मिडिल ईस्ट में तनाव हर दिन बढ़ता जा रहा है. एक तरफ इजरायल फिलिस्तीनी संगठन हमास के साथ गाजा पट्टी में जंग लड़ रहा है. दूसरी ओर उसने लेबनान में भी हमले करने शुरू कर दिए हैं. इजरायल की सेना लेबनान में मिलिशिया ग्रुप हिज्बुल्लाह के ठिकानों को टारगेट कर रही है. उधर, इजरायल के कट्टर दुश्मन ईरान भी आसमान से बम बरसा रहा है. ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई ने शुक्रवार को तेहरान की ग्रैंड मस्जिद में हिजबुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह को सुपुर्द-ए-खाक किए जाने से पहले नमाज पढ़ी. इस दौरान खामेनेई ने दुनिया के मुसलमानों को दुश्मन इजरायल के खिलाफ एकजुट होने की अपील की.
खामेनेई ने कहा, "दुनिया में एक भी ऐसी अदालत नहीं है, जो फिलिस्तीनियों को अपनी जमीन की हिफाजत करने के लिए दोषी ठहरा सके. इजरायल का सामना करने के लिए अरब देशों को साथ आना होगा. इजरायल का खात्मा जरूरी है." खामेनेई ने कहा कि मंगलवार को इजरायल पर हुआ मिसाइल अटैक बहुत छोटी सजा थी. जरूरत पड़ी तो फिर हमला करेंगे.
बहरीन: मिडिल ईस्ट के देश बहरीन ने अभी तक साफ नहीं किया है कि जंग की स्थिति में वह इजरायल और ईरान में से किसका साथ देगा. बहरीन के कुछ मिलिशिया ग्रुप और राजनीतिक दल ईरान का समर्थन कर रहे हैं. इस देश ने 2020 से अपने संबध इजरायल से ठीक कर लिए थे.
लेबनान: इजरायल के हमलों का सामना कर रहा लेबनान पूरी तरह से ईरान के साथ है. लेबनान के मिलिशिया ग्रुप हिज्बुल्लाह को ईरान की तरफ से भारी फंडिंग और हथियार मिलते हैं. हिज्बुल्लाह चीफ नसरल्लाह की मौत का बदले लेने के लिए ही ईरान ने मंगलवार को इजरायल पर 180 से ज्यादा मिसाइलें दागीं.
इराक: इराक फिलहाल तो इस जंग से बाहर है. हालांकि, इराक और ईरान की दुश्मनी जगजाहिर है. लेकिन इराक ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. इराक में ईरानी समर्थित संगठनों ने इजरायल पर हमलों का समर्थन किया है. ईरान की मिसाइल सीरिया और इराक की हवाई सीमा को क्रॉस करके इजरायल में गिरी थीं.
फिलिस्तीन: 7 अक्टूबर 2023 को हमास ने इजरायल पर हमले किए थे. इसके बाद से इजरायल लगातार फिलिस्तीन और गाजा पट्टी में हमास के ठिकानों को निशाना बना रहा है. ऐसे में साफ है कि ईरान और इजरायल की जंग शुरू हुई, तो फिलिस्तीन और हमास ईरान का ही साथ देगा.
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जॉर्डन: मिडिल ईस्ट में तनावपूर्ण स्थिति के बीच जॉर्डन ने खुद को इन सबसे अलग कर रखा है. जॉर्डन के पीएम जाफर हसन ने कहा है कि वो अपने देश को जंग का मैदान नहीं बनने देंगे. उन्होंने अपने एयर स्पेस को भी बंद कर दिया है.
कुवैत: कुवैत हमेशा से ही जंग के खिलाफ रहा है. इजरायल और हमास की जंग में कुवैत ने इंटरमिडिएटर की भूमिका भी निभाई थी. कुवैत की आपसी बातचीत की कोशिशों के जरिए ही कुछ दिनों के लिए ही सही सीजफायर हुआ था. कुवैत ने यूएन में नेतन्याहू के भाषण का भी बहिष्कार किया था.
कतर: हिज्बुल्लाह चीफ नसरल्लाह की मौत पर कतर अभी खामोश हैं. हालांकि, कतर ने अपने एयर स्पेस का इस्तेमाल करने की इजाजत यूएस को नहीं दी है. यूएस जंग में इजरायल को सपोर्ट कर रहा है. ऐसे में साफ समझा जा सकता है कि अगर ईरान के साथ इजरायल की जंग हुई, तो कतर ईरान के साइड रहेगा.
