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जिंदा बेटी का शोक संदेश छपवाया, माला पहनाकर दी श्रद्धांजलि... ललितपुर में जाति के नाम पर रिश्तों की मौत

21 वर्षीय खुशी पाराशर ने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर दूसरी जाति के युवक सौरभ चौरसिया से विवाह कर लिया. इस कदम से परिवार बेहद नाराज हो उठा और उसने इसे अपना सामाजिक अपमान माना. इसके बाद परिवार ने खुशी की शोक सभा आयोजित कर उसे श्रद्धांजलि दे दी.

जिंदा बेटी का शोक संदेश छपवाया, माला पहनाकर दी श्रद्धांजलि... ललितपुर में जाति के नाम पर रिश्तों की मौत
  • उत्तर प्रदेश के ललितपुर में एक परिवार ने अपनी जीवित बेटी की मृत्यु घोषित कर शोक सभा आयोजित की है.
  • 21 वर्षीय खुशी पाराशर ने परिवार की मर्जी के खिलाफ दूसरी जाति के युवक से विवाह किया. इसी से परिवार नाराज है.
  • परिवार ने खुशी को सामाजिक अपमान मानते हुए उसे अपने जीवन से पूरी तरह अलग कर दिया है.
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ललितपुर:

उत्तर प्रदेश के ललितपुर में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने समाज की सोच पर सवाल खड़े कर दिए हैं. सदर कोतवाली इलाके में आने वाले गांधीनगर में एक परिवार ने अपनी बेटी की शोक संदेश छपवाया और शोक सभा भी आयोजित की गई और उसकी तस्‍वीर को माला भी पहना दी गई. इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि बेटी जिंदा है, लेकिन परिवार ने अपनी जीवित बेटी को मृत मान लिया है. अब सोशल मीडिया पर बेटी की शोक सभा का पत्र वायरल है और लोग इस बारे में हर कोई चर्चा कर रहा है. 

21 वर्षीय खुशी पाराशर ने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर दूसरी जाति के युवक सौरभ चौरसिया से विवाह कर लिया. इस कदम से परिवार बेहद नाराज हो उठा और उसने इसे अपना सामाजिक अपमान माना. इसके बाद परिवार ने खुशी को अपने जीवन से पूरी तरह अलग कर दिया. परिवार ने 4 सितंबर को खुशी की "मृत्यु" घोषित की और 12 सितंबर को शोक सभा का भी आयोजन किया गया.

खुशी को मृत मानकर दी गई श्रद्धांजलि 

खुशी के दूसरी जाति के युवक से शादी करने से पूरा परिवार नाराज है. इसके लिए शुक्रवार को शोक सभा आयोजित की गई. इसमें खुशी के माता-पिता और भाई के साथ ही नजदीकी रिश्तेदार भी शामिल हुए. सभी ने खुशी की तस्वीर पर फूल चढ़ाए और उसे मृत मानकर श्रद्धांजलि दी गई.

भाई ने कहा- उनके लिए खुशी जीवित नहीं

जब इस मामले को लेकर सवाल पूछे गए तो भाई आकाश पाराशर ने कहा कि खुशी अब उनके लिए जीवित नहीं है, क्योंकि उसने परिवार की मर्यादा तोड़ी है.

यह घटना न सिर्फ सामाजिक कट्टरता को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि महिलाओं को आज भी अपने जीवन के फैसले लेने पर सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है. सामाजिक तौर पर आज भी महिलाएं सामाजिक बेड़ियों में जकड़ी हैं.  

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