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Blog Of Priyadarshan

'Blog Of Priyadarshan' - 32 News Result(s)
  • प्रियदर्शन का ब्लॉग : द्रौपदी मुर्मू का अपमान और हमारे अपने पूर्वाग्रह

    प्रियदर्शन का ब्लॉग : द्रौपदी मुर्मू का अपमान और हमारे अपने पूर्वाग्रह

    स्त्री की गरिमा कोई ऐसी चीज़ नहीं है कि वह एक शब्द से घायल हो जाए। स्त्री का सम्मान एक बड़ी चीज़ है जो आपके पूरे व्यवहार से आता है। उसे आप अपने राजनीतिक आक्रमण की रणनीति के तौर पर इस्तेमाल करते हैं तो दरअसल उसकी गरिमा कम करते हैं। 

  • ताकि तिरंगे की गरिमा बची रहे

    ताकि तिरंगे की गरिमा बची रहे

    जिस दौर में बीस करोड़ घरों में तिरंगा फहराने की बात हो रही है, उस दौर में इस देश के चरित्र को जैसे बदला जा रहा है. पहले लोग चोरी-छुपे यह कहते थे कि यह देश सिर्फ़ हिंदुओं का है, अब खुल कर यह बात कही जा रही है और इस बहुसंख्यकवादी उभार को सत्ता प्रतिष्ठान का परोक्ष समर्थन और सहयोग हासिल है.

  • शब्द असंसदीय हैं या हमारे माननीय सांसदों का व्यवहार?

    शब्द असंसदीय हैं या हमारे माननीय सांसदों का व्यवहार?

    संसद में डेढ़ हज़ार से ज़्यादा शब्दों को असंसदीय घोषित कर दिया गया है। अब संसद की कार्यवाही के दौरान इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। यानी अब किसी वाकये को शर्मनाक नहीं बताया जा सकेगा, किसी को भ्रष्ट नहीं कहा जा सकेगा, किसी के लिए गिरगिट जैसा विश्लेषण इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।

  • हिंदी से कौन डरता है?

    हिंदी से कौन डरता है?

    लेकिन हिंदी से भारतीय भाषाओं के इस शत्रु-भाव की वजह क्या है? यह बहुत जानी-पहचानी बात है कि जब इस देश में त्रिभाषा फॉर्मूला लागू हुआ तो उसके पीछे यह मंशा थी कि लोग हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा एक भारतीय भाषा भी सीख लें.इससे वह सांस्कृतिक पुल बनता जो हिंदी को मराठी-पंजाबी, तेलुगू-तमिल, कन्नड़ या बांग्ला के लिए इतना अपरिचित न रहने देता.ले

  • बुकर की शॉर्ट लिस्ट में आई यह हिन्दी लेखिका कौन है?

    बुकर की शॉर्ट लिस्ट में आई यह हिन्दी लेखिका कौन है?

    गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' का अंग्रेज़ी अनुवाद Tomb of Sand बुकर लांग लिस्ट के लिए चुनी गई 13 कृतियों में शामिल है. अचानक बहुत सारे लोग पूछने लगे कि यह गीतांजलि श्री कौन हैं? बेशक, इस सवाल में भी हिन्दी समाज और साहित्य दोनों की एक विडंबना झांकती है. दोनों को एक-दूसरे के जितने करीब होना चाहिए, उतने वे नहीं हैं.

  • यहां से कांग्रेस कहां जाएगी? खिलेगी या ख़त्म हो जाएगी?

    यहां से कांग्रेस कहां जाएगी? खिलेगी या ख़त्म हो जाएगी?

    भारतीय राजनीति में- या संसदीय लोकतंत्र में- बहुत सारी चीज़ें बदल चुकी है. राजनीति में असंभव को साधने का खेल इतनी बार किया जा चुका है कि बस अब असंभव ही संभव लगता है.

  • तालिबान से इतना डरने की वजह क्या है?

    तालिबान से इतना डरने की वजह क्या है?

    यह सच है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की हुकूमत वहां की जनता के लिए किसी दु:स्वप्न से कम नहीं. वहां फिर इस्लाम और शरीयत के नाम पर ऐसे क़ानून थोपे जा रहे हैं, जिनका समानता, स्वतंत्रता और विवेक से वास्ता नहीं दिखता है.

  • सावधान, आप खिलाड़ियों से ही न खेलने लगें

    सावधान, आप खिलाड़ियों से ही न खेलने लगें

    भारतीय खिलाड़ी किन हालात में अपना खेल जारी रखते हैं, कितनी मुश्किलों से पदक के पोडियम तक पहुंचते हैं, एक लम्हे की रोशनी के लिए अभावों के कितने थपेड़े झेलते हुए अंधेरों के कितने समंदर पार करते हैं, यह कोई नहीं जानता. लेकिन उनकी सफलता को भुनाने के लिए नेता भी चले आते हैं और खिलाड़ी भी.

  • संसद की अवमानना का असली ज़िम्मेदार कौन है?

    संसद की अवमानना का असली ज़िम्मेदार कौन है?

    प्रधानमंत्री दुखी हैं कि विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा. इसे वे संसद, संविधान और लोकतंत्र विरोधी कृत्य मान रहे हैं. लोकसभाध्यक्ष उचित ही यह हिसाब लगा रहे हैं कि मॉनसून सत्र के बरबाद गए घंटों की वजह से कितने रुपये जाया हुए. लेकिन क्या यह कोई नई प्रक्रिया है जो संसद में पहली बार देखी जा रही है?

  • अब किसी नई 'पहल' का इंतज़ार है

    अब किसी नई 'पहल' का इंतज़ार है

    'पहल' के पहले दौर से भी मैं जुड़ा रहा - एक पाठक की तरह और एक 'पहल' विक्रेता की तरह. यह 87 से 90 के बीच के कभी के दिन थे, जब रांची में रहते हुए और जन संस्कृति मंच के लिए उत्साह और सक्रियता से काम करते हुए हम बाहर की पत्रिकाएं बांटना-बेचना भी अपना कर्तव्य समझते थे.

  • तो आप उनका आर्थिक बहिष्कार करना चाहते हैं?

    तो आप उनका आर्थिक बहिष्कार करना चाहते हैं?

    इन दिनों सोशल मीडिया पर बहुत ज़ोर-शोर से मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की मुहिम चलाई जा रही है. वैसे यह कोई नई सूझ नहीं है. हिंदुत्व ब्रिगेड के उत्साही विचारक-प्रचारक पहले भी यह बात कहते रहे हैं, बल्कि चोरी-छुपे इस पर अमल करने की कोशिश भी करते रहे हैं. किराये पर मकान देने में, नौकरी देने में और यहां तक कि कभी-कभी कुछ ख़रीदने बेचने में वह इस बात का ध्यान रखते हैं कि सामने वाला मुसलमान, अछूत या पिछड़ी जाति का तो नहीं है?

  • निर्भया के इंसाफ़ की गरिमा बनाए रखें- उसे जल्दबाज़ी भरे प्रतिशोध में न बदलें

    निर्भया के इंसाफ़ की गरिमा बनाए रखें- उसे जल्दबाज़ी भरे प्रतिशोध में न बदलें

    निर्भया की मां आशा देवी का दुख निस्संदेह बहुत बड़ा है. इस दुख को समझना मुश्किल नहीं है. उनकी बेटी के साथ बहुत बर्बर और घृणित व्यवहार हुआ और उसके मुजरिमों को अब तक सज़ा नहीं मिली है. लेकिन सांत्वना की बात इतनी भर है कि ये मुजरिम सजा के बिल्कुल आख़िरी सिरे पर हैं, ख़ुद को मिले अंतिम क़ानूनी विकल्पों का इस्तेमाल कर रहे हैं और इनकी सज़ा के लिए गिनती के दिन रह गए हैं. यही नहीं, न्याय से जुड़ी संस्थाएं जितनी तेज़ी से न्याय की इस प्रक्रिया को आगे बढ़ा रही हैं, वह रफ़्तार किसी और केस में दिखाई नहीं पड़ती.

  • एक दलित को विभागाध्यक्ष बनने से क्यों रोक रहा है दिल्ली विश्वविद्यालय?

    एक दलित को विभागाध्यक्ष बनने से क्यों रोक रहा है दिल्ली विश्वविद्यालय?

