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संस्था के हरजीत लोगों को संबोधित करते हुए
पेरिस:
जलवायु परिवर्तन से जुड़ी संस्था एक्शन एड के हरजीत सिंह, पेरिस में विदेशी मीडिया और डेलीगेट्स को भारत की चिंताओं से वाकिफ कराते हैं और उनके पीछे चेन्नई की आपदा का स्लाइड शो दिखता है। बाढ़ में डूबे घर, जान बचाने के लिए संघर्ष करते लोग और पानी से लबालब बंद हो चुका एयरपोर्ट। बारिश के मामले में चेन्नई ने पिछले 100 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है।
इन तस्वीरों को प्रेस कांफ्रेंस में दिखाना और उसके बारे में बात करना एक्शन एड जैसी संस्थाओं का रणनीतिक फैसला है ताकि दुनिया – खासतौर से यूरोपीय देशों और अमेरिका को - पता चले कि भारत जलवायु परिवर्तन की कैसी मार झेल रहा है।
हरजीत के साथ पेरिस महासम्मेलन में हिस्सा लेने आए पर्यावरण से जुड़े कई दूसरे भारतीय भी चेन्नई की तस्वीरों का इस्तेमाल चेतावनी की तरह कर रहे हैं।
चेन्नई की बारिश से पहले भी भारत ने पिछले दस सालों में एक्सट्रीम वैदर की कई घटनायें झेली हैं जिनमें 2005 में मुंबई में आई बाढ़, उसके बाद 2013 में केदारनाथ आपदा और 2014 में फिर कश्मीर में आई आपदा के अलावा उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के चक्रवाती तूफान शामिल हैं।
जानकार इन सबमें कहीं नहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन औऱ कुदरत से की जा रही छेड़छाड़ को ज़िम्मेदार मानते हैं। भारतीय वार्ताकारों का कहना है कि इन घटनाओं को दुनिया कोई भी देश नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।
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भारतीय वार्ताकार और जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद् के सदस्य अजय माथुर कहते हैं, “हम यहां वार्ता करने आए हैं और हमारा ये लक्ष्य है कि हम सब यहां एक समझौता करें जो न्यायपूर्ण हो। इस समझौते में उन लोगों का खयाल रखा जाये जो जलवायु परिवर्तन से पीड़ित हैं और उनका भी जो 30 करोड़ भाई बहन अंधेरे में हैं जिनके पास बिजली नहीं है।
साफ है कि भारत अमीर देशों से कह रहा है कि पर्यावरण को बिगाड़ने में उनकी करनी का नुकसान सारी दुनिया को झेलना पड़ रहा है और उसमें अधिकतर वो देश हैं जहां बेहद गरीब लोग रहते हैं और जिन्हें अभी तरक्की की राह में लंबा रास्ता तय करना है।
इन तस्वीरों को प्रेस कांफ्रेंस में दिखाना और उसके बारे में बात करना एक्शन एड जैसी संस्थाओं का रणनीतिक फैसला है ताकि दुनिया – खासतौर से यूरोपीय देशों और अमेरिका को - पता चले कि भारत जलवायु परिवर्तन की कैसी मार झेल रहा है।
हरजीत के साथ पेरिस महासम्मेलन में हिस्सा लेने आए पर्यावरण से जुड़े कई दूसरे भारतीय भी चेन्नई की तस्वीरों का इस्तेमाल चेतावनी की तरह कर रहे हैं।
चेन्नई की बारिश से पहले भी भारत ने पिछले दस सालों में एक्सट्रीम वैदर की कई घटनायें झेली हैं जिनमें 2005 में मुंबई में आई बाढ़, उसके बाद 2013 में केदारनाथ आपदा और 2014 में फिर कश्मीर में आई आपदा के अलावा उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के चक्रवाती तूफान शामिल हैं।
जानकार इन सबमें कहीं नहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन औऱ कुदरत से की जा रही छेड़छाड़ को ज़िम्मेदार मानते हैं। भारतीय वार्ताकारों का कहना है कि इन घटनाओं को दुनिया कोई भी देश नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता।
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भारतीय वार्ताकार और जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद् के सदस्य अजय माथुर कहते हैं, “हम यहां वार्ता करने आए हैं और हमारा ये लक्ष्य है कि हम सब यहां एक समझौता करें जो न्यायपूर्ण हो। इस समझौते में उन लोगों का खयाल रखा जाये जो जलवायु परिवर्तन से पीड़ित हैं और उनका भी जो 30 करोड़ भाई बहन अंधेरे में हैं जिनके पास बिजली नहीं है।
साफ है कि भारत अमीर देशों से कह रहा है कि पर्यावरण को बिगाड़ने में उनकी करनी का नुकसान सारी दुनिया को झेलना पड़ रहा है और उसमें अधिकतर वो देश हैं जहां बेहद गरीब लोग रहते हैं और जिन्हें अभी तरक्की की राह में लंबा रास्ता तय करना है।
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