प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसुआ ओलांद
सोल/नई दिल्ली:
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता के भारत के प्रयासों को अमेरिका के बाद आज फ्रांस का भी पुरजोर समर्थन मिला। इसका दो दिवसीय पूर्ण सत्र कल सोल में शुरू होगा। विदेश सचिव एस जयशंकर भारत की सदस्यता के मुद्दे पर बंटे 48 देशों के समूह में समर्थन जुटाने के लिए सोल पहुंच गये हैं।
फ्रांस ने आज एक बयान जारी कर कहा कि परमाणु नियंत्रण व्यवस्थाओं में भारत की सहभागिता संवेदनशील वस्तुओं के निर्यात को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने में मदद करेगी। चाहे वे परमाणविक हों, रासायनिक हों, जैविक हों, बैलिस्टिक हों या परंपरागत सामग्री और प्रौद्योगिकी हों। फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'फ्रांस मानता है कि चार बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं (एनएसजी, एमटीसीआर, द ऑस्ट्रेलिया ग्रुप और द वासेनार अरेंजमेंट) में भारत का प्रवेश परमाणु प्रसार से लड़ने में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को मजबूत करेगा।'
मंत्रालय ने कहा, 'एनएसजी में पूर्ण रूपेण सदस्य के तौर पर भारत के प्रवेश के सक्रिय और दीर्घकालिक समर्थन की दिशा में फ्रांस सोल में 23 जून को बैठक कर रहे इसके सदस्यों से सकारात्मक निर्णय लेने का आह्वान करता है।' इससे पहले अमेरिका ने कल एक बयान में कहा था कि भारत एनएसजी की सदस्यता के लिए तैयार है। अमेरिका ने सहभागी सरकारों से कल सोल में शुरू हो रहे एनएसजी के पूर्ण सत्र में भारत के आवेदन का समर्थन करने को कहा था।
चीन का विरोध
भारत का विरोध चीन यह कहकर कर रहा है कि नई दिल्ली ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं किए हैं। हालांकि वह कह रहा है कि यदि एनएसजी से भारत को छूट मिलती है तो पाकिस्तान को भी समूह की सदस्यता दी जानी चाहिए। भारत और पाकिस्तान की सदस्यता के मुद्दे पर चीन ने कहा कि यह विषय पूर्ण सत्र के एजेंडा में नहीं है। यहां भी बीजिंग ने दोनों पड़ोसी देशों के मामलों को एक साथ करके देखा जबकि उनके परमाणु अप्रसार ट्रैक रिकॉर्ड में अंतर है।
नई दिल्ली में अधिकारियों ने इस बात पर जोर दिया कि एनएसजी की प्रक्रिया नाजुक और जटिल है और भारत की संभावनाओं पर अटकलें नहीं लगाई जानी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग कल ताशकंद में मुलाकात कर सकते हैं जहां वे एससीओ के सम्मेलन में भाग लेंगे। मोदी एनएसजी के विषय पर चिनफिंग से बात कर सकते हैं लेकिन गौरतलब होगा कि क्या चीन अपने रख में बदलाव लाएगा।
एनएसजी के लिए भारत के पक्ष का करीब 20 देश समर्थन कर रहे हैं लेकिन एनएसजी में आम-सहमति से फैसले होने के मद्देनजर भारत के सामने कठिन चुनौती है। लेकिन भारत को उम्मीद है जोकि दक्षिण कोरिया की राजधानी में जयशंकर की मौजूदगी से स्पष्ट है।
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
फ्रांस ने आज एक बयान जारी कर कहा कि परमाणु नियंत्रण व्यवस्थाओं में भारत की सहभागिता संवेदनशील वस्तुओं के निर्यात को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने में मदद करेगी। चाहे वे परमाणविक हों, रासायनिक हों, जैविक हों, बैलिस्टिक हों या परंपरागत सामग्री और प्रौद्योगिकी हों। फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, 'फ्रांस मानता है कि चार बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं (एनएसजी, एमटीसीआर, द ऑस्ट्रेलिया ग्रुप और द वासेनार अरेंजमेंट) में भारत का प्रवेश परमाणु प्रसार से लड़ने में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को मजबूत करेगा।'
मंत्रालय ने कहा, 'एनएसजी में पूर्ण रूपेण सदस्य के तौर पर भारत के प्रवेश के सक्रिय और दीर्घकालिक समर्थन की दिशा में फ्रांस सोल में 23 जून को बैठक कर रहे इसके सदस्यों से सकारात्मक निर्णय लेने का आह्वान करता है।' इससे पहले अमेरिका ने कल एक बयान में कहा था कि भारत एनएसजी की सदस्यता के लिए तैयार है। अमेरिका ने सहभागी सरकारों से कल सोल में शुरू हो रहे एनएसजी के पूर्ण सत्र में भारत के आवेदन का समर्थन करने को कहा था।
चीन का विरोध
भारत का विरोध चीन यह कहकर कर रहा है कि नई दिल्ली ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं किए हैं। हालांकि वह कह रहा है कि यदि एनएसजी से भारत को छूट मिलती है तो पाकिस्तान को भी समूह की सदस्यता दी जानी चाहिए। भारत और पाकिस्तान की सदस्यता के मुद्दे पर चीन ने कहा कि यह विषय पूर्ण सत्र के एजेंडा में नहीं है। यहां भी बीजिंग ने दोनों पड़ोसी देशों के मामलों को एक साथ करके देखा जबकि उनके परमाणु अप्रसार ट्रैक रिकॉर्ड में अंतर है।
नई दिल्ली में अधिकारियों ने इस बात पर जोर दिया कि एनएसजी की प्रक्रिया नाजुक और जटिल है और भारत की संभावनाओं पर अटकलें नहीं लगाई जानी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग कल ताशकंद में मुलाकात कर सकते हैं जहां वे एससीओ के सम्मेलन में भाग लेंगे। मोदी एनएसजी के विषय पर चिनफिंग से बात कर सकते हैं लेकिन गौरतलब होगा कि क्या चीन अपने रख में बदलाव लाएगा।
एनएसजी के लिए भारत के पक्ष का करीब 20 देश समर्थन कर रहे हैं लेकिन एनएसजी में आम-सहमति से फैसले होने के मद्देनजर भारत के सामने कठिन चुनौती है। लेकिन भारत को उम्मीद है जोकि दक्षिण कोरिया की राजधानी में जयशंकर की मौजूदगी से स्पष्ट है।
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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