कनाडाई अध्ययन में देखा गया कि जलवायु परिवर्तन का महत्व और इससे जुड़ी कार्रवाई किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व लक्षणों के साथ कैसे भिन्न होती है, अध्ययन में पाया कि जो व्यक्ति प्रकृति को जितना अधिक महत्व देगा, उतनी ही अधिक संभावना है कि वह जलवायु कार्रवाई में संलग्न होगा. बहुत अधिक जलवायु चिंता करना लोगो के लिए पक्षाघात का कारण बन सकती है, जिससे जलवायु कार्रवाई में बाधा आ सकती है. इस स्थिति में, लोगों को कई तरह का संघर्ष करना पड़ सकता है. लोग अपने अंदर भी कई तरह के बदलाव महसूस कर सकते हैं, जैसे कि पैनिक अटैक, अनिद्रा, जुनूनी सोच और भूख में बदलाव का अनुभव कर सकते हैं.
हम सभी के साथ कई बार ऐसा होता है जब हम अपने भविष्य को लेकर चिंतित महसूस करते हैं. शायद इस गर्मी में कई लोगों के साथ ज्यादा बार ऐसा हुआ है, क्योंकि हम गर्म होती जलवायु के कारण जंगल की आग और गर्म हवाओं अनुभव किये हैं. सामान्य चिंता जलवायु या 'इको'-चिंता को तीव्र करती है.
यह चिंता कुछ लोगों को जलवायु कार्रवाई के लिए प्रेरित कर सकता है, जबकि अन्य लोगों के लिए यह पक्षाघात और निष्क्रियता की स्थिति पैदा कर सकती है.
हमारे हालिया कनाडाई अध्ययन में देखा गया कि जलवायु परिवर्तन का महत्व और इससे जुड़ी कार्रवाई किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व लक्षणों के साथ भिन्न होती है. हमने पाया कि किसी व्यक्ति की सामान्य चिंता प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी और वह प्रकृति को जितना अधिक महत्व देगा, उतनी ही अधिक संभावना है कि वह जलवायु कार्रवाई से जुड़ता रहेगा.
पिछले साल सरकारी पैनल ने अंतिम चेतावनी दी थी कि हमे समय रहते जलवायु परिवर्तन पर कार्यवाई करनी चाहिए. दुनिया भर में कई देशों ने व्यक्तियों और अपनी सरकारों को जलवायु परिवर्तन पर कार्य और मदद करने के लिए प्रेरित किया. लोगो को व्यक्तिगत जीवनशैली में बदलाव के लिए प्रेरित किया जैसे कि ऐसे वाहन पर स्विच करना जो जीवाश्म ईंधन पर निर्भर नहीं है, लाल मांस की खपत को कम करने जैसी कोशिशों से वैश्विक स्तर पर लागू होने पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है.
सामान्य चिंता भविष्य की घटनाओं के बारे में चिंता करने की प्रवृत्ति है, चिंता में वृद्धि आपको सतर्क रख सकती है और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए तैयार रह सकती है, लेकिन एक बार जब यह एक सीमा से अधिक हो जाती है, तो प्रदर्शन ख़राब होने लगता है.
चिंता में वृद्धि एक अच्छी बात होती है, जो हमें किसी घटना की तैयारी के लिए प्रेरित करती है, जैसे परीक्षा से पहले पढ़ाई करना या तूफ़ान आने से पहले सुरक्षा के जरूरी कदम उठाना. लेकिन यही चिंता जब अत्यधिक हो जाती है या इसको नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है, तो यह मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है और सामान्यीकृत चिंता विकार को जन्म दे सकती है, जिससे थकान, बेचैनी और चिड़चिड़ेपन की भावना पैदा होती है और हमारी तैयारी करने की क्षमता कम हो जाती है. जलवायु चिंता तब होती है जब लोग जलवायु परिवर्तन से भविष्य में होने वाले पर्यावरणीय परिवर्तनों के बारे में चिंता करते हैं.
हालाकी, जलवायु चिंता को रोगात्मक स्थिति के रूप में मान्यता नहीं दी गई है, वास्तव में कुछ लोगों ने तर्क दिया है कि, जलवायु चिंता जलवायु संकट के प्रति एक विवेकपूर्ण और गंभीर प्रतिक्रिया है.कुछ लोगों के लिए, जलवायु संबंधी चिंता किसी जलवायु संबंधी घटना से गुज़रने से उत्पन्न होती है, जैसे कि जब कोई किसान सूखे के कारण अपनी फसल खो देता है. इसके अलावा, जिन लोगों का प्रकृति से गहरा संबंध है, उनमें जलवायु संबंधी चिंता का स्तर अधिक होता है, क्योंकि वे अपने आसपास हो रहे पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति अधिक जागरूक होते हैं.अमीर देशों में, जलवायु चिंता लोगों के लिए उत्सर्जन को कम करने की दिशा में कार्रवाई करने के लिए एक प्रेरक शक्ति होती है.
ग्लोबल साउथ की बात करें तो, वह के गरीब देशों के लोग भी जलवायु संबंधी चिंता का अनुभव करते हैं, लेकिन आर्थिक और राजनीतिक बाधाएं होने के कारण, उनके व्यक्तिगत स्तर पर जलवायु कार्यों को सीमित कर देती है.स्वीडन में जन्मी और वहीं रहने वाली एक प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता- ग्रेटा थुनबर्ग, जलवायु परिवर्तन सक्रियता का लोकप्रिय चेहरा हैं. थुनबर्ग ग्लोबल साउथ में कई लोगों द्वारा जलवायु परिवर्तन के संबंध में अनुभव की गई चिंता की भी प्रतिनिधि भी हैं. थुनबर्ग ने 2019 विश्व आर्थिक मंच में विश्व नेताओं को प्रेरित करने के लिए जलवायु चिंता की बात करते हुए कहा, “मैं चाहती हूं कि आप उस डर को महसूस करें जो मैं हर दिन महसूस करती हूं. और फिर मैं चाहती हूं कि आप कोई ठोस कदम उठाएं.
लोगो में बहुत अधिक जलवायु चिंता पक्षाघात या कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकती है, जिसका सीधा असर जलवायु कार्रवाई पर पड़ेगा. इस स्थिति में, लोगों को काम पर जाने या यहां तक कि अन्य लोगों से मेलजोल बढ़ाने में भी दिक्कत का सामना कर पड़ सकता है. ऐसे लोग अपने अंदर पैनिक अटैक, अनिद्रा, जुनूनी सोच और भूख में बदलाव का अनुभव कर सकते हैं.
अध्ययन के अनुसार, लगभग सभी उम्र के लोग जलवायु संबंधी चिंता का अनुभव करते हैं, परन्तु कम उम्र के लोग इसे लेकर ज्यादा चिंतित रहते हैं, क्योंकि वे इसके बारे में कुछ भी करने में असमर्थ महसूस करते हैं इस स्थिति में जलवायु परिवर्तन का उनके भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है.
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