इस्लामाबाद:
पाकिस्तान के वरिष्ठ वकील चौधरी एतजाज एहसान अदालत की अवमानना मामले में प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी का मुकदमा लड़ेंगे। उन्होंने मंगलवार को इस सम्बंध में प्रधानमंत्री से मुलाकात की। वह पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के भी वकील हैं।
गिलानी को सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय के सात न्यायमूर्तियों की खंडपीठ ने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दोबारा खोलने और इस सम्बंध में स्विट्जरलैंड को पत्र लिखने के अपने पूर्ववर्ती आदेश का अनुपालन नहीं किए जाने के लिए अवमानना नोटिस जारी करते हुए 19 जनवरी को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया था।
नोटिस मिलने के बाद गिलानी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की पेशकश भी की थी और नेशनल असेम्बली में कहा था कि सरकार न्यायपालिका सहित किसी भी प्रतिष्ठान के साथ टकराव नहीं चाहती। उन्होंने निर्धारित तिथि पर अदालत में पेश होने की बात भी कही थी।
पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक ने मंगलवार को कहा कि पूरा देश प्रधानमंत्री के इस कदम की प्रशंसा करता है। इससे गलतफहमियों को दूर करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने हमेशा सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान और इसके फैसलों का अनुपालन किया है।
इस बीच, गिलानी को भेजे गए अवमानना नोटिस को सर्वोच्च न्यायालय के लाहौर रजिस्ट्रार कार्यालय में चुनौती दी गई है। नोटिस के खिलाफ यह याचिका वकील जफरुल्लाह ने दायर की है। उनका तर्क है कि संविधान की धारा 248-1 के तहत प्रधानमंत्री को भी वे विशेषाधिकार प्राप्त हैं, जो राष्ट्रपति को हैं।
समाचार पत्र 'द नेशन' के मुताबिक, उन्होंने यह भी कहा कि जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले खोलने के लिए स्विट्जरलैंड सरकार को पत्र लिखना प्रधानमंत्री का काम नहीं है।
इस बीच, विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी-नवाज (पीएमएल-एन) ने कहा कि प्रधानमंत्री को अदालत के आदेश को स्वीकार करना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष नवाज शरीफ ने यह भी कहा कि यदि गिलानी ने उनकी पार्टी की सलाह पर काम किया होता तो स्थिति खराब नहीं होती।
सर्वोच्च न्यायालय में 19 जनवरी को पेश होने सम्बंधी गिलानी की घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते नवाज ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री लोकतंत्र में यकीन रखते हैं तो उन्हें अदालत के आदेश को स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि 'तानाशाहों के असंवैधानिक कदम' का समर्थन करने वाले न्यायाधीशों को भी जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
एक अन्य घटनाक्रम में रक्षा सचिव लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) नईम खालिद लोधी को बर्खास्त करने के सरकार के फैसले को भी चुनौती दी गई है। लोधी की बर्खास्तगी के खिलाफ यह याचिका वकील तारिक असद ने दायर की है। इसमें अदालत से प्रधानमंत्री गिलानी को बर्खास्तगी आदेश तब तक वापस लेने के लिए कहा है, जब तक कि गोपनीय संदेश ममाले में जांच पूरी नहीं हो जाती। याचिका में प्रधानमंत्री, पूर्व रक्षा सचिव और कार्यकारी रक्षा सचिव को प्रतिवादी बनाया गया है।
गिलानी को सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय के सात न्यायमूर्तियों की खंडपीठ ने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दोबारा खोलने और इस सम्बंध में स्विट्जरलैंड को पत्र लिखने के अपने पूर्ववर्ती आदेश का अनुपालन नहीं किए जाने के लिए अवमानना नोटिस जारी करते हुए 19 जनवरी को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया था।
नोटिस मिलने के बाद गिलानी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे की पेशकश भी की थी और नेशनल असेम्बली में कहा था कि सरकार न्यायपालिका सहित किसी भी प्रतिष्ठान के साथ टकराव नहीं चाहती। उन्होंने निर्धारित तिथि पर अदालत में पेश होने की बात भी कही थी।
पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री रहमान मलिक ने मंगलवार को कहा कि पूरा देश प्रधानमंत्री के इस कदम की प्रशंसा करता है। इससे गलतफहमियों को दूर करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने हमेशा सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान और इसके फैसलों का अनुपालन किया है।
इस बीच, गिलानी को भेजे गए अवमानना नोटिस को सर्वोच्च न्यायालय के लाहौर रजिस्ट्रार कार्यालय में चुनौती दी गई है। नोटिस के खिलाफ यह याचिका वकील जफरुल्लाह ने दायर की है। उनका तर्क है कि संविधान की धारा 248-1 के तहत प्रधानमंत्री को भी वे विशेषाधिकार प्राप्त हैं, जो राष्ट्रपति को हैं।
समाचार पत्र 'द नेशन' के मुताबिक, उन्होंने यह भी कहा कि जरदारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले खोलने के लिए स्विट्जरलैंड सरकार को पत्र लिखना प्रधानमंत्री का काम नहीं है।
इस बीच, विपक्षी दल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी-नवाज (पीएमएल-एन) ने कहा कि प्रधानमंत्री को अदालत के आदेश को स्वीकार करना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष नवाज शरीफ ने यह भी कहा कि यदि गिलानी ने उनकी पार्टी की सलाह पर काम किया होता तो स्थिति खराब नहीं होती।
सर्वोच्च न्यायालय में 19 जनवरी को पेश होने सम्बंधी गिलानी की घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते नवाज ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री लोकतंत्र में यकीन रखते हैं तो उन्हें अदालत के आदेश को स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि 'तानाशाहों के असंवैधानिक कदम' का समर्थन करने वाले न्यायाधीशों को भी जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।
एक अन्य घटनाक्रम में रक्षा सचिव लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) नईम खालिद लोधी को बर्खास्त करने के सरकार के फैसले को भी चुनौती दी गई है। लोधी की बर्खास्तगी के खिलाफ यह याचिका वकील तारिक असद ने दायर की है। इसमें अदालत से प्रधानमंत्री गिलानी को बर्खास्तगी आदेश तब तक वापस लेने के लिए कहा है, जब तक कि गोपनीय संदेश ममाले में जांच पूरी नहीं हो जाती। याचिका में प्रधानमंत्री, पूर्व रक्षा सचिव और कार्यकारी रक्षा सचिव को प्रतिवादी बनाया गया है।
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