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This Article is From Sep 13, 2016

EXCLUSIVE : चाहती हूं हमारे खेलों को भी गंभीरता से लें : दीपा मलिक

EXCLUSIVE : चाहती हूं हमारे खेलों को भी गंभीरता से लें : दीपा मलिक
  • ओलिंपिक में कामयाबी चाहती थी, क्योंकि यही सिर का मुकुट होता है- दीपा
  • हमारी प्रतियोगिताओं की चुनौती सामान्‍य एथलीटों से ज़्यादा होती है: मलिक
  • दीपा मलिक ने कहा, इस बार मोदी सरकार की वजह से हमें काफ़ी सुविधाएं मिलीं
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नई दिल्‍ली: रियो पैरालिंपिक खेलों के दौरान गुड़गांव की 45 साल की दीपा मलिक ने रजत पदक जीतकर इतिहास कायम कर दिया. दीपा ने 4.61 मीटर शॉटपट फेंककर F-53 इवेंट का रजत पदक अपने नाम कर लिया. पैरालिंपिक खेलों के इतिहास में पदक जीतने वाली वो पहली भारतीय महिला एथलीट हैं. रियो पैरालिंपिक खेलों में भारत के नाम अब तीन पदक हो गए हैं. पदक जीतने के बाद दीपा ने NDTV संवाददाता विमल मोहन से ख़ास बात की...

सवाल : दीपा NDTV से बात करने का शुक्रिया. आपको बहुत-बहुत बधाई. आपको लगता है कि ये कामयाबी उम्र के लिहाज़ से आपके लिए देर आई पर दुरुस्त आई... अपने पूरे सफ़र को आप कैसे देखती हैं?

रियो से दीपा मलिक : अभी तक का सफ़र बहुत अच्छा रहा है. वर्ल्ड चैंपियनशिप या एशियन चैंपियनशिप के स्तर पर भी कामयाब रही. लेकिन इच्छा थी कि ओलिंपिक में कामयाबी मिले, क्योंकि यही सिर का मुकुट होता है. बहुत लोग सवाल करते थे कि इतनी उम्र हो गई है या इतनी डिसएबिलिटी है तो ये कैसे कर पाएंगी...लेकिन इरादे पक्के थे और मंशा सही थी, शायद इसलिए ईश्वर ने मदद की.

सवाल : दुनिया भर में और भारत में भी इन खेलों को सीरियस स्पोर्ट्स के तौर पर कम ही देखते हैं. आपको लगता है आपके या बाक़ी खिलाड़ियों से लोगों के रवैये में बदलाव आएगा?

दीपा मलिक : मैं सचमुच चाहती हूं कि इसे सीरियस स्पोर्ट्स के तौर पर देखा जाए. आप हमारी ट्रेनिंग देखें. हमारे गेम का स्तर देखें या हमारी प्रतियोगिता का स्तर देखें. इसकी चुनौती आम (एबल बॉडी एथलीट) एथलीटों से ज़्यादा होगी है. आम एथलीट अपने दम पर क्वालिफ़ाई कर सकते हैं, लेकिन हमारे यहां तीन एथलीट क्वालिफ़ाई करते हैं तो एक को टूर्नामेंट में हिस्सा लेने का मौक़ा मिलता है. हमारे यहां चुनौतियां ज़्यादा हैं और बुनियादी सुविधाएं बेहद कम.

सवाल : क्या कॉरपोरेट या सरकार के स्तर से मिलने वाली सुविधाएं वाकई बेहद कम हैं?

दीपा मलिक : इस बार मोदी सरकार की वजह से हमें काफ़ी सुविधाएं मिलीं. हमें भी TOPS योजना के तहत बराबर का हक़ दिया गया. मैं सबका तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहती हूं, लेकिन इन खेलों को सबकी ओर से पूरी तवज्जो मिले, तभी बड़ी कामयाबी हासिल हो सकती है.

सवाल : इस बार इन खेलों का जश्न भी मनाया जा रहा है. इनाम भी मिल रहे हैं. आपको लगता है कि पैरा-एथलीटों को उनका हक़ मिलने लगा है?

दीपा मलिक : मुझे खुशी है कि भारत में फ़ैन्स और खेलप्रेमी इसका जश्न मना रहे हैं. कई लोग ट्वीटर पर बधाई भेज रहे हैं. मेरे फ़ोन बधाई के संदेश से भरे हुए हैं. मेरे परिवार में लोग फ़ोन कर बधाइयां दे रहे हैं. हम अब तक तीन पदक जीत चुके हैं जो रियो में हासिल आम एथलीटों (रियो ओलिंपिक्स के दो पदक) से ज़्यादा हैं. हमारे यहां ऐए 19 में से तीन एथलीटों ने कामयाबी हासिल कर ली है. और भी पदक आएंगे. समय आ गया है कि इन खेलों को बराबर का हक़ मिले और कॉरपोरेट सेक्टर सहित बाक़ी लोग भी इसे पूरी तवज्जो दें.

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