देश में दिवाली के बाद से प्रदूषण बढ़ने के साथ हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम भी तेजी से बढ़े हैं. 2022 में जहां कुल क्लेम में से 6.4% केस प्रदूषण से जुड़े थे, वहीं 2025 में यह बढ़कर 9% हो गए. सिर्फ सितंबर 2025 में ही लगभग 9% अस्पताल में भर्ती मरीज ऐसे थे जिन्हें प्रदूषण से होने वाली परेशानियां जैसे सांस की दिक्कत, हार्ट प्रॉब्लम, एलर्जी, आंख और स्किन से जुड़ी समस्याएं हो रही थीं.
दिल्ली में ऐसे क्लेम सबसे ज्यादा दर्ज किए गए, जबकि बेंगलुरु और हैदराबाद में इन क्लेम का अनुपात ज्यादा पाया गया.
प्रदूषण से जुड़े इंश्योरेंस क्लेम में लगभग 43% बच्चे शामिल
प्रदूषण न सिर्फ सेहत बिगाड़ रहा है, बल्कि परिवारों का खर्च भी बढ़ा रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, सभी प्रदूषण से जुड़े क्लेम में लगभग 43% बच्चे शामिल हैं, यानी सबसे ज्यादा प्रभावित यही आयु वर्ग है. इसके अलावा सांस और दिल की बीमारियों का इलाज पिछले एक साल में 11% महंगा हुआ है, और बच्चों पर इसका असर बाकी आयु समूहों की तुलना में पांच गुना ज्यादा देखा गया है.
मेट्रो शहर में महंगा हो सकता है हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम
ऐसे में अगर आप दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू जैसे मेट्रो शहर में रहते हैं, तो आपका हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम (Health Insurance Premium) आने वाले समय में और महंगा हो सकता है.मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इंश्योरेंस कंपनियां अब शहर के हिसाब से प्रीमियम तय करने की तैयारी में हैं और इसमें सबसे ज्यादा असर मेट्रो शहरों पर दिखेगा. सवाल यह है कि क्या सिर्फ शहर बदलने से इंश्योरेंस महंगा हो जाता है? दरअसल, इसके पीछे कई ऐसी वजहें हैं जो सीधे आपकी जेब पर असर डालती हैं.
आजकल की लाइफस्टाइल, बढ़ता प्रदूषण, महंगा इलाज और मेट्रो शहरों में बढ़ते क्लेम इंश्योरेंस कंपनियों को अलग तरह से प्रीमियम तय करने पर मजबूर कर रहे हैं. आइए इसे अच्छी तरह समझते हैं.
मेट्रो शहरों में इलाज सबसे महंगा , प्रीमियम पर सीधा असर
इंश्योरेंस कंपनियों का कहना है कि मेट्रो शहरों में हॉस्पिटल का खर्च बाकी शहरों की तुलना में बहुत ज्यादा है. बड़ी-बड़ी कॉर्पोरेट और मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल के कारण कमरे का किराया, दवाइयां, टेस्ट और डॉक्टर फीस सब ज्यादा होती है.यही वजह है कि इन शहरों में क्लेम भी ज्यादा आते हैं और इंश्योरेंस कंपनियों को अधिक पैसे देने पड़ते हैं. यही खर्च फिर सीधे आपके प्रीमियम पर जुड़ जाता है.
लाइफस्टाइल की वजह से तेजी से बढ़ रही कई बीमारियां
दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू जैसे शहरों में हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हार्ट प्रॉब्लम जैसी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. ये बीमारियां लंबे समय तक इलाज और चेकअप मांगती हैं, जिससे क्लेम बढ़ जाता है.इसलिए कंपनियां मेट्रो शहरों का प्रीमियम बाकी शहरों से अलग रखती हैं.
प्रदूषण भी बढ़ा रहा है क्लेम का बोझ?
दिल्ली जैसे शहरों में प्रदूषण का असर अब सीधे हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर दिख रहा है.अस्थमा, COPD, सांस की समस्याएं और हार्ट प्रॉब्लम के केस तेजी से बढ़े हैं. इन बीमारियों में अस्पताल में भर्ती होने के मामले ज्यादा आते हैं, और इलाज भी महंगा होता है. इंश्योरेंस कंपनियां इसे हाई रिस्क कैटेगरी मानती हैं और प्रीमियम बढ़ा देती हैं.
इंश्योरेंस कंपनियां कैसे तय करती हैं शहर के हिसाब से प्रीमियम
इंश्योरेंस कंपनियां पूरे देश को अलग-अलग शहर जोन में बांटती हैं, ताकि हर जगह के हिसाब से सही प्रीमियम तय किया जा सके. ज्यादातर कंपनियां भारत को तीन zones में रखती हैं Zone 1 में दिल्ली और मुंबई जैसे मेट्रो शहर आते हैं, Zone 2 में बड़े शहर और Zone 3 में छोटे शहर शामिल होते हैं.
मेट्रो शहरों में हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम 10 से 20 प्रतिशत तक ज्यादा होता है, क्योंकि यहां अस्पताल में इलाज का खर्च काफी अधिक है और क्लेम भी ज्यादा दर्ज होते हैं. इलाज महंगा होने की वजह हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों का खर्च बढ़ जाता है, जो सीधे प्रीमियम में दिखता है.
इंश्योरेंस कंपनियां किन फैक्टर्स को देखकर तय करती हैं प्रीमियम
प्रीमियम तय करते समय कंपनियां सिर्फ शहर की कैटेगरी नहीं देखतीं, बल्कि कई और बातें भी ध्यान में रखती हैं.मेट्रो शहरों में अस्पताल का रूम किराया, डॉक्टर फीस, टेस्ट और दवाइयों की कीमत बाकी शहरों की तुलना में ज्यादा होती है.इसके अलावा लाइफस्टाइल बीमारियां जैसे हाई BP, डायबिटीज और हार्ट प्रॉब्लम भी बड़े शहरों में तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे क्लेम बढ़ जाते हैं.
प्रदूषण भी एक बड़ी वजह है, खासकर दिल्ली जैसे शहरों में, जहां अस्थमा और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां ज्यादा देखने को मिलती हैं.कंपनियां पिछले क्लेम का डेटा, शहर में मौजूद अस्पतालों की क्वालिटी और उनकी फीस को भी देखती हैं, और इन्हीं सभी फैक्टर्स के आधार पर प्रीमियम तय किया जाता है.
क्या प्रदूषण के लिए अलग से कोई हेल्थ कवर आ सकता है?
कई एक्सपर्ट मानते हैं कि भविष्य में पॉल्यूशन बेस्ड हेल्थ कवर या ऐड ऑन भी आ सकता है. हालांकि अभी ज्यादातर हेल्थ इंश्योरेस प्लान में अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों की बीमारियां पहले से कवर होती हैं.
प्रीमियम बढ़ना कितनी हद तक सही है?
एक तरफ कंपनियों के पास डेटा है जिससे साबित होता है कि मेट्रो शहरों में खर्च ज्यादा है.लेकिन दूसरी तरफ यह भी सच है कि प्रदूषण जैसे कारण लोगों के कंट्रोल में नहीं हैं. इसलिए प्राइसिंग का तरीका ट्रांसपेरेंट होना चाहिए ताकि प्रीमियम का बोझ ज्यादा न पड़े.
मेट्रो शहरों के लोग अगर प्रीमियम कम रखना चाहते हैं, तो उन्हें ज्यादा एक्टिव लाइफस्टाइल, समय पर चेकअप और सही हेल्थ इंश्योरेंस प्लान (Health insurance plan) चुनने पर फोकस करना होगा. इंश्योरेंस कंपनियों के लिए भी यह बैलेंस बनाना आसान नहीं है, लेकिन इलाज का खर्च बढ़ता रहेगा, तो प्रीमियम भी बढ़ना तय है.
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