    श्यौराज सिंह बेचैन की आत्मकथा का नाम है- 'मेरा बचपन मेरे कंधों पर.' यह आत्मकथा बताती है कि एक दलित बचपन कैसा होता है. बचपन बीत गया, लेकिन अपनी दलित पहचान का सलीब अब भी अपने कंधों पर लेकर घूमने को मजबूर हैं श्यौराज सिंह बेचैन. वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में पढ़ाते हैं. वरिष्ठता क्रम में बीते महीने की तेरह तारीख़ को उनको विभागाध्यक्ष बनाया जाना था. बताया जाता है कि बारह तारीख़ को विश्वविद्यालय ने उनसे दस्तावेज़ लिए, उनके नाम पर लगभग मुहर लगा दी.

  • कुलभूषण जाधव को हम कैसे बचाएंगे?

    कुलभूषण जाधव को हम कैसे बचाएंगे?

    हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से आए फ़ैसले के बाद भारत में जीत और जश्न का जो माहौल है, उसमें यह बात जैसे छुपी रह जा रही है कि कुलभूषण जाधव की बस फांसी टली है, उन पर संकट नहीं टला है. क्योंकि हेग से आए फ़ैसले ने बेशक भारत के बहुत सारे आरोपों को सही पाया है लेकिन बहुत सारी दूसरी मांगें ठुकरा भी दी हैं. भारत की मांग थी कि कुलभूषण जाधव को भारत भेजा जाए और उन पर कोर्ट मार्शल के तहत सुनाए गए फ़ैसले को अवैध करार दिया जाए.

  • आख़िर कांग्रेस ख़त्म क्यों नहीं होती?

    आख़िर कांग्रेस ख़त्म क्यों नहीं होती?

    योगेंद्र यादव के ट्वीट को लेकर हंगामा हो रहा है, लेकिन उसे ध्यान से देखने की ज़रूरत है. उन्होंने लिखा है, 'कांग्रेस को ख़त्म हो जाना चाहिए. अगर वो भारत के विचार की रक्षा के लिए बीजेपी को इन चुनावों में रोक पाने में नाकाम रही तो इस पार्टी के लिए भारतीय इतिहास में कोई सकारात्मक भूमिका नहीं है. आज किसी विकल्प के निर्माण में ये सबसे बड़ी बाधा की प्रतिनिधि है.'

'Blog Of Priyadarshan' - 32 News Result(s)
  • प्रियदर्शन का ब्लॉग : द्रौपदी मुर्मू का अपमान और हमारे अपने पूर्वाग्रह

    प्रियदर्शन का ब्लॉग : द्रौपदी मुर्मू का अपमान और हमारे अपने पूर्वाग्रह

    स्त्री की गरिमा कोई ऐसी चीज़ नहीं है कि वह एक शब्द से घायल हो जाए। स्त्री का सम्मान एक बड़ी चीज़ है जो आपके पूरे व्यवहार से आता है। उसे आप अपने राजनीतिक आक्रमण की रणनीति के तौर पर इस्तेमाल करते हैं तो दरअसल उसकी गरिमा कम करते हैं। 

  • ताकि तिरंगे की गरिमा बची रहे

    ताकि तिरंगे की गरिमा बची रहे

    जिस दौर में बीस करोड़ घरों में तिरंगा फहराने की बात हो रही है, उस दौर में इस देश के चरित्र को जैसे बदला जा रहा है. पहले लोग चोरी-छुपे यह कहते थे कि यह देश सिर्फ़ हिंदुओं का है, अब खुल कर यह बात कही जा रही है और इस बहुसंख्यकवादी उभार को सत्ता प्रतिष्ठान का परोक्ष समर्थन और सहयोग हासिल है.

  • शब्द असंसदीय हैं या हमारे माननीय सांसदों का व्यवहार?

    शब्द असंसदीय हैं या हमारे माननीय सांसदों का व्यवहार?

    संसद में डेढ़ हज़ार से ज़्यादा शब्दों को असंसदीय घोषित कर दिया गया है। अब संसद की कार्यवाही के दौरान इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। यानी अब किसी वाकये को शर्मनाक नहीं बताया जा सकेगा, किसी को भ्रष्ट नहीं कहा जा सकेगा, किसी के लिए गिरगिट जैसा विश्लेषण इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा।

  • हिंदी से कौन डरता है?

    हिंदी से कौन डरता है?

