Rajasthan News: सुप्रीम कोर्ट ने 2007 अजमेर शरीफ दरगाह विस्फोट मामले में एक अहम आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में राजस्थान हाईकोर्ट को निर्देश दिए हैं, वह पीड़ित द्वारा दायर अपीलों पर देरी को नजरअंदाज करते हुए मामले के गुण-दोष (मेरिट) के आधार पर निर्णय करे. जस्टिस एम. एम. सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने यह अंतरिम आदेश अजमेर शरीफ के खादिम और शिकायतकर्ता सैयद सरवर चिश्ती की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया.
आरोपियों को बरी किए जाने के फैसलो दी थी चुनौती
याचिकाकर्ता की ओर से कुछ आरोपियों को बरी किए जाने के फैसले चुनौती दी गई थी. मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपयुक्त आवेदन दायर होने पर हाईकोर्ट को पहले खारिज की गई अपीलों पर भी दोबारा सुनवाई करनी चाहिए और उन्हें देरी के बावजूद मेरिट के आधार पर निपटाना चाहिए.
दरअसल, 11 अक्टूबर 2007 को अजमेर शरीफ दरगाह परिसर में रमजान महीने में इफ्तार के तुरंत बाद बम विस्फोट हुआ था. रमजान के महीने में दरगाह में आमतौर पर भीड़ रहती है. इस धमाके में तीन लोगों की मौत हुई और कई घायल हुए थे. मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपी गई. इसके बाद 2017 में एनआईए की विशेष अदालत ने दो आरोपियों भवेश पटेल और देवेंद्र गुप्ता को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जबकि सात अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया था.
इसके बाद शिकायतकर्ता सैयद सरवर चिश्ती ने इन सात बरी हुए आरोपियों के खिलाफ और साथ ही सजा पाए दो आरोपियों की सजा को चुनौती देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट में अपील दायर की थी. मगर हाईकोर्ट ने 2022 में अपील को खारिज कर दिया. नियमों के मुताबिक, ऐसे मामलों में अपीलें 90 दिनों के भीतर लगानी होती है. कोर्ट ने कहा कि चूंकि अपील 90 दिन के बाद लगाई गई है. राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम, 2008 की धारा 21(5) के तहत इस देरी को माफ नहीं किया जा सकता.
गुण-दोष के आधार पर सुनवाई के निर्देश
इस निर्णय के खिलाफ अजमेर शरीफ के खादिम सैयद सरवर चिश्ती ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. याचिकाकर्ता ने दलील दी कि NIA Act की इस कठोर व्याख्या से संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन होता है, क्योंकि इससे पीड़ितों के न्याय तक पहुंचने के अधिकार और गंभीर आतंकवादी मामलों में अपील के मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर 2025 को राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया था. इसके बाद अदालत ने अंतरिम आदेश देते हुए हाईकोर्ट को इन आपराधिक अपीलों पर देरी के प्रश्न को अनदेखा करते हुए उनके गुण-दोष के आधार पर सुनवाई करने के निर्देश दिए.
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