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This Article is From Sep 05, 2015

शिक्षक दिवस विशेष : मॉडर्न हो गए हैं कुश्ती के गुरू

शिक्षक दिवस विशेष : मॉडर्न हो गए हैं कुश्ती के गुरू
सुशील कुमार और सतपाल सिंह की जोड़ी अटूट है
नई दिल्ली: डबल ओलिंपिक पदक विजेता सुशील कुमार अब छत्रसाल स्टेडियम में उसी कुर्सी पर बैठते हैं जहां पहले लंबे समय तक महाबली सतपाल बैठते थे। छत्रसाल स्टेडियम में पहुंचकर सतपाल ने सुशील को फोन किया। सुशील कहते हैं, 'एक मिनट जी, अभी आया।' ऑफिस से आकर सुशील अपने गुरू महाबली सतपाल के पांव छूते हैं और फिर क़रीब दो सौ बच्चे सुशील और सतपाल के पांव छूकर कुश्ती के अभ्यास में जुट जाते हैं। कुश्ती से पहले गुरू के पांव छूना इस अखाड़े की और दरअसल भारत में किसी भी अखाड़े की परंपरा है। जानकार मानते हैं कि भारत में कुश्ती इसी परंपरा के सहारे ज़िन्दा है।

भारतीय खेलों में गुरु या कोच के सम्मान के बगैर किसी खिलाड़ी का ऊपर उठना मुमकिन नहीं है। खिलाड़ी सम्मान करते हुए खेलों के दांव-पेच सीखते हैं और गुरू या कोच खिलाड़ियों की हर ताक़त और कमज़ोरी का ख़्याल रखते हैं। मैदान पर प्रतियोगिता के दौरान प्रशंसक और जानकार भले ही खिलाड़ी की हार और जीत का कितना भी विश्लेषण कर लें लेकिन कोच को अच्छे से अंदाज़ा होता है कि उसका खिलाड़ी कितने पानी में है?

1982 एशियाई खेलों में गोल्ड जीत चुके महाबली सतपाल और भारत के डबल ओलिंपिक पदक विजेता सुशील कुमार का साथ क़रीब दो दशकों का है। सुशील बताते हैं, 'जब मैं 12-14 साल का था तब इन्हीं छोटे पहलवानों की तरह यहां आया था। गुरूजी ने मेरी हर ज़रूरतों का ख़्याल रखा। मुझे देश में, एशिया में और फिर वर्ल्ड लेवल पर चैंपियन बनाया, जो कुछ सीखा यहीं से सीखा।' वहीं सतपाल कहते हैं,'मैं भाग्यशाली हूं कि मुझे सुशील या योगेश्वर दत्त जैसे पहलवान मिले। चेले में टैलेंट हो तभी गुरु भी उसे ऊंचाइयों पर पहुंचा सकता है।'

शायद इस जोड़ी का तालमेल बिल्कुल अलग स्तर पर था तभी आज दोनों ससुर-दामाद भी बन गए। इन सबके बावजूद सुशील अब भी कई बार कुश्ती की बारीकियों को समझने के लिए उसी विनम्रता से गुरू सतपाल का सहारा ढूंढते हैं। कई खेलों में खिलाड़ी एक ख़ास कोच की मांग करते हैं तो शायद उसकी वजह भी यही है। खिलाड़ी और कोच का तालमेल उन्हें खेल की ऊंचाइयों पर पहुंचाने में अहम रोल अदा करता है। लेकिन महाबली सतपाल कहते हैं कि इसके लिए गुरू को भी लगातार सीखने और वक्त के साथ खुद को बदलने की ज़रूरत है।

वो कहते हैं, 'मैंने सबकुछ गुरू हनुमान से सीखा। उन दिनों क़रीब 200 दांव होते थे लेकिन टेलीविज़न, इंटरनेट, यूट्यूब और वॉट्सअप के सहारे अब क़रीब 700 दांव बना दिए गए हैं। दूसरे खिलाड़ियों की ताक़त और कमज़ोरी का भी बारीक़ी से अध्ययन हो जाता है. इसकी ज़रूरत भी है।' गुरू सतपाल और सुशील कहते हैं कि इसी परंपरा की वजह से कम से कम कुश्ती का स्तर भारत में बेहतर होता जा रहा है।

सतपाल कहते हैं कि कुश्ती में भारत की बेंच ज़रूर मज़बूत है इसलिए सुशील, योगेश्वर और बजरंग जैसे खिलाड़ियों के विकल्प तैयार हो गए हैं। सतपाल ने हमें  सराजेवो (बोस्निया) में हुए विश्व कैडेट कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर आए अनिल कुमार और ब्राज़ील में हुई वर्ल्ड जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप से सिल्वर मेडल जीतकर आये रवि कुमार से मिलवाया। कोच सतपाल और कोच विरेंद्र उन युवा पहलवानों के हुनर से बेहद प्रभावित हैं। सतपाल कहते हैं '2020 ओलिंपिक्स का इंतज़ार कीजिए, ये भविष्य के सुशील और योगेश्वर हैं।'

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