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This Article is From Feb 11, 2017

अक्खड़ बनारसी के प्रतिरूप मशहूर कवि और साहित्यकार पंडित धर्मशील चतुर्वेदी नहीं रहे

अक्खड़ बनारसी के प्रतिरूप मशहूर कवि और साहित्यकार पंडित धर्मशील चतुर्वेदी नहीं रहे
पंडित धर्मशील चतुर्वेदी को सम्‍मानित करते रेल राज्‍यमंत्री मनोज सिन्‍हा. (फाइल फोटो)
बनारस: कवि सम्मेलनों में अपने ठहाके से ही रस भरने वाले मशहूर कवि और साहित्यकार धर्मशील चतुर्वेदी का शनिवार दोपहर को निधन हो गया. पं. धर्मशील चतुर्वेदी सांस की तकलीफ से परेशान थे और बीते दो महीने से उनकी ये परेशानी ज़्यादा बढ़ गई थी. उनके फेफड़ों में इंफेक्शन हो गया था, जिसके इलाज के लिए उन्हें बीएचयू अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं हुआ और शनिवार की दोपहर उन्होंने बीएचयू के आईसीयू में अंतिम सांस ली.  

उनके न रहने की जैसे ही खबर मिलने से शहरभर में शोक का माहौल हो गया. पंडित धर्मशील चतुर्वेदी काशी की सभ्यता, संस्कृति और कला को जीवन भर निभाते रहे. कहते हैं कि काशी में एक फक्कड़ बनारसी होते है और एक अक्खड़ बनारसी. अक्खड़ बनारसी कभी भी बनारसीपन से खिलवाड़ नहीं होने देता. पंडित जी अक्खड़ बनारसी थे, लिहाजा कहीं भी अगर काशी को लेकर अवमानना नजर आती थी तो वो अपने शब्द तर्क लेकर खड़े हो जाते थे. फिर चाहे वो बनारस की अड़ी हो या फिर कोई कवि सम्मलेन या साहित्यिक गोष्ठी. उनका अक्खड़पन हर जगह अपनी काशी के सम्मान के लिए किसी से भी दो-दो हाथ करता नजर आता था.  

सिर्फ यही नहीं, धर्मशील चतुर्वेदी काशी के कण-कण से वाकिफ थे. जिस भी विधा का पन्ना कोई भी खोलता था, वहां उनकी के विद्धवता का हस्ताक्षर जरूर नजर आते थे.

काशी का कवि सम्मलेन उनकी अध्यक्षता और ठहाके के बिना सूना नजर आता था. जिस भी मंच पर वो रहते थे, उनके दाद देने के अंदाज और ठहाके भर से महफ़िल में जान आ जाती थी. इतना ही नहीं, वो काशी के कवि सम्मेलनों की परंपरा के ध्वजवाहक भी थे. आज के बदलते परिवेश की तमाम चुनौतियों के बीच उसी अल्लहड़पन के साथ वे महालंठ सम्मलेन, महामूर्ख सम्मलेन, उलूक महोत्सव जैसे कार्यक्रमो को जीवित किए हुए थे.

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