 
                                            - कोच पुलेला गोपीचंद ने कहा- सिंधु ने कंसिस्टेंट परफॉर्मेंस दी
- बोले गोपीचंद- हम चाहते थे, कोई कमी, कोई चूक न रह जाए
- बोले- सिंधु का खेल खेल और निखरेगा
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                                                                                रियो डी जिनेरियो: 
                                        लगातार दो ओलिंपिक में अपनी जीतों के जरिए लगातार दो पदक हासिल करने वाले बैडमिंटन के कोच पुलेला गोपीचंद का सिर दुनियाभर के बैडमिंटन दिग्गजों के बीच और ऊंचा हो गया है. पीवी सिंधु की कामयाबी के बाद उन्होंने एनडीटीवी संवाददाता विमल मोहन से खास बातचीत की.
यह आपकी और पीवी सिंधु की शानदार कामयाबी है. पूरे हफ्ते उनका खेल अलग स्तर पर नजर आया. आप उनके खेल को कैसे आंकते हैं?
गोपीचंद : सिंधु ने ओलिंपिक के सभी मैचों में, एक कंसिसटेंट परफॉ़र्मेंस दिया. उनके खेल में हमें यह शिकायत रहती थी कि वह कभी एक मैच बहुत अच्छा और कभी एक मैच बहुत खराब खेल जाती थी. लेकिन अपने इस प्रदर्शन की वजह से उन्होंने भारत के लिए ऐतिहासिक कामयाबी हासिल की है. मैं और सब लोग काफी खुश हैं.
आप फाइनल मैच के दौरान सिंधु के लिए प्रार्थना करते दिखे...
गोपीचंद : जी हां! कामयाबी की कई वजहें होती हैं. कई वजहें होती हैं, जब सभी वजहें दुरुस्त होती हैं, तभी बड़ी कामयाबी हासिल होती है. हम चाहते थे, कोई कमी, कोई चूक न रह जाए. और सभी वजहों की वजह से सिंधु ने देश का नाम रोशन किया है और मैं बहुत खुश हूं.
क्या आप इसे सिंधु का बेहतरीन प्रदर्शन मानेंगे?
गोपीचंद : देखिए, सिंधु अभी सिर्फ 21 साल की हैं. उन्होंने बेहतरीन खेल दिखाया है. अगले चार-पांच साल में उनमें जैसे-जैसे परिपक्वता आएगी, उनका खेल और निखरेगा और वह इससे भी बेहतर खिलाड़ी बन जाएंगी. इसी तरह खेलती रहीं तो वह और भी कई कामयाबियां हासिल करेंगी.
साइना से लेकर सिंधु तक आपने बहुत बड़ी कामयाबियां हासिल की हैं. दुनियाभर के कोच आपका लोहा मानते हैं. क्या आप अपने मिशन से संतुष्ट हैं?
गोपीचंद : देखिए, हमने बहुत मेहनत की है. लेकिन ओलिंपिक में आने के बाद हम मैच दर मैच खेलकर आगे बढ़ने का लक्ष्य बना रहे थे. श्रीकांत क्वार्टर फाइनल में अच्छा खेलकर हारे और सिंधु फाइनल में. शायद गोल्ड की कमी रह गई, लेकिन जो हासिल हुआ है वह भी ऐतिहासिक है. मैं खुश हूं.
आप अनुशासन को लेकर काफी सख्त माने जाते हैं. सिंधु और श्रीकांत जैसे खिलाड़ियों को भी इसी सख्ती में रहना पड़ा?
गोपीचंद : जी हां! खासकर पिछले 70 दिनों में हमारा लक्ष्य था कि हमारा फोकस खेल पर ही बरकरार रहे. खाना-पीना रोज की दिनचर्या, सोने का रुटीन और फोन कॉल जैसी बातों के लिए नियमों पर काफी जोर दिया. इससे हमारा और खिलाड़ियों का ध्यान खेल पर बराबर बना रहा. यह चीजें जरूरी हैं, तभी नतीजा आ सकता है.
                                                                        
                                    
                                यह आपकी और पीवी सिंधु की शानदार कामयाबी है. पूरे हफ्ते उनका खेल अलग स्तर पर नजर आया. आप उनके खेल को कैसे आंकते हैं?
गोपीचंद : सिंधु ने ओलिंपिक के सभी मैचों में, एक कंसिसटेंट परफॉ़र्मेंस दिया. उनके खेल में हमें यह शिकायत रहती थी कि वह कभी एक मैच बहुत अच्छा और कभी एक मैच बहुत खराब खेल जाती थी. लेकिन अपने इस प्रदर्शन की वजह से उन्होंने भारत के लिए ऐतिहासिक कामयाबी हासिल की है. मैं और सब लोग काफी खुश हैं.
आप फाइनल मैच के दौरान सिंधु के लिए प्रार्थना करते दिखे...
गोपीचंद : जी हां! कामयाबी की कई वजहें होती हैं. कई वजहें होती हैं, जब सभी वजहें दुरुस्त होती हैं, तभी बड़ी कामयाबी हासिल होती है. हम चाहते थे, कोई कमी, कोई चूक न रह जाए. और सभी वजहों की वजह से सिंधु ने देश का नाम रोशन किया है और मैं बहुत खुश हूं.
क्या आप इसे सिंधु का बेहतरीन प्रदर्शन मानेंगे?
गोपीचंद : देखिए, सिंधु अभी सिर्फ 21 साल की हैं. उन्होंने बेहतरीन खेल दिखाया है. अगले चार-पांच साल में उनमें जैसे-जैसे परिपक्वता आएगी, उनका खेल और निखरेगा और वह इससे भी बेहतर खिलाड़ी बन जाएंगी. इसी तरह खेलती रहीं तो वह और भी कई कामयाबियां हासिल करेंगी.
साइना से लेकर सिंधु तक आपने बहुत बड़ी कामयाबियां हासिल की हैं. दुनियाभर के कोच आपका लोहा मानते हैं. क्या आप अपने मिशन से संतुष्ट हैं?
गोपीचंद : देखिए, हमने बहुत मेहनत की है. लेकिन ओलिंपिक में आने के बाद हम मैच दर मैच खेलकर आगे बढ़ने का लक्ष्य बना रहे थे. श्रीकांत क्वार्टर फाइनल में अच्छा खेलकर हारे और सिंधु फाइनल में. शायद गोल्ड की कमी रह गई, लेकिन जो हासिल हुआ है वह भी ऐतिहासिक है. मैं खुश हूं.
आप अनुशासन को लेकर काफी सख्त माने जाते हैं. सिंधु और श्रीकांत जैसे खिलाड़ियों को भी इसी सख्ती में रहना पड़ा?
गोपीचंद : जी हां! खासकर पिछले 70 दिनों में हमारा लक्ष्य था कि हमारा फोकस खेल पर ही बरकरार रहे. खाना-पीना रोज की दिनचर्या, सोने का रुटीन और फोन कॉल जैसी बातों के लिए नियमों पर काफी जोर दिया. इससे हमारा और खिलाड़ियों का ध्यान खेल पर बराबर बना रहा. यह चीजें जरूरी हैं, तभी नतीजा आ सकता है.
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