    लेकिन हिंदी से भारतीय भाषाओं के इस शत्रु-भाव की वजह क्या है? यह बहुत जानी-पहचानी बात है कि जब इस देश में त्रिभाषा फॉर्मूला लागू हुआ तो उसके पीछे यह मंशा थी कि लोग हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा एक भारतीय भाषा भी सीख लें.इससे वह सांस्कृतिक पुल बनता जो हिंदी को मराठी-पंजाबी, तेलुगू-तमिल, कन्नड़ या बांग्ला के लिए इतना अपरिचित न रहने देता.ले

  • बुकर की शॉर्ट लिस्ट में आई यह हिन्दी लेखिका कौन है?

    बुकर की शॉर्ट लिस्ट में आई यह हिन्दी लेखिका कौन है?

    गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' का अंग्रेज़ी अनुवाद Tomb of Sand बुकर लांग लिस्ट के लिए चुनी गई 13 कृतियों में शामिल है. अचानक बहुत सारे लोग पूछने लगे कि यह गीतांजलि श्री कौन हैं? बेशक, इस सवाल में भी हिन्दी समाज और साहित्य दोनों की एक विडंबना झांकती है. दोनों को एक-दूसरे के जितने करीब होना चाहिए, उतने वे नहीं हैं.

  • यहां से कांग्रेस कहां जाएगी? खिलेगी या ख़त्म हो जाएगी?

    यहां से कांग्रेस कहां जाएगी? खिलेगी या ख़त्म हो जाएगी?

    भारतीय राजनीति में- या संसदीय लोकतंत्र में- बहुत सारी चीज़ें बदल चुकी है. राजनीति में असंभव को साधने का खेल इतनी बार किया जा चुका है कि बस अब असंभव ही संभव लगता है.

  • तालिबान से इतना डरने की वजह क्या है?

    तालिबान से इतना डरने की वजह क्या है?

    यह सच है कि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की हुकूमत वहां की जनता के लिए किसी दु:स्वप्न से कम नहीं. वहां फिर इस्लाम और शरीयत के नाम पर ऐसे क़ानून थोपे जा रहे हैं, जिनका समानता, स्वतंत्रता और विवेक से वास्ता नहीं दिखता है.

  • सावधान, आप खिलाड़ियों से ही न खेलने लगें

    सावधान, आप खिलाड़ियों से ही न खेलने लगें

    भारतीय खिलाड़ी किन हालात में अपना खेल जारी रखते हैं, कितनी मुश्किलों से पदक के पोडियम तक पहुंचते हैं, एक लम्हे की रोशनी के लिए अभावों के कितने थपेड़े झेलते हुए अंधेरों के कितने समंदर पार करते हैं, यह कोई नहीं जानता. लेकिन उनकी सफलता को भुनाने के लिए नेता भी चले आते हैं और खिलाड़ी भी.

  • संसद की अवमानना का असली ज़िम्मेदार कौन है?

    संसद की अवमानना का असली ज़िम्मेदार कौन है?

    प्रधानमंत्री दुखी हैं कि विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा. इसे वे संसद, संविधान और लोकतंत्र विरोधी कृत्य मान रहे हैं. लोकसभाध्यक्ष उचित ही यह हिसाब लगा रहे हैं कि मॉनसून सत्र के बरबाद गए घंटों की वजह से कितने रुपये जाया हुए. लेकिन क्या यह कोई नई प्रक्रिया है जो संसद में पहली बार देखी जा रही है?

  • अब किसी नई 'पहल' का इंतज़ार है

    अब किसी नई 'पहल' का इंतज़ार है

    'पहल' के पहले दौर से भी मैं जुड़ा रहा - एक पाठक की तरह और एक 'पहल' विक्रेता की तरह. यह 87 से 90 के बीच के कभी के दिन थे, जब रांची में रहते हुए और जन संस्कृति मंच के लिए उत्साह और सक्रियता से काम करते हुए हम बाहर की पत्रिकाएं बांटना-बेचना भी अपना कर्तव्य समझते थे.

  • तो आप उनका आर्थिक बहिष्कार करना चाहते हैं?

    तो आप उनका आर्थिक बहिष्कार करना चाहते हैं?

