
आज बढ़ती महंगाई के समय में अपना घर होना, किसी सपने से कम नहीं होता है. आम आदमी अपनी मेहनत की कमाई से लोन पर घर तो ले लेता है, पर बिल्डर के खेल में फंस कर जिंदगी भर सिर्फ पछतावा रह जाता है. दरअसल बिल्डर झूठ घर की असल कीमत में झोल कर देते हैं, फिर बाद में रिसेल या भाड़े पर उठाने में मन के अनुसार अमाउंट नहीं मिलता है. पर आज हम आपको एक ऐसा फॉर्मूला बताएंगे, जिसके जरिए आप एक बड़े घाटे से अपने आप को बचा सकते हैं.
असल फाइनेंशियल वैल्यू पर होती है समस्या
दरअसल घर खरीदने वाले को बिल्डर लोकेशन, फैसिलिटी को लेकर फंसा देते हैं, जिससे होता ये है कि ग्राहक मुंह मांगी कीमत देने को तैयार हो जाते हैं और प्रॉपर्टी की असल फाइनेंशियल वैल्यू को पता नहीं लगा पाते. पर ग्रॉस रेट मल्टीप्लायर फॉर्मूले के जरिए कहीं ना कहीं बिल्डर के जाल से बचा जा सकता है. बहुत समय से बड़े निवेशक इस फॉर्मूले का इस्तेमाल कर रहे हैं.
क्या है जीआरएम फॉर्मूला?
फॉर्मूले का नाम ग्रॉस रेट मल्टीप्लायर है. जिसमें प्रॉपर्टी की कुल कीमत/ प्रॉपर्टी से मिलने वाला हर साल किराए, का इस्तेमाल करते हैं. एक बात ध्यान में ये रखिए कि ग्रॉस रेट मल्टीप्लायर जितना कम होगा, उतना ही इंवेस्टमेंट अच्छा माना जाता है.
उदाहरण से समझिए
आपको एक उदाहरण से इसे समझाते हैं. मान लीजिए आप एक प्रॉपर्टी खरीदने जा रहे हैं, जिसकी कीमत 50 लाख रुपये है. वहीं हर महीने इससे 20 हजार रुपये (2,40,000 हर साल) किराए के तौर पर मिल सकते हैं. फिर फॉर्मूले के अनुसार 50 लाख/2,40,000 से आपका जीआरएम 20.83 बनता है. वहीं अगर किराया कम करके 10 हजार रुपये हर महीने (1,20,000 रुपये सालाना) करते हैं को जीआरएम 50 आता है.
जीआरएम 20 से नीचे अच्छा माना जाता है. इसलिए जब भी नई प्रॉपर्टी खरीदें, तो इस फॉर्मूले का इस्तेमाल करना ना भूलें.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं