रविदास जयंती पर यहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों भक्त अपने गुरु के चरणों में मत्था टेकने आते हैं.
वाराणसी:
बनारस के सीरगोवर्धन इलाके में शुक्रवार को रैदासियों का मेला लगा. ये मेला संत रविदास की जयंती के मौके पर हर साल लगता है. इसमें देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों भक्त अपने गुरु के चरणों में मत्था टेकने आते हैं. यूं तो संत रविदास के भक्त देश के कोने-कोने में हैं, पर इनमें ज़्यादातर पंजाब प्रांत के हैं. रविदास के भक्तों की संख्या लाखों में है. लिहाजा, राजनीतिक दलों के लोगों की भी यहां समय-समय पर दस्तक होती रही है.
पिछले साल ये जयंती 22 फ़रवरी को थी. उस दिन यहां लंगर खाने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल दोनों एक ही दिन पहुंचे थे. तब इसके बड़े राजनीतिक मायने निकाले गए थे और कहा गया था कि 2017 के पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनाव के मद्देनजर रैदासियों को अपनी तरफ लाने के लिए ये दौरा हुआ है, लेकिन इस बार यहां किसी राजनीतिक दल के लोग नहीं आए. हां, आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष जरूर संत के दरबार में मत्था टेकने शुक्रवार को पहुंचे.

संत रविदास की जयंती के मौके पर पहले भी भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, राष्ट्रपति केआर नारायणन, प्रदेश के पूर्व राज्यपाल सूरज भान, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, वीएचपी नेता अशोक सिंघल और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जैसे नेता यहां आ चुके हैं. बसपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती साल 2007 में यहां आई थीं. तब यहां संत रविदास के जन्मदिवस पर लंदन की एक संगत ने सोने की पालकी दान की थी. इसका उद्घाटन मायावाती ने ही किया था.
मायावती ने अस्सी घाट के बगल में रविदास घाट और पार्क का निर्माण करवाया. उनके बाद जब अचानक कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यहां आ पहुंचे थे तब राजनीतिक गलियारे में काफी चर्चा हुई थी.
संत रविदास मंदिर उनकी जन्मस्थली वाराणसी के शिर गोवर्धन मोहल्ले में है. यहां उनके मंदिर का शिलन्यास वर्ष 1965 में हुआ था. इसके बाद भव्य मंदिर बनकर तैयार हुआ और 1975 में संत रविदास की मूर्ति स्थापना हुई. इस मंदिर की देखरेख एक चेरिटेबल ट्रस्ट के जरिये होती है. इसमें किसी तरह की सरकारी सुविधा अब तक नहीं ली गई है. वैसे तो साल भर यहां भक्त आते हैं, लेकिन हर साल यहां संत रविदास के जन्मदिवस माघी पूर्णिमा के दिन देशभर से लाखों भक्त आते हैं.
पिछले साल ये जयंती 22 फ़रवरी को थी. उस दिन यहां लंगर खाने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल दोनों एक ही दिन पहुंचे थे. तब इसके बड़े राजनीतिक मायने निकाले गए थे और कहा गया था कि 2017 के पंजाब और उत्तर प्रदेश के चुनाव के मद्देनजर रैदासियों को अपनी तरफ लाने के लिए ये दौरा हुआ है, लेकिन इस बार यहां किसी राजनीतिक दल के लोग नहीं आए. हां, आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष जरूर संत के दरबार में मत्था टेकने शुक्रवार को पहुंचे.

संत रविदास की जयंती के मौके पर पहले भी भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, राष्ट्रपति केआर नारायणन, प्रदेश के पूर्व राज्यपाल सूरज भान, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, वीएचपी नेता अशोक सिंघल और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जैसे नेता यहां आ चुके हैं. बसपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती साल 2007 में यहां आई थीं. तब यहां संत रविदास के जन्मदिवस पर लंदन की एक संगत ने सोने की पालकी दान की थी. इसका उद्घाटन मायावाती ने ही किया था.
मायावती ने अस्सी घाट के बगल में रविदास घाट और पार्क का निर्माण करवाया. उनके बाद जब अचानक कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यहां आ पहुंचे थे तब राजनीतिक गलियारे में काफी चर्चा हुई थी.
संत रविदास मंदिर उनकी जन्मस्थली वाराणसी के शिर गोवर्धन मोहल्ले में है. यहां उनके मंदिर का शिलन्यास वर्ष 1965 में हुआ था. इसके बाद भव्य मंदिर बनकर तैयार हुआ और 1975 में संत रविदास की मूर्ति स्थापना हुई. इस मंदिर की देखरेख एक चेरिटेबल ट्रस्ट के जरिये होती है. इसमें किसी तरह की सरकारी सुविधा अब तक नहीं ली गई है. वैसे तो साल भर यहां भक्त आते हैं, लेकिन हर साल यहां संत रविदास के जन्मदिवस माघी पूर्णिमा के दिन देशभर से लाखों भक्त आते हैं.
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