    इन दिनों सोशल मीडिया पर बहुत ज़ोर-शोर से मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की मुहिम चलाई जा रही है. वैसे यह कोई नई सूझ नहीं है. हिंदुत्व ब्रिगेड के उत्साही विचारक-प्रचारक पहले भी यह बात कहते रहे हैं, बल्कि चोरी-छुपे इस पर अमल करने की कोशिश भी करते रहे हैं. किराये पर मकान देने में, नौकरी देने में और यहां तक कि कभी-कभी कुछ ख़रीदने बेचने में वह इस बात का ध्यान रखते हैं कि सामने वाला मुसलमान, अछूत या पिछड़ी जाति का तो नहीं है?

  • निर्भया के इंसाफ़ की गरिमा बनाए रखें- उसे जल्दबाज़ी भरे प्रतिशोध में न बदलें

    निर्भया के इंसाफ़ की गरिमा बनाए रखें- उसे जल्दबाज़ी भरे प्रतिशोध में न बदलें

    निर्भया की मां आशा देवी का दुख निस्संदेह बहुत बड़ा है. इस दुख को समझना मुश्किल नहीं है. उनकी बेटी के साथ बहुत बर्बर और घृणित व्यवहार हुआ और उसके मुजरिमों को अब तक सज़ा नहीं मिली है. लेकिन सांत्वना की बात इतनी भर है कि ये मुजरिम सजा के बिल्कुल आख़िरी सिरे पर हैं, ख़ुद को मिले अंतिम क़ानूनी विकल्पों का इस्तेमाल कर रहे हैं और इनकी सज़ा के लिए गिनती के दिन रह गए हैं. यही नहीं, न्याय से जुड़ी संस्थाएं जितनी तेज़ी से न्याय की इस प्रक्रिया को आगे बढ़ा रही हैं, वह रफ़्तार किसी और केस में दिखाई नहीं पड़ती.

  • एक दलित को विभागाध्यक्ष बनने से क्यों रोक रहा है दिल्ली विश्वविद्यालय?

    एक दलित को विभागाध्यक्ष बनने से क्यों रोक रहा है दिल्ली विश्वविद्यालय?

    श्यौराज सिंह बेचैन की आत्मकथा का नाम है- 'मेरा बचपन मेरे कंधों पर.' यह आत्मकथा बताती है कि एक दलित बचपन कैसा होता है. बचपन बीत गया, लेकिन अपनी दलित पहचान का सलीब अब भी अपने कंधों पर लेकर घूमने को मजबूर हैं श्यौराज सिंह बेचैन. वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में पढ़ाते हैं. वरिष्ठता क्रम में बीते महीने की तेरह तारीख़ को उनको विभागाध्यक्ष बनाया जाना था. बताया जाता है कि बारह तारीख़ को विश्वविद्यालय ने उनसे दस्तावेज़ लिए, उनके नाम पर लगभग मुहर लगा दी.

  • कुलभूषण जाधव को हम कैसे बचाएंगे?

    कुलभूषण जाधव को हम कैसे बचाएंगे?

    हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय से आए फ़ैसले के बाद भारत में जीत और जश्न का जो माहौल है, उसमें यह बात जैसे छुपी रह जा रही है कि कुलभूषण जाधव की बस फांसी टली है, उन पर संकट नहीं टला है. क्योंकि हेग से आए फ़ैसले ने बेशक भारत के बहुत सारे आरोपों को सही पाया है लेकिन बहुत सारी दूसरी मांगें ठुकरा भी दी हैं. भारत की मांग थी कि कुलभूषण जाधव को भारत भेजा जाए और उन पर कोर्ट मार्शल के तहत सुनाए गए फ़ैसले को अवैध करार दिया जाए.

  • आख़िर कांग्रेस ख़त्म क्यों नहीं होती?

    आख़िर कांग्रेस ख़त्म क्यों नहीं होती?

    योगेंद्र यादव के ट्वीट को लेकर हंगामा हो रहा है, लेकिन उसे ध्यान से देखने की ज़रूरत है. उन्होंने लिखा है, 'कांग्रेस को ख़त्म हो जाना चाहिए. अगर वो भारत के विचार की रक्षा के लिए बीजेपी को इन चुनावों में रोक पाने में नाकाम रही तो इस पार्टी के लिए भारतीय इतिहास में कोई सकारात्मक भूमिका नहीं है. आज किसी विकल्प के निर्माण में ये सबसे बड़ी बाधा की प्रतिनिधि है.'