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दोहा सम्मेलन में मुस्लिम देशों ने इजरायल पर हमला तो बोला लेकिन कार्रवाई के नाम पर चुप्पी साध ली

दोहा में हुए अरब-इस्लामिक शिखर सम्मेलन से पहले उम्मीदें थीं कि इस मंच से इजरायल के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे. लेकिन घंटों चली तकरीरों और निंदा प्रस्तावों के बावजूद, सम्मेलन किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से बचता नजर आया.

दोहा सम्मेलन में मुस्लिम देशों ने इजरायल पर हमला तो बोला लेकिन कार्रवाई के नाम पर चुप्पी साध ली
  • दोहा में हुए अरब-इस्लामिक शिखर सम्मेलन में इजरायल के खिलाफ कोई ठोस दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई
  • सम्मेलन में इजरायल की सैन्य कार्रवाइयों की आलोचना के बावजूद आर्थिक प्रतिबंध, राजनयिक कटौती का कोई निर्णय नहीं
  • अब्राहम समझौते के सदस्य देशों यूएई, बहरीन और मोरक्को ने सम्मेलन में स्पष्ट विरोध नहीं जताया
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कतर की राजधानी दोहा में मुस्लिम देशों की बैठक हुई. इस अरब-इस्लामिक शिखर सम्मेलन से पहले उम्मीदें थीं कि इस मंच से इजरायल के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाए जाएंगे. लेकिन घंटों चली तकरीरों और निंदा प्रस्तावों के बावजूद, सम्मेलन किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से बचता नजर आया. इससे कई मुस्लिम देशों और फिलिस्तीन समर्थकों में निराशा छा गई.

सिर्फ शब्दों की मार, कार्रवाई नहीं

शिखर सम्मेलन के बाद बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में इजरायल की सैन्य कार्रवाइयों की तीखी आलोचना की गई, लेकिन ना तो कोई आर्थिक प्रतिबंध लगा, ना ही राजनयिक संबंधों में कटौती का संकेत दिया गया. फिलिस्तीन पर हो रहे हमलों की भयावहता के बावजूद, सम्मेलन का रुख ज्यादा प्रतीकात्मक ही रहा.

अब्राहम समझौते के हस्ताक्षरकर्ता देश चुप

यूएई, बहरीन और मोरक्को, ये तीन देश अब्राहम समझौते के हिस्सेदार हैं और ये सम्मेलन में चुप्पी साधे रहे. इजरायल के साथ उनके रिश्तों को देखते हुए, उनके इस रवैये ने यह दिखाया कि फिलिस्तीन पर नाराजगी होने के बावजूद कुछ देश साफ स्टैंड लेने से बच रहे हैं.

मौजूद थे MBS, लेकिन बोले नहीं

सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) सम्मेलन में मौजूद रहे, लेकिन उन्होंने कोई भाषण नहीं दिया. इस चुप्पी ने कइयों को चौंका दिया, खासकर ऐसे समय में जब मुस्लिम दुनिया उनसे नेतृत्व की उम्मीद कर रही थी. यमन के राष्ट्रपति नेतृत्व परिषद के चेयरमैन डॉ. राशाद मोहम्मद अल-अलीमी ने इजरायल की विस्तारवादी नीतियों और क्षेत्रीय वर्चस्व की गलतफहमी को रोकने के लिए एक समग्र अरब-इस्लामिक रणनीति अपनाने की वकालत की. उन्होंने अपने संबोधन में कहा,  “आज हम जिन भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, वे यह साबित करती हैं कि विस्तारवादी क्षेत्रीय शक्तियां और सशस्त्र समूह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं.”

हूतियों पर भी साधा निशाना

डॉ. अलीमी ने न केवल इजरायल की नीतियों की आलोचना की बल्कि क्षेत्रीय अस्थिरता के लिए हूथी लड़ाकों को भी जिम्मेदार ठहराया. यह बयान ऐसे समय में आया जब हूतियों द्वारा लाल सागर में की गई गतिविधियों की आलोचना कई मंचों से हो रही है.

फिर दोहराया गया वही पैटर्न

इस सबके बावजूद, दोहा शिखर सम्मेलन का निष्कर्ष एक परिचित परिदृश्य जैसा रहा- यहां तेज भाषा और तीखे नारे तो थे लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं.

इजरायल पर प्रतिबंधों, राजनयिक बहिष्कार, या किसी सामूहिक दंडात्मक नीति की बात नहीं की गई. अब्राहम समझौते में शामिल देशों की चुप्पी, और सऊदी क्राउन प्रिंस MBS की मौजूदगी के बावजूद उनका न बोलना, इन सबने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अरब एकता केवल भाषणों तक सीमित है?

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