुरू होगा. निश्चित ही बच्चे सिर्फ घर में बैठकर नहीं पढ़ सकते, स्कूल में उनकी मौजूदगी उनके पूरे व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है.''
रूमा अपने पति प्रभात और बेटे अथर्व के साथ.
वे कहती हैं कि ''कभी-कभी सोचती हूं कि दुनिया कुछ ज्यादा ही तेजी से भागने लगी थी. ईश्वर ने यह वक्त दिया ताकि लोग अपनों के साथ ज्यादा समय बिता सकें और महामारी के बुरे वक्त में सकारात्मक सोच विकसित कर सकें.''
अल जुबैल में डेढ़ सौ से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित हुए और इससे मरने वालों में एक भारतीय भी शामिल हैं जो कि केरल के मूल निवासी थे. सउदी अरब में अब तक 1,16,021 केस सामने आए जिसमें से 35,145 एक्टिव केस हैं और 80,019 मरीज ठीक हो चुके हैं. यहां वायरस ने 857 लोगों की जान ले ली है.
किसी भी देश में रहें, जरूरतमंदों की मदद करना जरूरी
मध्य अफ्रीका की छोटी सी काउंटी गेबन के लिब्रेविले शहर में रह रहे जियोलॉजिस्ट परवेज अहमद खान कोविड-19 महामारी के इस भयावह दौर में उज्जैन के अपने परिवार से काफी दूर अकेले हैं. पोर्ट पर कार्यरत परवेज मैगनीज के क्वालिटी कंट्रोल का काम करते हैं इसलिए वर्क फ्राम होम की सुविधा उनके लिए संभव नहीं है.
परवेज ने बताया कि ''कोविड-19 का गेबन पर काफी असर हुआ. इसका प्रमुख कारण यह था कि यहां पर दैनिक जरूरत के सामान का बहुत कम उत्पादन होता है. अधिकांश सामान विदेशों से आयात होता है. उन्होंने बताया कि मेडिकल सुविधाएं जरूरत से काफी कम हैं. लोगों में भी महामारी को लेकर अधिक जागरूकता नहीं है. जहां सरकार ने ज्यादा बंदिशें नहीं लगाईं वहीं लोग भी जो थोड़े-बहुत प्रतिबंध हैं उनका पालन ठीक से नहीं कर रहे हैं. हालांकि यहां बसे सभी भारतीय इस महामारी को लेकर चिंतित हैं.''
गेबन में कोरोना वायरस संक्रमण के 3,463 केस अब तक आए जिसमें से 2,416 एक्टिव केस हैं और 1024 लोग स्वस्थ हो चुके हैं. इस देश में कोविड-19 ने 23 लोगों की जान ले ली है. परवेज ने बताया कि ''गेबन में टोटल लॉकडाउन 14 दिन का हुआ था लेकिन सरकार इतनी सक्षम नहीं है कि पूरी आबादी का पेट भर सके इसलिए खोल दिया. फिलहाल शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक लॉकडाउन रहता है. बाकी समय लोगों को मास्क पहनकर आवाजाही करने की छूट है. सैनिटाइजेशन करके सार्वजनिक स्थलों पर जाने का नियम है. दुकान, मॉल वगैरह में इसके बिना प्रवेश नहीं दिया जाता.''
परवेज अहमद खान.
परवेज बताते हैं कि गेबन में महामारी का सबसे ज्यादा नुकसान गरीबों ने उठाया. खास तौर पर डेली वेजेस लेबर बहुत परेशान हुए. उन्होंने बताया कि ''शहर में किराना, सब्जियां आसानी से मिल रही हैं. कोविड-19 ने रहन-सहन बहुत बदल डाला है. अब मास्क लगाए बगैर घर से नहीं निकल सकते. लोगों से दूरी बनाकर रखाना होती है. कार में दो लोगों से ज्यादा लोग सवार नहीं हो सकते. अब बार-बार हाथ धोने की आदत भी हो गई है. यदि कभी हाथ धोना भूल जाएं तो दिन भर दिमाग में कोरोना का भय बना रहता है. लगता है कि गले में कुछ फंस रहा है. हालांकि धीरे-धीरे इस महामारी के माहौल में जीने की आदत होती जा रही है.''
परवेज ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने खाना बनाना और ऑनलाइन गिटार सीखना शुरू किया जिससे फायदा हुआ. अब अलग-अलग डिशें बनाना सीख लिया है और गिटार के तारों से मधुर स्वर, धुनें निकलने लगी हैं. उन्होंने बताया कि यहां के अत्यधिक गरीब लोगों तक वे अपने साथियों के साथ राशन पहुंचा रहे हैं. वे कहते हैं कि ''हम किसी भी देश में रह रहे हों, जरूरतमंदों को मदद देना तो जरूरी है.''
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