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मैडम गेट खोल दो प्लीज, मुझे यही पढ़ना है...पुराने स्कूलों में अटका बच्चों, स्कूल गेट पर बस्ता लेकर रोते आए नजर

ये फैसला उन मासूम बच्चों के लिए किसी सदमे से कम नहीं है, जो रोज इसी स्कूल की दहलीज पर अपनी पढ़ाई का सपना संजोते थे. 

मैडम गेट खोल दो प्लीज, मुझे यही पढ़ना है...पुराने स्कूलों में अटका बच्चों, स्कूल गेट पर बस्ता लेकर रोते आए नजर
  • महराजगंज जिले के रुद्रपुर भलुही गांव के प्राइमरी स्कूल को गांव से एक किलोमीटर दूर शिफ्ट कर दिया गया है.
  • स्कूल शिफ्ट होने के बाद बच्चे अपने पुराने स्कूल में पढ़ने की जिद कर रहे हैं. स्कूल के गेट पर बच्चे रोते नजर आए.
  • शिक्षा विभाग ने स्कूल शिफ्ट करने का कारण संसाधनों के बेहतर उपयोग और प्रशासनिक सुविधा बताया है.
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सरकार के फैसले ने भले ही स्कूल शिफ्ट कर दिया हो लेकिन बच्चों का दिल अभी भी अपने पुराने स्कूल की चौखट पर ही अटका है. महराजगंज जिले के रुद्रपुर भलुही गांव का प्राथमिक विद्यालय अब इतिहास बनता जा रहा है. सरकारी आदेश पर इस स्कूल को गांव से एक किलोमीटर दूर करतौनी में शिफ्ट कर दिया गया है. लेकिन ये फैसला उन मासूम बच्चों के लिए किसी सदमे से कम नहीं है, जो रोज इसी स्कूल की दहलीज पर अपनी पढ़ाई का सपना संजोते थे. 

हम यहीं पढ़ेंगे... कहीं और नहीं जाएंगे...

बच्चे गेट पर रोते हुए नजर आते हैं. बच्चे कहते हैं मैडम जी गेट खोल दो... हम यहीं पढ़ेंगे... कहीं और नहीं जाएंगे. स्कूल में बच्चों की संख्या भले ही 40 थी, लेकिन इन 40 नन्हे सपनों को अब रोज एक किलोमीटर दूर जाना होगा. आज जब प्रधानाचार्य जरूरी कागज लेने स्कूल पहुंचीं तो बच्चों की भीड़ स्कूल के बाहर जमा हो गई. कई बच्चे तो गेट पकड़कर रोते-चिल्लाते नजर आए. शिक्षा विभाग का तर्क है कि यह कदम संसाधनों के बेहतर उपयोग और प्रशासनिक सुविधा के लिए उठाया गया है.

सरकार का फैसला क्यों नहीं आ रहा रास

बच्चों की आंखों से टपकते आंसू पूछ रहे हैं. क्या फैसलों में हमारी भावनाओं की कोई जगह नहीं? गांव के अभिभावक भी इस फैसले से परेशान हैं. उनका कहना है कि छोटे-छोटे बच्चों के लिए रोज एक किलोमीटर पैदल चलना आसान नहीं होगा. लेकिन अगर देखा जाए तो फैसले कागजों पर लिए जाते हैं. लेकिन असर जमीन पर दिखता है. कभी-कभी उन फैसलों की कीमत, इन मासूम आंखों के आंसुओं से चुकानी पड़ती है.

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