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This Article is From Sep 23, 2016

क्या आपको याद है सीरिया की एम्बुलेंस में खून से लथपथ बैठा वो बच्चा...

क्या आपको याद है सीरिया की एम्बुलेंस में खून से लथपथ बैठा वो बच्चा...
इस बात को ज्यादा दिन नहीं गुज़रे हैं. अगस्त की ही बात है जब सीरिया में हुए एक विनाशकारी हवाई हमले के बाद मलबे से बचाकर निकाले गए एक बच्चे की दर्दनाक तस्वीर ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था. वह बच्चा ओमरान दाक़नीश एम्बुलेंस में बैठा अपने हाथों और मुंह पर लगे खून को देख रहा था और उसे सीट से साफ कर रहा था. इस तस्वीर ने पूरी दुनिया में हो रहे हिंसक आंदोलन और टकरावों में पिस रहे लोगों की मजबूरी और दर्द को सबके सामने लाकर रख दिया.

इस बीच कोई है जो सीरिया के इस बच्चे को अब अपने घर लाना चाहता है, उसे अपने साथ खिलाना चाहता है. यह है अमेरिका के न्यूयॉर्क में रहने वाला छह साल का बच्चा एलेक्स जिसने राष्ट्रपति बराक ओबामा को ऐसी चिट्ठी लिखी है जो हम सबके लिए इंसानियत का एक सबक है. व्हाइट हाउस ने एलेक्स के इस पत्र को प्रकाशित किया है. इस हफ्ते शरणार्थियों पर हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में ओबामा ने इस चिट्ठी को पढ़कर भी सुनाया. पढ़िे एलेक्स ने अपनी चिट्ठी में क्या लिखा है -



'प्यारे राष्ट्रपति ओबामा, क्या आपको सीरिया का वो बच्चा याद है जो एम्बुलेंस में था? क्या आप प्लीज़ उसे हमारे घर लेकर आ सकते हैं. हम आप लोगों का झंडों, फूलों और ग़ुब्बारों के साथ स्वागत करेंगे. हम उसे अपना परिवार देंगे और वो हमारा भाई होगा. कैथरीन मेरी छोटी बहन, उसके लिए तितलियों और जुगनूओं को पकड़ेगी. स्कूल में मेरा सीरिया का एक दोस्त भी है ओमर, मैं उसकी मुलाकात ओमर से करवा दूंगा और हम सब साथ में खेलेंगे.

हम उसे जन्मदिन पर बुलाएंगे और वो हमें अपनी भाषा भी सिखा पाएगा. क्योंकि वो अपने साथ खिलौने तो ला नहीं पाएगा, शायद उसके पास होंगे भी नहीं इसलिए कैथरीन उसके साथ अपना नीला बनी शेयर करेगी. और मैं उसे अपनी बाइक चलाना सिखाऊंगा. मैं उसे जोड़ना और घटाना भी सिखाऊंगा.'

अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में इस चिट्ठी को पढ़ने के बाद कहा कि यह एक छह साल के बच्चे के शब्द हैं. वह बच्चा जो दूसरों के रंग, प्रांत और उनकी प्रार्थना करने के तरीके को लेकर शक्की नहीं है, डरता नहीं है. हम सबको एलेक्स की तरह होना चाहिए. सोचिए अगर हम सब ऐसे हो जाएं तो पूरी दुनिया क्या से क्या बन जाएगी. सोचिए हम कितने दुखों को कम और कितनी जानों को बचा पाएंगे.

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