- बूंदी जिले के देई कस्बे में भाईदूज के दो दिन बाद 500 साल पुरानी बाबा घास भैरू की सवारी निकाली जाती है
- इस सवारी में बैलों को पूजा के बाद मदिरा पिलाई जाती है और पटाखों की बारिश के बीच दौड़ाया जाता है
- लोग बैलों को रंग-बिरंगे कपड़े, घंटियां और फूलों की माला से सजाते हैं और आसपास के जिलों से दर्शक जुटते हैं
स्पेन के पैम्प्लोना शहर में होने वाली प्रसिद्ध 'बुल रेस' जैसा ही रोमांचक और अनोखा आयोजन भारत में भी होता है. राजस्थान के बूंदी जिले के देई कस्बे में दीपावली के दो दिन बाद भाईदूज के अवसर पर यह 500 साल पुरानी परंपरा निभाई जाती है. यहां 'बाबा घास भैरू की सवारी' निकाली जाती है, जिसमें पूजा के बाद बैलों को मदिरा (शराब) पिलाई जाती है और उन्हें पटाखों की बारिश के बीच दौड़ाया जाता है.
500 साल पुरानी है परंपरा
देई कस्बे में मीणा समाज के लोग भाईदूज के दिन अपने बैलों की पूजा करते हैं, उन्हें रंग-बिरंगे कपड़े, घंटियां और फूलों की माला से सजाते हैं. सुबह से ही पूरे गांव में उत्सव का माहौल छा जाता है, जिसे देखने के लिए बूंदी सहित कोटा, टोंक और सवाईमाधोपुर जैसे आसपास के जिलों से भी बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं. विदेशी पर्यटक भी इस अनूठी परंपरा को देखने पहुंचते हैं.
जयपुर: स्पेन की बुल रेस जैसी परंपरा राजस्थान में भी, पूजा के बाद बैलों को मदिरा पिलाकर होती है रेस#jaipur #Rajasthan pic.twitter.com/UG9FU8gpmz
— NDTV Rajasthan (@NDTV_Rajasthan) October 24, 2025
मदिरा पिलाकर शुरू होती है सवारी
पूजा के बाद, बैलों को मदिरा पिलाई जाती है. स्थानीय लोगों के अनुसार, यह मदिरा बाबा घास भैरू को चढ़ाने का प्रतीक है. मदिरा पीने के बाद ये बैल दर्जनों झुंडों में आगे बढ़ते हैं.
अनोखा रोमांच: जैसे ही सवारी घास भैरू चौक से शुरू होती है, पूरा गांव 'जय बाबा घास भैरू' के नारों से गूंज उठता है. नशे में मस्त बैल तेज़ी से भीड़ के बीच से दौड़ते हैं.
पटाखों की बारिश: घरों की छतों से लोग बैलों पर पटाखों की बारिश करते हैं. पटाखों की तेज़ आवाज़ से बैल उछल पड़ते हैं, जिससे भगदड़ जैसी स्थिति भी बन जाती है.
हादसों का खतरा: इस दौरान कई बार लोग बैलों की रस्सियों में उलझकर गिर पड़ते हैं या घायल हो जाते हैं. चारभुजा नाथ मंदिर के अध्यक्ष पुरूषोतम पारीक ने भी पटाखों और बैलों की दौड़ से होने वाले हादसों की पुष्टि की.
बाबा घास भैरू की आस्था
ग्रामीण तुलसीराम पटेल ने बताया कि बाबा घास भैरू की प्रतिमा एक गोल पत्थर के रूप में है, जिसका वजन लगभग पांच क्विंटल है. इस प्रतिमा को लकड़ी के आसन पर रखकर लोहे की सांकलों से बांधा जाता है और बैल जोतकर पूरे गांव में घुमाया जाता है.
मान्यता: 'आज तक किसी की मौत नहीं हुई'
ग्रामीणों की अटूट आस्था है कि इस खतरनाक आयोजन के बावजूद, बाबा की कृपा से आज तक किसी इंसान या जानवर की मृत्यु नहीं हुई है.
यह भी मान्यता है कि सवारी के दौरान जो भी बच्चा या बैल रस्सी के नीचे से निकलता है, वह पूरे साल सुरक्षित रहता है. इसी कारण कई परिवार अपने छोटे बच्चों को लेकर भी सवारी में शामिल होते हैं. श्रद्धालु बाबा को मदिरा की बोतलें और 'कामी तेल' का चढ़ावा चढ़ाते हैं.
सवारी घास भैरू चौक से शुरू होकर गांव के मुख्य स्थानों से होते हुए वापस बाबा के स्थल पर लौटती है, जहां भक्ति और उत्साह का यह अनूठा संगम देखने को मिलता है.
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