Uttar Pradesh: सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर भी अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav)और शिवपाल (Shivpal Yadav) की पार्टियों में गठबंधन नहीं हुआ. इस बारे में खबर कई दिनों से गरम थी. अखिलेश के चाचा शिवपाल कह रहे हैं कि वह झुककर भी गठबंधन करने के लिए तैयार हैं और अखिलेश कहते हैं कि चाचा को सम्मान मिलेगा और पार्टी से अलायंस होगा. लेकिन गठबंधन में इतनी देर क्यों हो रही है और क्या है इसके पीछे का कारण...यह लोग समझने में लगे हैं. अखिलेश और शिवपाल के बीच जो तलवारें खिंची थीं, वे अब म्यान में चली गई हैं लेकिन बिछुड़े चाचा शिवपाल की पार्टी से अलायंस अभी तक नहीं हो पाया है जबकि विधानसभा चुनाव (UP Assembly Polls 2022) सिर पर हैं. सोशल मीडिया पर यह खबर गरम थी कि मुलायम की सालगिरह पर ऐसा होगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. शिवपाल इससे मायूस हैं. वे कहते हैं, 'आप लोग तो कहते थे कि वह नहीं मानता है तो तुम मान जाओ, तुम झुक जाओ...यही तो कहा था. मैंने तो उसकी दिन कहा कि मैंने तो आप की बात मान ली. मैं तो झुक गया हूं. बन जाएं मुख्यमंत्री. यही तो कहा था लेकिन दो साल के अंदर अभी तक तो कोई फैसला हुआ नहीं. हमने सब शर्तें मान लीं, सब मान लेंगे.'
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भतीजे अखिलेश यादव खुद भी लगातार कह रहे हैं कि वह चाचा को पूरा सम्मान देंगे और उनकी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से गठबंधन करेंगे. सपा अध्यक्ष अखिलेश ने इटावा में कहा, समाजवादी पार्टी की कोशिश होगी कि जितने भी दल हैं, क्षेत्रीय दल हैं, उन्हें जोड़ा जाए. स्वाभाविक है कि चाचा का भी एक दल है, उस दल को भी साथ लेने की कोशिश करेंगे. उनका पूरा सम्मान होगा और ज्यादा से ज्यादा सम्मान करने का काम समाजवादी लोग करेंगे. यह मैं आपको भरोसा दिलाता हूं ' उन्होंने कहा, 'मेरी फोन पर बात होती है और मैंने भरोसा दिला दिया है. अभी दीपावली के पर्व पर मैं गया था. जो हमारे गांव के बुजुर्ग हैं उसने भी मैंने कहा कि पूरा सम्मान होगा. 'गौरतलब है कि शिवपाल ने मनमुटाव के बाद 29 अगस्त 2018 कोप्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में 56 सीटों पर लड़े लेकिन सभी पर उनकी पार्टी के प्रत्याशियों को हार मिली. अखिलेश की शिवपाल से मनमुटाव की पुरानी पृष्ठभूमि है. अखिलेश के खिलाफ माने जाने वाले कई लोगों के चाचा शिवपाल करीबी रहे हैं. वे अमर सिंह और मुलायम की दूसरी पत्नी साधना के नजदीक रहे हैं. अमर सिंह और साधना पर अखिलेश के विरोध का आरोप रहा है. मुलायम से अखिलेश को पार्टी से निकलवाने का आरोप भी शिवपाल पर है. शिवपाल ने अखिलेश के करीबी लोगों को पार्टी से निकाला था.चचेरे भाई रामगोपाल और शिवपाल की पुरानी अदावत है. मुलायम से रामगोपाल को पार्टी से निकलवाने का आरोप भी शिवपाल पर है. रामगोपाल भी शिवपाल के पार्टी में आने के खिलाफ हैं
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प्रदेश के सियासी माहौल में ज्यादातर यादव अखिलेश के साथ खड़े हैं. सियासत केजानकार कहते हैं कि शिवपाल के अलग चुनाव लड़ने से मैनपुरी, फिरोजाबाद और इटावा की चंद सीटों पर मामूली असर हो सकता है लेकिन उनको साथ लेने से माहौल अच्छा बनेगा. वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शुक्ला कहते हैं, 'वैसे तो शिवपाल याादव का बहुत मजबूत जनाधार नहीं है लेकिन उनके सपा के साथ आने से इसका फायदा काफी ज्यादा है. कारण यह है कि एक माहौल बनता है. कार्यकर्ताओं को भी लगता है कि परिवार में एका हो गया है. लोगों के बीच भी यह संदेश जाता है. ' शिवपाल चाहते हैं कि वे अपनी पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय कर दें लेकिन अखिलेश इसे हिमायती नहीं हैं. वे नहीं चाहते कि विलय के बाद फिर से चाचा अपने और अपने लोगों के लिए बड़ी हिस्सेदारी मांगेंगे. सियासत के जानकार मानते हैं कि आखिर में अखिलेश,चाचा शिवपाल को कुछ सीटें दे सकते हैं और सरकार बनने पर मंत्री पद भी. लेकिन अखिलेश पुराने झगड़ों को जिंदा नहीं करना चाहेंगे...
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