- शाहजहांपुर के राजेश उर्फ राजू ने 37 साल तक साधु का भेष पहनकर पुलिस को चकमा दिया था और फरार रहा
- राजेश ने 1986 में दो लोगों पर तेजाब से हमला किया था, जिसके कारण उसे आजीवन कारावास की सजा मिली थी
- आरोपी ने जमानत पर बाहर आकर लगातार अपना ठिकाना बदलते हुए मध्य प्रदेश के गायत्री शक्तिपीठ में ठिकाना बनाया
उम्रकैद की सजा काट रहा वह अपराधी जमानत पर बाहर आया था और फिर फरार हो गया. बीते 37 साल से ये अपराधी पुलिस को चकमा दे रहा था. इस अपराधी ने साधु का भेष धर लिया और लगातार अपना ठिकाना बदलता रहा. इसलिए पुलिस इसे 37 साल तक तलाश नहीं पाई, ऐसे में इसे लगने लगा कि अब वह कभी पकड़ा ही नहीं जाएगा. अब यूपी के इस अपराधी ने मध्य प्रदेश में एक पक्का ठिकाना भी बना लिया था. ये अपराधी पुलिस से तो 37 सालों तक आंख-मिचौली खेलता रहा, लेकिन एआई के जमाने में टेक्नोलॉजी से मात खा गया. यूपी के शाहजहांपुर जिले के इस अपराधी को पुलिस ने मध्यप्रदेश के गायत्री शक्तिपीठ से पोर्टल 'नाफीस' की मदद से 37 साल बाद सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.
यूपी के शाहजहांपुर जिले की पुलिस ने साधु के भेष में रह रहे फरार आजीवन जेल के सजायाफ़्ता को लेटेस्ट सर्विलांस तकनीक से 37 साल के बाद मध्य प्रदेश से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस अधीक्षक (एसपी) राजेश द्विवेदी ने बताया कि गिरफ्तार आरोपी की पहचान राजेश उर्फ राजू के रूप में हुई, जिसे पुलिस ने गायत्री शक्तिपीठ, शिवपुरी (मध्यप्रदेश) से 37 साल के बाद गिरफ्तार कर लिया. एसपी द्विवेदी ने बताया कि इस अपराधी को पकड़ने में पोर्टल 'नाफीस' से काफी मदद मिली.
क्या है पोर्टल नाफीस, कैसे करता है काम
नाफीस (Nafis) एक फिंगरप्रिंट पहचान प्रणाली है, जिसे भारत सरकार द्वारा अपराधियों की पहचान और अपराधों की जांच के लिए डेवलेप किया गया है. यह प्रणाली अपराधियों के फिंगरप्रिंट, फेस, और अन्य बायोलॉजिकल डेटा को इकट्ठा करती है और अपराध स्थलों पर पाए गए फिंगरप्रिंट या अन्य सबूतों के साथ मिलान करती है. नाफीस पोर्टल के माध्यम से पुलिस अपराधियों की डिजिटल कुंडली तैयार कर सकती है और अपराधों की जांच में मदद कर सकती है. यह प्रणाली विशेष रूप से उन अपराधियों की पहचान करने में मदद करती है, जो बार-बार अपराध करते हैं और जिनकी पहचान करना मुश्किल होता है. नाफीस पोर्टल पर इकट्ठा फिंगरप्रिंट और बायोलॉजिकल डेटा के साथ अपराध स्थल पर पाए गए फिंगरप्रिंट या अन्य सबूतों का मिलान किया जाता है. यदि मिलान होता है, तो अपराधी की पहचान की जाती है और पुलिस को सूचित किया जाता है.
2 लोगों पर डाल दिया था तेजाब
पुलिस अधिकारी ने बताया कि थाना तिलहर में 28 अगस्त 1986 में गंगा दीन (मुनीम) तथा ओमप्रकाश रस्तोगी अपने आभूषणों की दुकान पर घर से रिक्शा पर सवार होकर जा रहे थे. उन्होंने कहा कि इनके पास दुकान पर प्रयुक्त होने वाला तेजाब भी साथ में था, तभी रास्ते में राजेश उर्फ राजू आया और उनके साथ मारपीट करने लगा. इस दौरान राजेश ने ओमप्रकाश के हाथ से तेजाब की बोतल छीनकर उन्हीं के ऊपर डाल दी, जिससे ओमप्रकाश तथा गंगा दीन दोनों घायल हो गए थे. आरोपी राजेश उर्फ राजू के विरुद्ध हत्या के प्रयास और अन्य संबंधित धाराओं में केस दर्ज कर जेल भेज दिया गया. पुलिस ने आरोपपत्र दाखिल किया और न्यायालय ने सुनवाई पूरी करने के बाद राजेश को 30 मई 1988 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. बाद में हाई कोर्ट से उसे जमानत मिल गई.
लगातार बदलता रहा ठिकाना
एसपी राजेश द्विवेदी ने बताया कि इसके बाद आरोपी अदालत में कभी भी हाजिर नहीं हुआ और तब न्यायालय ने उसकी गिरफ्तारी का वारंट जारी किया. पुलिस ने उसे शुक्रवार को गायत्री शक्तिपीठ शिवपुरी से 37 साल के बाद गिरफ्तार कर लिया. एसपी ने बताया कि इस दौरान आरोपी राजेश पड़ोसी जनपदों के अलावा धार्मिक स्थलों पर रहता था और एक धार्मिक स्थल पर दो से चार माह तक रुकता. इसके बाद दूसरे धार्मिक स्थल पर पहुंच जाता था. इसी तरह यह आरोपी भेष बदलकर 37 साल तक घूमता रहा और बाद में इसने गायत्री शक्तिपीठ शिवपुरी मध्यप्रदेश में अपना स्थायी ठिकाना बना लिया, जहां यह साधु के भेष में रह रहा था. एसपी द्विवेदी ने बताया की पुलिस विभाग के पोर्टल 'नाफीस' आदि में अपराधियों के फिंगरप्रिंट रहते हैं. इसे शामिल करते हुए आधुनिक विशिष्ट सर्विलांस तकनीक से 37 साल के बाद आरोपी को पकड़ा जा सका.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं