Confirm Train Ticket: ट्रेन का टिकट बुक करते ही अगर वेटिंग दिख जाए, तो ज्यादातर यात्री यही सोचकर परेशान हो जाते हैं कि ये कंफर्म होगा भी या नहीं? त्योहारों या शादी सीजन हो या भीड़भाड़ वाला रूट, वेटिंग लिस्ट कई बार इतनी लंबी चली जाती है कि कंफर्म होने की उम्मीद भी कम लगने लगती है.
लेकिन काफी समय पहले रेलवे ने वेटिंग टिकट को लेकर कुछ ऐसे आंकड़े और नियम सामने रखे हैं, जिनसे यह अंदाजा लगाना आसान हो गया है कि आपका टिकट कंफर्म हो सकता है या नहीं.
वेटिंग टिकट पर लगी लिमिट
रेलवे ने साफ किया है कि किसी भी क्लास में कुल सीटों के 25% से ज्यादा वेटिंग टिकट जारी नहीं होंगे.यानी अगर एक कोच में 100 सीटें हैं तो वेटिंग सिर्फ 25 तक ही जाएगी.महिला और दिव्यांग यात्रियों को इस नियम से राहत मिलेगी.
यह सिस्टम भीड़ को कम तो नहीं करेगा, लेकिन टिकट बुकिंग को ज्यादा ट्रांसपेरेंट जरूर बनाएगा.
आखिर कितने नंबर तक वेटिंग टिकट कंफर्म हो सकता है?
कई ऐप्स कंफर्मेशन चांस दिखाते हैं, लेकिन वे हमेशा सटीक नहीं होते. रेलवे ने खुद कुछ औसत आंकड़े साझा किए हैं, जिनके आधार पर एक काफी सही अनुमान लगाया जा सकता है.
रेलवे का कंफर्मेशन फॉर्मूला क्या कहता है?
रेलवे का कहना है कि...
- औसतन 21% यात्री टिकट बुक करके कैंसिल कर देते हैं.
- लगभग 4–5% लोग टिकट बुक करने के बाद ट्रेन में चढ़ते ही नहीं.
- रेलवे का इमरजेंसी कोटा, जो पूरी तरह उपयोग में नहीं आता, वह भी बाद में वेटिंग को मिल जाता है.
- इन सबको जोड़ें तो कुल 25% सीटें खाली होकर वेटिंग तक पहुंच सकती हैं.
एक कोच में कितनी वेटिंग कंफर्म हो सकती है?
उदाहरण से समझें तो एक स्लीपर कोच में कुल 72 सीटें होती हैं. रेलवे के औसत आंकड़ों के अनुसार लगभग 25% सीटें कैंसिलेशन और इमरजेंसी कोटा के कारण खाली हो सकती हैं, यानी करीब 18 सीटें. इसका मतलब यह है कि एक स्लीपर कोच में लगभग 18 वेटिंग टिकट कंफर्म होने की अच्छी संभावना रहती है.
पूरी ट्रेन में कुल कितनी वेटिंग कंफर्म हो सकती है?
अगर किसी ट्रेन में 10 स्लीपर कोच हैं तो10 × 18 = 180 सीटें कंफर्म होने की संभावना होगी.यही गणित एसी कोचों पर भी लगभग लागू होता है.
टिकट कंफर्मेशन चांस किन बातों पर निर्भर करता है?
कंफर्मेशन की संभावना कई बातों पर निर्भर करती है. त्योहारों या शादी सीजन के दौरान ट्रेनों में भीड़ बहुत बढ़ जाती है, जिससे वेटिंग लिस्ट लंबी होने के कारण टिकट कंफर्म होने के चांस कम हो जाते हैं. इसी तरह बेहद व्यस्त रूट्स पर भी वेटिंग जल्दी भर जाती है और कंफर्मेशन की संभावना कम हो जाती है. कोच टाइप भी इसमें अहम भूमिका निभाता है .स्लीपर कोच में आमतौर पर कंफर्मेशन के चांस थोड़ा बेहतर रहते हैं, जबकि एसी कोचों में सीटें कम होने और मांग ज्यादा होने की वजह से चांस अपेक्षाकृत कम हो जाते हैं.
ट्रेन टिकट कंफर्म होने के चांस कैसे बढ़ाएं?
- आप जितना जल्दी टिकट बुक करेंगे, उतनी ही वेटिंग कम होने की संभावना रहोगी.
- संभव हो तो कम बिजी रूट चुनें.
- ट्रैवल डेट फ्लेक्सिबल हो तो अलग-अलग दिनों में ट्राई करें.
- नियमित रूप से अपना वेटिंग स्टेटस चेक करते रहें.
अगर आप भी हर बार वेटिंग देखकर परेशान हो जाते हैं, तो रेलवे का यह फॉर्मूला आपके काम आएगा.अगली बार टिकट बुक करते समय इन आंकड़ों को ध्यान में रखेंगे, तो अंदाजा लगाना काफी आसान हो जाएगा कि टिकट कंफर्म होगा या नहीं.
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