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वाराणसी के ज्ञानवापी और मथुरा के शाही ईदगाह पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई, जानिए अदालत ने क्या कहा?

वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर कथित शिवलिंग को छोड़कर बाकी क्षेत्र का एएसआई से सर्वेक्षण कराने की मांग वाली याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को सुनवाई टाल दी और अगली तारीख छह अगस्त तय की.

वाराणसी के ज्ञानवापी और मथुरा के शाही ईदगाह पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई, जानिए अदालत ने क्या कहा?

शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के शाही ईदगाह पर दो बड़े फैसले सुनाए. कोर्ट में ज्ञानवापी वजूखाना के सर्वे की मांग वाली याचिका पर सुनवाई टल गई. वहीं मथुरा के “शाही ईदगाह” की जगह “विवादित ढांचा” शब्द के इस्तेमाल की मांग खारिज कर दी गई.

दरअसल उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर कथित शिवलिंग को छोड़कर बाकी क्षेत्र का एएसआई से सर्वेक्षण कराने की मांग वाली याचिका पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को सुनवाई टाल दी और अगली तारीख छह अगस्त तय की.

जब यह मामला शुक्रवार को न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की अदालत में सुनवाई के लिए आया, तब अदालत को बताया गया कि उच्चतम न्यायालय द्वारा 2020 की रिट याचिका संख्या 1246 (अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम केंद्र सरकार व अन्य) के मामले में पारित अंतरिम आदेश अब भी प्रभावी है, जिसे देखते हुए अदालत ने सुनवाई टाल दी.

उच्चतम न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में निर्देश दिया था कि यद्यपि नए वाद दाखिल किए जा सकते हैं, अगले आदेश तक कोई मुकदमा पंजीकृत नहीं किया जाएगा और उसमें कोई सुनवाई नहीं की जाएगी. साथ ही कोई भी अदालत सर्वेक्षण आदि सहित कोई अंतरिम आदेश या अंतिम आदेश पारित नहीं करेगी.

यह पुनरीक्षण याचिका वाराणसी के जिला न्यायाधीश के 21 अक्टूबर, 2023 के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई है जिसमें जिला न्यायाधीश ने ज्ञानवापी मस्जिद में वजूखाना क्षेत्र (कथित शिवलिंग को छोड़कर) का सर्वेक्षण करने का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को निर्देश देने से मना कर दिया था.

वाराणसी की अदालत में श्रृंगार गौरी की पूजा अर्चना वाद में शामिल वादकारियों में से एक राखी सिंह ने अपनी पुनरीक्षण याचिका में दलील दी है कि न्याय हित में वजूखाना क्षेत्र का सर्वेक्षण आवश्यक है क्योंकि इससे अदालत को निर्णय पर पहुंचने में मदद मिलेगी.

उन्होंने यह भी कहा है कि वजूखाना क्षेत्र का एएसआई से सर्वेक्षण इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि इससे संपूर्ण संपत्ति का धार्मिक चरित्र निर्धारित हो सकेगा.

उल्लेखनीय है कि एएसआई वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर का पहले ही सर्वेक्षण कर चुका है और वाराणसी के जिला न्यायाधीश को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. एएसआई ने सर्वेक्षण का कार्य वाराणसी के जिला न्यायाधीश के 21 जुलाई, 2023 के आदेश के मुताबिक किया था.

मथुरा में “शाही ईदगाह” की जगह “विवादित ढांचा” शब्द के इस्तेमाल की मांग खारिज

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मथुरा में “शाही ईदगाह” की जगह “विवादित ढांचा” शब्द के इस्तेमाल के लिए निर्देश जारी करने की मांग वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी.

मूल वाद के साथ अन्य संबंधित मामलों में आगे की सुनवाई के दौरान “शाही ईदगाह” की जगह “विवादित ढांचा” शब्द के इस्तेमाल के लिए संबंधित स्टेनोग्राफर को निर्देश जारी करने का अनुरोध करते हुए एक आवेदन ए-44 दाखिल किया गया था.

इस आवेदन के पक्ष में अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह द्वारा हलफनामा दाखिल किया गया था. वहीं दूसरी ओर, प्रतिवादियों की तरफ से लिखित आपत्ति दाखिल की गई थी. न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से जुड़े मूल मुकदमों की सुनवाई करते हुए शुक्रवार को यह आदेश पारित किया.

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद बिल्कुल उसी स्थान पर बनाई गई है जिसे ऐतिहासिक रूप से भगवान श्रीकृष्ण का मूल जन्म स्थान माना जाता है. यह स्थान हिंदुओं के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व का है.

वहीं, मुस्लिम पक्ष ने अपनी दलील में कहा कि मौजूदा आवेदन कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के इरादे से दाखिल किया गया है. वह मस्जिद 400 वर्षों से मौजूद है और इसकी मौजूदगी को मौजूदा आवेदन के द्वारा कम आंकने का प्रयास किया गया है. इस मुकदमे की सुनवाई अभी शुरू होनी है. मौजूदा आवेदन को स्वीकार करना, यह पूर्व निर्धारण करने जैसा होगा कि शाही ईदगाह मस्जिद, एक मस्जिद नहीं है.

दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा, “इस मुकदमे में पक्षों की दलीलों को सुनने से पता चलता है कि जहां शाही ईदगाह मस्जिद मौजूद है, उस स्थान के संबंध में दोनों पक्षों के बीच विवाद है. दोनों पक्षों ने इस संपत्ति की मिल्कियत पर दावे किए हैं. इसलिए इसे विवादित संपत्ति कहा जा सकता है.”

अदालत ने कहा, “दोनों पक्षों ने अपनी दलीलों में भी उस ढांचे को शाही ईदगाह मस्जिद कहा है और इस चरण में जहां मुकदमों की सुनवाई अभी शुरू होनी है और अभी मुद्दे तक तय नहीं हुए हैं, “शाही ईदगाह मस्जिद” को “विवादित ढांचा” के तौर पर संदर्भित करने का स्टेनोग्राफर को निर्देश देने का कोई औचित्य नहीं है. मुकदमे में संपत्ति की पहचान के संबंध में कोई विवाद नहीं है, इसलिए आवेदन ए-44 को इस चरण में स्वीकार नहीं किया जा सकता है.”

अदालत ने इस मुकदमे की अगली सुनवाई की तिथि 18 जुलाई, 2025 तय की. उल्लेखनीय है कि हिंदू पक्ष ने शाही ईदगाह ढांचा हटाने के बाद जमीन का कब्जा लेने और वहां मंदिर बहाल करने के लिए 18 मुकदमे दाखिल किए हैं.

इससे पूर्व, एक अगस्त, 2024 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हिंदू पक्षों की ओर से दायर इन मुकदमों की पोषणीयता (सुनवाई योग्य) को चुनौती देने वाली मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी थी.

अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि ये मुकदमे समय सीमा, वक्फ अधिनियम और पूजा स्थल अधिनियम, 1991 से बाधित नहीं हैं. पूजा स्थल अधिनियम किसी भी धार्मिक ढांचे को जो 15 अगस्त, 1947 को मौजूद था, उसे परिवर्तित करने से रोकता है.

अदालत ने 23 अक्टूबर, 2024 को कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मामले में 11 जनवरी, 2024 के आदेश को वापस लेने की मुस्लिम पक्ष की अर्जी खारिज कर दी थी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 11 जनवरी, 2024 के अपने निर्णय में हिंदू पक्षों की ओर से दायर सभी मुकदमों को समेकित कर दिया था.

यह विवाद मथुरा में मुगल सम्राट औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है जिसे कथित तौर पर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म स्थान पर एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया है.

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