उत्तराखंड के जंगलों में पिछले दिनों लगी थी आग (फाइल फोटो)
देहरादून:
उत्तराखंड के जंगल में हाल के दिनों में लगी आग की बड़ी वजह लीसा माफ़ियाओं की चीड़ के जंगल में मौजूदगी भी है। पिछले आठ महीनों से वन विभाग अपना क़रीब 2.5 लाख क्विंटल लीसा नहीं बेच पाया। ऐसा माना जा रहा है कि इसका फ़ायदा लीसा माफ़ियाओं ने उठाया और अब अपनी चोरी पर परदा डालने के लिए जंगल को आग के हवाले कर दिया।
हज़ारों टिनों में बंद पड़े लीसा पर रोज़ पानी छिड़का जाता
करीब ढाई लाख क्विंटल लीसा सरकारी डिपुओं में पड़ा है। पिछले करीब एक साल से यह बिका नहीं है। वन विभाग कहता है कि वाजिब दाम नहीं मिल रहे हैं। उत्तराखंड के फॉरेस्ट डिपो में हज़ारों टिनों में बंद पड़े लीसा पर रोज़ पानी छिड़का जाता है ताकि गरमी से आग न भड़के। उत्तराखंड में देश का सबसे ज़्यादा लीसा तैयार होता है, तकरीबन 3 लाख टन सालाना। इसे खरीदने के लिए तकरीबन 110 लीसा कारोबारी बोली लगाते हैं लेकिन कहा जाता है कि किसी के दबाव में नीलामी को मंज़ूरी नहीं मिलती।
नीलामी रद्द करवाने के पीछे माफिया का हाथ
ऐसा माना जाता है कि नीलामी रद्द करवाने के पीछे माफिया का हाथ होता है जो नीलामी रद्द करवाकर अपना माल कारोबारियों तक पहुंचाते हैं। दरअसल इस माफिया के पास जो लीसा होता है वह वन विभाग के ठेकेदार गैरकानूनी तरीके से निकालते हैं। इसकी कीमत वन विभाग के लीसा से कम होती है। वैसे लीसा माफिया का ये खेल आज से नहीं बरसों से चल रहा है। और हाल फिलहाल आसानी से थमता भी नही दिखता है क्योंकि इसके पीछे जो लॉबी है वो बहुत ही ताकतवर है।
हज़ारों टिनों में बंद पड़े लीसा पर रोज़ पानी छिड़का जाता
करीब ढाई लाख क्विंटल लीसा सरकारी डिपुओं में पड़ा है। पिछले करीब एक साल से यह बिका नहीं है। वन विभाग कहता है कि वाजिब दाम नहीं मिल रहे हैं। उत्तराखंड के फॉरेस्ट डिपो में हज़ारों टिनों में बंद पड़े लीसा पर रोज़ पानी छिड़का जाता है ताकि गरमी से आग न भड़के। उत्तराखंड में देश का सबसे ज़्यादा लीसा तैयार होता है, तकरीबन 3 लाख टन सालाना। इसे खरीदने के लिए तकरीबन 110 लीसा कारोबारी बोली लगाते हैं लेकिन कहा जाता है कि किसी के दबाव में नीलामी को मंज़ूरी नहीं मिलती।
नीलामी रद्द करवाने के पीछे माफिया का हाथ
ऐसा माना जाता है कि नीलामी रद्द करवाने के पीछे माफिया का हाथ होता है जो नीलामी रद्द करवाकर अपना माल कारोबारियों तक पहुंचाते हैं। दरअसल इस माफिया के पास जो लीसा होता है वह वन विभाग के ठेकेदार गैरकानूनी तरीके से निकालते हैं। इसकी कीमत वन विभाग के लीसा से कम होती है। वैसे लीसा माफिया का ये खेल आज से नहीं बरसों से चल रहा है। और हाल फिलहाल आसानी से थमता भी नही दिखता है क्योंकि इसके पीछे जो लॉबी है वो बहुत ही ताकतवर है।
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