ढाका:
बांग्लादेश के एक विशेष न्यायाधिकरण ने वर्ष 1971 में हुए मुक्ति संग्राम के दौरान मानवता के खिलाफ अपराधों को अंजाम देने के जुर्म में कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी के एक शीर्ष नेता को बुधवार को मौत की सजा सुनाई।
जमात के 65 वर्षीय महासचिव अली अहसन मोहम्मद मुजाहिद को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (2) ने मौत की सजा सुनाई।
इस फैसले से दो दिन पहले ही जमात-ए-इस्लामी के 91 वर्षीय प्रमुख गुलाम आजम को एक न्यायाधिकरण ने 90 साल की सजा सुनाई। यह सजा उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ज्यादतियों का प्रमुख षड्यंत्रकारी होने के आरोप में सुनाई गई।
न्यायाधीशों के तीन सदस्यीय दल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ओबैदुल हस्सा ने फैसले का अहम हिस्सा पढ़ते हुए कहा, ‘‘उन्हें तब तक फांसी पर लटकाया जाए जब तक उनकी मौत नहीं हो जाती।’’ उन्होंने कहा कि मुजाहिद के खिलाफ लगाए गए सात में से पांच आरोप संदेह से परे हैं और अदालत मुक्ति समर्थक कई कार्यकर्ताओं को मार डालने में उनके निजी तौर पर संलिप्त रहने के दो आरोपों पर उन्हें मौत की सजा सुनाती है।
मुजाहिद, जमात की तत्कालीन छात्र शाखा के प्रबंधन से संचालित होने वाले कुख्यात अल-बदर मिलीशिया बल में दूसरे नंबर की हैसियत रखते थे।
फैसले पर गुस्से से भरी प्रतिक्रिया देते हुए 65 वर्षीय मुजाहिद ने कहा कि फैसला ‘100 प्रतिशत अन्याय है’’ और कुरान की एक आयत पढ़ी।
कठघरे में खड़े मुजाहिद ने कहा, ‘मैं शत-प्रतिशत निर्दोष हूं।’ उनके वकील ने कहा कि वह इस ‘अनुचित’ फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगे।
अल-बदर ने मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना की सहायक बल की भूमिका निभाते हुए प्रमुख बांग्ला कार्यकर्ताओं को मारा था। मुजाहिद को ज्यादतियों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। न्यायाधीकरण ने कहा कि मुजाहिद ने वरिष्ठ पत्रकार सिराजुद्दीन हुसैन की हत्या का हुक्म दिया था और पाकिस्तान के एक सैन्य अधिकारी को कई प्रमुख लोगों को यातना देने तथा हत्या करने के लिए उकसाया था। इनमें मशहूर संगीतकार अल्ताफ महमूद और स्वतंत्रता सेना रूमी भी शामिल थे।
इस फैसले को लेकर जमात ने गुरुवार को राष्ट्रव्यापी हड़तान का आह्वान किया है। युद्ध अपराध के मामलों की सुनवाई आरंभ होने के बाद मुजाहिद जमात के छठे ऐसे नेता हैं जिन्हें न्यायाधीकरण ने दोषी ठहराया है।
मुजाहिद से पहले आजम को 90 साल तथा अब्दुल कादिर मुल्ला को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। इनके अलावा अबुल कलाम आजाद, दिलवर हुसैन सईदी तथा मुहम्मद कमरूजमां को मौत की सजा सुनाई गई।
जमात के 65 वर्षीय महासचिव अली अहसन मोहम्मद मुजाहिद को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (2) ने मौत की सजा सुनाई।
इस फैसले से दो दिन पहले ही जमात-ए-इस्लामी के 91 वर्षीय प्रमुख गुलाम आजम को एक न्यायाधिकरण ने 90 साल की सजा सुनाई। यह सजा उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ज्यादतियों का प्रमुख षड्यंत्रकारी होने के आरोप में सुनाई गई।
न्यायाधीशों के तीन सदस्यीय दल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ओबैदुल हस्सा ने फैसले का अहम हिस्सा पढ़ते हुए कहा, ‘‘उन्हें तब तक फांसी पर लटकाया जाए जब तक उनकी मौत नहीं हो जाती।’’ उन्होंने कहा कि मुजाहिद के खिलाफ लगाए गए सात में से पांच आरोप संदेह से परे हैं और अदालत मुक्ति समर्थक कई कार्यकर्ताओं को मार डालने में उनके निजी तौर पर संलिप्त रहने के दो आरोपों पर उन्हें मौत की सजा सुनाती है।
मुजाहिद, जमात की तत्कालीन छात्र शाखा के प्रबंधन से संचालित होने वाले कुख्यात अल-बदर मिलीशिया बल में दूसरे नंबर की हैसियत रखते थे।
फैसले पर गुस्से से भरी प्रतिक्रिया देते हुए 65 वर्षीय मुजाहिद ने कहा कि फैसला ‘100 प्रतिशत अन्याय है’’ और कुरान की एक आयत पढ़ी।
कठघरे में खड़े मुजाहिद ने कहा, ‘मैं शत-प्रतिशत निर्दोष हूं।’ उनके वकील ने कहा कि वह इस ‘अनुचित’ फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देंगे।
अल-बदर ने मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना की सहायक बल की भूमिका निभाते हुए प्रमुख बांग्ला कार्यकर्ताओं को मारा था। मुजाहिद को ज्यादतियों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। न्यायाधीकरण ने कहा कि मुजाहिद ने वरिष्ठ पत्रकार सिराजुद्दीन हुसैन की हत्या का हुक्म दिया था और पाकिस्तान के एक सैन्य अधिकारी को कई प्रमुख लोगों को यातना देने तथा हत्या करने के लिए उकसाया था। इनमें मशहूर संगीतकार अल्ताफ महमूद और स्वतंत्रता सेना रूमी भी शामिल थे।
इस फैसले को लेकर जमात ने गुरुवार को राष्ट्रव्यापी हड़तान का आह्वान किया है। युद्ध अपराध के मामलों की सुनवाई आरंभ होने के बाद मुजाहिद जमात के छठे ऐसे नेता हैं जिन्हें न्यायाधीकरण ने दोषी ठहराया है।
मुजाहिद से पहले आजम को 90 साल तथा अब्दुल कादिर मुल्ला को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। इनके अलावा अबुल कलाम आजाद, दिलवर हुसैन सईदी तथा मुहम्मद कमरूजमां को मौत की सजा सुनाई गई।
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