ओमान: यह देश भी इजरायल की हरकतों और आक्रामक नीति का विरोध करता रहा है. इसकी दोस्ती ईरान से है. लेकिन ओमान अमेरिका का भी करीबी है. वैसे ओमान शांति की अपील ही करता आया है.
सऊदी अरब: सऊदी अरब ने भी खुद को जंग से दूर रखा है. सऊदी ने इजरायल की निंदा तो नहीं की. लेकिन यूएन में नेतन्याहू के भाषण का बहिष्कार किया था.
सीरिया: यह शुरुआत से इजरायल के खिलाफ रहा है. इजरायल ने सीरिया में भी हमले किए हैं. लिहाजा सीरिया ईरान का ही साथ देगा.
यमन: इजरायल ने यमन में भी कई ठिकानों पर बमबारी की है. यमन में भी हूती विद्रोही हैं, जो इजरायल पर हमले करते हैं. इन संगठनों को ईरान सपोर्ट करता है. लिहाजा यह ईरान का ही साथ देगा.
इजरायल और ईरान में कौन कितना ताकतवर?
ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स के मुताबिक, इजरायल का सैन्य बजट 19.2 अरब डॉलर का है. ईरान का सैन्य बजट 7.4 अरब डॉलर का है. वर्ल्ड रैंकिंग में इजरायल 17 नंबर पर आता है. जबकि ईरान 14 नंबर पर है. इजरायल के पास 6 लाख 34 हजार सैनिक हैं. ईरान के सैनिकों की संख्या 6 लाख 10 हजार है. इजरायल के पास 4 लाख 65 हजार रिजर्व सेना है. ईरान के पास 3 लाख 50 हजार रिजर्व सेना है. इजरायल के पास 400 टैंक हैं. ईरान के पास 1513 टैंक हैं. इजरायल के पास 503 तोप हैं और ईरान के पास 6798+ तोप हैं. इजरायल के पास 46 फाइटर हेलीकॉप्टर हैं. ईरान के पास 50 फाइटर हेलीकॉप्टर हैं. न्यूक्लियर हथियारों की बात करें तो इजरायल के पास अनुमानित 90 प्लस वॉरहेड्स हैं, जबकि ईरान के न्यूक्लियर हथियारों के बारे में पब्लिक डोमेन में कोई जानकारी नहीं है. इजरायल के पास आयरन डोम है. ईरान के पास अनगिनत ड्रोन और मिसाइलें हैं.
जंग का फरमान सुनाने वाले खामेनेई को जानिए
पिछले 35 साल से ईरान में आयतुल्ला अली ख़ामेनेई का फ़रमान चलता है. 1989 में इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाह ख़ुमैनी के गुज़रने के बाद से अली ख़ामनेई ईरान के सुप्रीम सियासी और मज़हबी लीडर हैं. जब ये बोलते हैं, तो हैं पूरी दुनिया ध्यान से इन्हें सुनती है. क्योंकि इनके बयानों से पता लगता है आने वाला समय अमन का होगा या जंग का.
85 साल के अली ख़ामेनेई आमतौर से जनता के बीच दिखाई नहीं देते. लेकिन, जब भी कोई अहम मौका होता है, कोई बड़ा संदेश देना होता है तो वो जुमे के रोज़ नमाज़ पढ़ाते हैं और ख़ुतबा देते हैं. साढ़े चार साल पहले भी जब ईरानी कमांडर क़ासिम सुलेमानी को अमेरिका ने मारा था, उसके बाद अमेरिकी ठिकानों पर हमला करने बाद भी जुमे की नमाज़ पढ़ाई थी.
39 साल पहले मार्च 1985 में तेहरान यूनिवर्सिटी में जब खामनेई जुमे का खुतबा दे रहे थे, तो एक आत्मघाती बम का धमाका हुआ. इसमें हमलावर के अलावा अन्य लोगों की भी मौत हो गई, लेकिन बस तीन मिनट रुकने के बाद खामनेई ने अपना संबोधन जारी रखा.
ईरानी प्रमुख अपने सख़्त तेवरों से न सिर्फ़ अपने मुरीदों में जोश भर देते हैं, बल्कि अरब देशों के उन शासकों के लिए भी एक चुनौती पेश करते हैं जो न तो युद्ध चाहते हैं और न ही ईरान के समर्थन हैं.
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