 
                                            समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और सीएम अखिलेश यादव
                                                                                                                        - सपा कार्यकर्ता सरकार के काम को लेकर जनता के बीच जाने की बात कर रहे थे.
- पार्टी में लगा कि दो फाड़ हो जाएगा और पार्टी कमजोर हो जाएगी.
- पार्टी कार्यकर्ता में एंटी इनकंबेंसी नाम का कोई डर नहीं दिख रहा था.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
 हमें बताएं।
                                        
                                        
                                                                                नई दिल्ली: 
                                        समाजवादी पार्टी का मुखिया कौन, सभी जानते हैं कि पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव हैं. लेकिन आज के लखनऊ में सुबह से दोपहर तक हुए घटनाक्रम ने साफ कर दिया है कि सपा के असली मुखिया अखिलेश यादव हैं.
समाजवादी पार्टी की सरकार में पहली बार पार्टी और नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सरकार के काम को लेकर जनता के बीच जाने की बात कर रहे थे. चुनाव में लोगों को काम की गिनती गिनाने को पहली बार पार्टी कार्यकर्ता उत्साहित थे और पार्टी में लगा कि दो फाड़ हो जाएगा और पार्टी कमजोर होकर कुछ ही महीने में होने वाले राज्य के विधानसभा चुनावों में पीछे रह जाएगी.
यह पहली बार होगा कि किसी राज्य सरकार और पार्टी कार्यकर्ता में एंटी इनकंबेंसी नाम का कोई डर नहीं दिख रहा था. पार्टी और सरकार लंबे समय से अपनी उपलब्धियों को जनता के बीच विज्ञापनों के माध्यम से पहुंचाने का काम कर रही थी. ऐसे में पार्टी में कुछ माह पूर्व पार्टी महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव का निष्कासन किया जाता है. पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और पार्टी के उत्तर प्रदेश के प्रमुख शिवपाल यादव ने यह निर्णय सुनाया और फिर पहली बार मुलायम सिंह यादव और सूबे के मुखिया अखिलेश यादव के बीच जारी मनमुटाव लोगों के सामने आया.
वैसे इससे पहले कौमी एकता दल यानि मुख्तार अंसारी की पार्टी का सपा में विलय भी शिवपाल यादव ने कराया था जिसे अखिलेश यादव ने पसंद नहीं किया. सपा अपने पुराने अंदाज में मुस्लिम वोट बैंक के चलते पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए यह कदम उठा रही थी, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यह नहीं चाहते थे कि फिर पार्टी पर बाहुबली के दम पर चलने का आरोप लगे. इस मुद्दे को लेकर अखिलेश यादव और शिवपाल यादव में खटास सामने आई. अखिलेश के दबाव में अंसारी की पार्टी से विलय समाप्त किया गया और फिर भले ही बाद में मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव का साथ दिया और विलय फिर हो गया.
अखिलेश यादव पूरी तरह से अपने चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव के साथ खड़े हुए दिखाई दिए और पिता और पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने भाई शिवपाल यादव के साथ खड़े हुए दिखाई दिए. मुलायम सिंह ने साफ कहा कि पार्टी के लिए शिवपाल यादव ने काम किया और रामगोपाल ने पार्टी के लिए कुछ नहीं किया. वहीं, रामगोपाल यादव का कहना था कि पार्टी को मजबूत करने और पार्टी की पहुंचा जातिवाद से ऊपर उठाने में उन्होंने काफी काम किया है. इतना ही नहीं रामगोपाल यादव ने दावा भी किया कि पार्टी का संविधान भी उन्होंने तैयार किया है.
इसके बाद सार्वजनिक मंच पर रामगोपाल यादव द्वारा (मुलायम सिंह यादव के दावे के अनुसार) माफी मांगने के बाद उनका निष्कासन रद्द कर दिया. कुछ समय पहले की इस घटना के बाद शुक्रवार की शाम फिर पिता-पुत्र में विवाद आया. कारण यह रहा है मुलायम सिंह यादव ने अपने भाई शिवपाल यादव के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी प्रत्याशियों की सूची जारी की. ठीक उनकी सूची के जारी होने के पार्टी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव मिलकर अपनी ओर से प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी. इतना ही नहीं, रामगोपाल यादव ने पार्टी की मीटिंग बुलाने की घोषणा भी कर दी.
--------------------------------------------------------------------------------------------------------
बेटे अखिलेश यादव को पार्टी से निकालने के पक्ष में नहीं थे पिता मुलायम सिंह यादव...
--------------------------------------------------------------------------------------------------------
इससे नाराज़ पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने प्रोफेसर रामगोपाल यादव को पार्टी से छह साल के लिए फिर निष्कासित कर दिया और साथ ही उन्होंने शिवपाल यादव की सलाह पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया.
30 दिसंबर की शाम को मुलायम सिंह यादव की इस घोषणा के साथ ही यह तय हो गया था कि पार्टी में शक्ति परीक्षण का समय आ गया है और यह तय होना है कि कौन पार्टी में ज्यादा लोकप्रिय है, कौन पार्टी का भविष्य है और किसे जनता में ज्यादा स्वीकार्यता है, किस नेता पर पार्टी विधायकों का भरोसा कायम है.
30 दिसंबर की शाम से 31 दिसंबर के दोपहर तक शक्ति प्रदर्शन का दौर चला और यह साफ हो गया कि पार्टी में किसकी चलेगी. पार्टी का भविष्य कौन है. पार्टी, नेता और कार्यकर्ता किसके साथ जाना चाहते हैं. सुबह से अखिलेश के घर पर विधायकों का जमावड़ा शुरू हो गया. खबर आई कि अखिलेश यादव के घर पर 200 से ज्यादा विधायकों ने आमद की और सरकार के सभी मंत्री भी वहां पहुंचे. इतना ही नहीं, मुलायम सिंह यादव के घर के बाहर अखिलेश समर्थकों का रातभर जमावड़ा रहा. वे सभी लगातार अखिलेश के समर्थन में नारे लगाते रहे.
सूत्रों के अनुसार अखिलेश यादव ने अपने समर्थन में आए विधायकों का ब्यौरा लेकर अपने पिता और पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के घर गए और उनके सामने वर्तमान स्थिति साफ कर दी. दोनों के बीच क्या बातचीत हुई यह तो साफ नहीं है. लेकिन इस बैठक के कुछ मिनटों बाद ही मुलायम सिंह यादव की ओर से इशारा हो गया कि पार्टी ने अखिलेश यादव और प्रोफेसर रामगोपाल यादव का पार्टी से निष्कासन रद्द कर दिया है.
पार्टी में अखिलेश के निष्कासन के रद्द होने साथ ही यह साफ हो गया कि पार्टी में अखिलेश यादव का बोलबाला रहेगा. पार्टी उनके दिखाए रास्ते पर चलेगी.
वैसे राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मुलायम सिंह यादव बेटे अखिलेश यादव को निष्कासित नहीं करना चाहते थे, लेकिन शिवपाल यादव के दबाव में लिया गया कदम पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई के रूप में बदल जाएगा, यह किसी को अंदाजा नहीं था. अखिलेश यादव ने अपने कदम पीछे नहीं खींचा और 24 घंटे नहीं बीते पार्टी प्रमुख को उनका निष्कासन वापस लेने पर मजबूर कर दिया है.
अखिलेश यादव ने अपनी शर्तों पर अपनी वापसी की घोषणा करवाई और इसके सबके बाद प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने फिर साफ कर दिया है कि घोषित किया गया आपात सम्मेलन (महाधिवेशन) अपने समय पर 1 जनवरी को बाकायदा आयोजित होगा.
इससे यह साफ है कि पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई में अखिलेश यादव ने बाजी मार ली है. वहीं, यह भी साफ है कि अब मुलायम सिंह यादव राजनीतिक वनवास जाने से बच गए. बता दें कि पार्टी नेता अमर सिंह ने आज सुबह ही इस पूरे मसले पर कहा, आजकल समय यह हो गया है कि बेटा राज करेगा और पिता वनवास जाएगा.
                                                                                 
                                                                                
                                                                                                                        
                                                                                                                    
                                                                        
                                    
                                समाजवादी पार्टी की सरकार में पहली बार पार्टी और नेता से लेकर कार्यकर्ता तक सरकार के काम को लेकर जनता के बीच जाने की बात कर रहे थे. चुनाव में लोगों को काम की गिनती गिनाने को पहली बार पार्टी कार्यकर्ता उत्साहित थे और पार्टी में लगा कि दो फाड़ हो जाएगा और पार्टी कमजोर होकर कुछ ही महीने में होने वाले राज्य के विधानसभा चुनावों में पीछे रह जाएगी.
यह पहली बार होगा कि किसी राज्य सरकार और पार्टी कार्यकर्ता में एंटी इनकंबेंसी नाम का कोई डर नहीं दिख रहा था. पार्टी और सरकार लंबे समय से अपनी उपलब्धियों को जनता के बीच विज्ञापनों के माध्यम से पहुंचाने का काम कर रही थी. ऐसे में पार्टी में कुछ माह पूर्व पार्टी महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव का निष्कासन किया जाता है. पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और पार्टी के उत्तर प्रदेश के प्रमुख शिवपाल यादव ने यह निर्णय सुनाया और फिर पहली बार मुलायम सिंह यादव और सूबे के मुखिया अखिलेश यादव के बीच जारी मनमुटाव लोगों के सामने आया.
वैसे इससे पहले कौमी एकता दल यानि मुख्तार अंसारी की पार्टी का सपा में विलय भी शिवपाल यादव ने कराया था जिसे अखिलेश यादव ने पसंद नहीं किया. सपा अपने पुराने अंदाज में मुस्लिम वोट बैंक के चलते पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए यह कदम उठा रही थी, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यह नहीं चाहते थे कि फिर पार्टी पर बाहुबली के दम पर चलने का आरोप लगे. इस मुद्दे को लेकर अखिलेश यादव और शिवपाल यादव में खटास सामने आई. अखिलेश के दबाव में अंसारी की पार्टी से विलय समाप्त किया गया और फिर भले ही बाद में मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव का साथ दिया और विलय फिर हो गया.
अखिलेश यादव पूरी तरह से अपने चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव के साथ खड़े हुए दिखाई दिए और पिता और पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने भाई शिवपाल यादव के साथ खड़े हुए दिखाई दिए. मुलायम सिंह ने साफ कहा कि पार्टी के लिए शिवपाल यादव ने काम किया और रामगोपाल ने पार्टी के लिए कुछ नहीं किया. वहीं, रामगोपाल यादव का कहना था कि पार्टी को मजबूत करने और पार्टी की पहुंचा जातिवाद से ऊपर उठाने में उन्होंने काफी काम किया है. इतना ही नहीं रामगोपाल यादव ने दावा भी किया कि पार्टी का संविधान भी उन्होंने तैयार किया है.
इसके बाद सार्वजनिक मंच पर रामगोपाल यादव द्वारा (मुलायम सिंह यादव के दावे के अनुसार) माफी मांगने के बाद उनका निष्कासन रद्द कर दिया. कुछ समय पहले की इस घटना के बाद शुक्रवार की शाम फिर पिता-पुत्र में विवाद आया. कारण यह रहा है मुलायम सिंह यादव ने अपने भाई शिवपाल यादव के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी प्रत्याशियों की सूची जारी की. ठीक उनकी सूची के जारी होने के पार्टी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने चाचा प्रोफेसर रामगोपाल यादव मिलकर अपनी ओर से प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी. इतना ही नहीं, रामगोपाल यादव ने पार्टी की मीटिंग बुलाने की घोषणा भी कर दी.
--------------------------------------------------------------------------------------------------------
बेटे अखिलेश यादव को पार्टी से निकालने के पक्ष में नहीं थे पिता मुलायम सिंह यादव...
