 
                                            दत्तू बब्बन भोकानल
                                                                                                                        - दत्तू बब्बन भोकानल का फोकस खेल और घर के अलावा कुछ नहीं
- उनकी मां बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती हैं
- पहले वह नासिक के तले गांव रूही में रहते थे और उन्हें पानी से डर लगता था
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                                        'मां बीमार है, अस्पताल में है. वो मुझे पहचानती भी नहीं. मुझे इस वक्त उनकी ही याद आ रही है. मुझे उनसे जल्दी मिलना है. पिता जी रहे नहीं, घर की जिम्मेदारी मेरे ही ऊपर है.' मीडिया से बात करते हुए रोइंग खिलाड़ी दत्तू बब्बन भोकानल का फोकस खेल और घर के अलावा कुछ हो भी नहीं सकता. 'सेल्फी' तो बिल्कुल नहीं.
दत्तू ने सिर्फ 4 साल पहले 2012 के आखिर में तैरना सीखा और रोइंग खेल में भी अपना हाथ आजमाना शुरू कर दिया. इससे पहले नासिक के तले गांव रूही में रहते हुए उन्हें पानी से डर लगता था. पहली बार जब नाव पर बैठे तो उन्हें डर लग रहा था कि कहीं वे पानी में न गिर जाएं या नाव न उलट जाए. रोइंग में आज उनकी तकनीक को देखकर दुनिया के कई दिग्गज हैरान रह गए.
दत्तू भोकानल सेमीफाइनल में नहीं पहुंच सके. लेकिन जब उन्होंने मीडिया को उन्होंने अपनी कहानी बताई, तो वे किसी सुपरहीरो से कम नजर आ रहे थे. अपने प्रदर्शन पर उन्होंने कहा, 'कोई भी खिलाड़ी अपने प्रदर्शन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो सकता. मैं आज की रेस में 500 मीटर तक सबसे आगे था, मैंने पूरी जान लगाई, लेकिन मुझे लगता है मुझे कम से कम 10 किलो और वजन बढ़ाने की जरूरत है.'
दत्तू के कोच राजपाल सिंह बताते हैं कि अगर इस खिलाड़ी को ऐसे ही 4 साल और ट्रेनिंग मिलती रही और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा लेने का मौका मिलता रहा तो आप इन्हें टोक्यो ओलिंपिक में कारनामा करते हुए देख सकते हैं. अगर ट्रेनिंग नहीं हुई तो एक बेहतरीन टैलेंट खत्म हो जाएगा.
दत्तू रेस के बाद मीडिया से मिलने आए, तो 'सेल्फी' नहीं ले रहे, फिर भी वे हीरो से कम नहीं लग रहे थे. उनके चेहरे पर एक मलाल था. वो आगे रेस में 13वें से 15वें स्थान के लिए जूझेंगे. बतौर कोच राजपाल के मुताबिक यह भारतीय खेलों के लिए इतिहास होगा (लंदन ओलंपिक में स्वर्ण सिंह 16वें नंबर पर रहे थे).
कोच कहते हैं कि एशियाई खेलों में इनके गोल्ड मेडल को लेकर मैं बिल्कुल भी फिक्रमंद नहीं हूं. लेकिन इस जैसे खिलाड़ी का टारगेट ओलिंपिक का पोडियम ही होना चाहिए.
                                                                        
                                    
                                दत्तू ने सिर्फ 4 साल पहले 2012 के आखिर में तैरना सीखा और रोइंग खेल में भी अपना हाथ आजमाना शुरू कर दिया. इससे पहले नासिक के तले गांव रूही में रहते हुए उन्हें पानी से डर लगता था. पहली बार जब नाव पर बैठे तो उन्हें डर लग रहा था कि कहीं वे पानी में न गिर जाएं या नाव न उलट जाए. रोइंग में आज उनकी तकनीक को देखकर दुनिया के कई दिग्गज हैरान रह गए.
दत्तू भोकानल सेमीफाइनल में नहीं पहुंच सके. लेकिन जब उन्होंने मीडिया को उन्होंने अपनी कहानी बताई, तो वे किसी सुपरहीरो से कम नजर आ रहे थे. अपने प्रदर्शन पर उन्होंने कहा, 'कोई भी खिलाड़ी अपने प्रदर्शन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो सकता. मैं आज की रेस में 500 मीटर तक सबसे आगे था, मैंने पूरी जान लगाई, लेकिन मुझे लगता है मुझे कम से कम 10 किलो और वजन बढ़ाने की जरूरत है.'
दत्तू के कोच राजपाल सिंह बताते हैं कि अगर इस खिलाड़ी को ऐसे ही 4 साल और ट्रेनिंग मिलती रही और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में ज्यादा से ज्यादा हिस्सा लेने का मौका मिलता रहा तो आप इन्हें टोक्यो ओलिंपिक में कारनामा करते हुए देख सकते हैं. अगर ट्रेनिंग नहीं हुई तो एक बेहतरीन टैलेंट खत्म हो जाएगा.
दत्तू रेस के बाद मीडिया से मिलने आए, तो 'सेल्फी' नहीं ले रहे, फिर भी वे हीरो से कम नहीं लग रहे थे. उनके चेहरे पर एक मलाल था. वो आगे रेस में 13वें से 15वें स्थान के लिए जूझेंगे. बतौर कोच राजपाल के मुताबिक यह भारतीय खेलों के लिए इतिहास होगा (लंदन ओलंपिक में स्वर्ण सिंह 16वें नंबर पर रहे थे).
कोच कहते हैं कि एशियाई खेलों में इनके गोल्ड मेडल को लेकर मैं बिल्कुल भी फिक्रमंद नहीं हूं. लेकिन इस जैसे खिलाड़ी का टारगेट ओलिंपिक का पोडियम ही होना चाहिए.
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