--------------------------------------------------------------------------------------------------------
इससे नाराज़ पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने प्रोफेसर रामगोपाल यादव को पार्टी से छह साल के लिए फिर निष्कासित कर दिया और साथ ही उन्होंने शिवपाल यादव की सलाह पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया.
30 दिसंबर की शाम को मुलायम सिंह यादव की इस घोषणा के साथ ही यह तय हो गया था कि पार्टी में शक्ति परीक्षण का समय आ गया है और यह तय होना है कि कौन पार्टी में ज्यादा लोकप्रिय है, कौन पार्टी का भविष्य है और किसे जनता में ज्यादा स्वीकार्यता है, किस नेता पर पार्टी विधायकों का भरोसा कायम है.
30 दिसंबर की शाम से 31 दिसंबर के दोपहर तक शक्ति प्रदर्शन का दौर चला और यह साफ हो गया कि पार्टी में किसकी चलेगी. पार्टी का भविष्य कौन है. पार्टी, नेता और कार्यकर्ता किसके साथ जाना चाहते हैं. सुबह से अखिलेश के घर पर विधायकों का जमावड़ा शुरू हो गया. खबर आई कि अखिलेश यादव के घर पर 200 से ज्यादा विधायकों ने आमद की और सरकार के सभी मंत्री भी वहां पहुंचे. इतना ही नहीं, मुलायम सिंह यादव के घर के बाहर अखिलेश समर्थकों का रातभर जमावड़ा रहा. वे सभी लगातार अखिलेश के समर्थन में नारे लगाते रहे.
सूत्रों के अनुसार अखिलेश यादव ने अपने समर्थन में आए विधायकों का ब्यौरा लेकर अपने पिता और पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के घर गए और उनके सामने वर्तमान स्थिति साफ कर दी. दोनों के बीच क्या बातचीत हुई यह तो साफ नहीं है. लेकिन इस बैठक के कुछ मिनटों बाद ही मुलायम सिंह यादव की ओर से इशारा हो गया कि पार्टी ने अखिलेश यादव और प्रोफेसर रामगोपाल यादव का पार्टी से निष्कासन रद्द कर दिया है.
पार्टी में अखिलेश के निष्कासन के रद्द होने साथ ही यह साफ हो गया कि पार्टी में अखिलेश यादव का बोलबाला रहेगा. पार्टी उनके दिखाए रास्ते पर चलेगी.
वैसे राजनीतिक जानकारों का मानना है कि मुलायम सिंह यादव बेटे अखिलेश यादव को निष्कासित नहीं करना चाहते थे, लेकिन शिवपाल यादव के दबाव में लिया गया कदम पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई के रूप में बदल जाएगा, यह किसी को अंदाजा नहीं था. अखिलेश यादव ने अपने कदम पीछे नहीं खींचा और 24 घंटे नहीं बीते पार्टी प्रमुख को उनका निष्कासन वापस लेने पर मजबूर कर दिया है.
अखिलेश यादव ने अपनी शर्तों पर अपनी वापसी की घोषणा करवाई और इसके सबके बाद प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने फिर साफ कर दिया है कि घोषित किया गया आपात सम्मेलन (महाधिवेशन) अपने समय पर 1 जनवरी को बाकायदा आयोजित होगा.
इससे यह साफ है कि पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई में अखिलेश यादव ने बाजी मार ली है. वहीं, यह भी साफ है कि अब मुलायम सिंह यादव राजनीतिक वनवास जाने से बच गए. बता दें कि पार्टी नेता अमर सिंह ने आज सुबह ही इस पूरे मसले पर कहा, आजकल समय यह हो गया है कि बेटा राज करेगा और पिता वनवास जाएगा.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
                                        समाजवादी पार्टी, अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव, विधानसभा चुनाव, अमर सिंह, Samajwadi Party, Akhilesh Yadav, Mulayam Singh Yadav, Assembly Polls 2017, Amar Singh, Shivpal Yadav, Ramgopal Yadav, शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव
                            
                        