राजस्थान के झालावाड़ की अनमोल धरोहर भवानी नाट्यशाला का आज 102वां स्थापना दिवस है, लेकिन यह अनमोल धरोहर आज भी बजट की कमी के कारण बदहाली का शिकार बनी हुई है. यह केवल किस्सों-किताबों तक सिमट कर रह गई है. भवानी नाट्यशाला सरकार और प्रशासन की अनदेखी के कारण बदहाल हालत में है. ओपेरा शैली की बनी यह नाट्यशाला पूरे उत्तर भारत में प्रसिद्ध है. यहां अनेक नाटक प्रदर्शित किए गए हैं. इसकी स्थापना महाराज राणा भवानी सिंह ने 1921 में 16 जुलाई को की थी और आज इसका स्थापना दिवस झालावाड़ में मनाया जा रहा है.
भवानी नाट्यशाला का इतिहास
इन दिनों भवानी नाट्यशाला अपनी बदहाल हालात के कारण जानी जाती है. झालावाड़ के गढ़ परिसर में मौजूद उत्तर भारत की एकमात्र ओपेरा शैली में बनी भवानी नाट्यशाला कभी राजसी वैभव का केंद्र थी लेकिन इस नाट्यशाला का दौर खत्म हो चुका है. रियासत कालीन दौर में इस नाट्यशाला में कभी प्रसिद्ध नाटक हुआ करते थे. अंतरराष्ट्रीय स्तर के लोगों ने भी यहां अपनी प्रस्तुति दी है. यहां मशहूर सितार वादक पण्डित रवि शंकर और उनके भाई उदयशंकर भी अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं. अभिज्ञान शकुंतलम् नाटक का मंचन भी इसी नाट्यशाला में हुआ था.
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भवानी नाट्यशाला का निर्माण 1921 में हुआ था. वहीं पहली बार महाकवि कालिदास रचित नाटक अभिज्ञान शकुंतलम का मंचन भी यहीं हुआ था. 1950 तक यहां हर 8वें दिन 1 नाटक हुआ करता था पहले 7 दिन तक रिहर्सल चलती थी आठवें दिन नाटक प्रस्तुत किया जाता है. यहां जो पर्दा लगता था उस पर्दे की कीमत 10 हजार रुपए होती थी. मगर अब यह किताबी बातें बन कर रह गई हैं. इस भवानी नाट्यशाला की दशा सुधारने वाला कोई नहीं है.
सरकार ने गढ़ भवन के लिए 3 करोड़ 20 लाख की लागत से 6 मार्च 2015 को पुरातत्व विभाग द्वारा काम शुरू कराया था. जिसके बाद भवानी नाट्यशाला की दशा सुधारने का काम शुरू हुआ था लेकिन फिर किसी ने इसके कार्यों की सुध नहीं ली. कभी-कभी कुछ सामाजिक संगठन इसमें प्रोग्राम करते हैं, तो साफ सफाई हो जाती है. अगर सरकार और पर्यटन विभाग इस ओर ध्यान देंगे और इसे सहेजने और इसकी देखरेख का काम करेंगे तो यह धरोहर फिर से जीवित हो उठेगी. वरना यह सिर्फ किस्से-किताबों में सिमट कर रह जायेगी. वहीं जब इसके बारे में जिला कलेक्टर आलोक रंजन से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वो अवलोकन कर इस नायाब धरोहर को जनता के लिए खोलने का प्रयास करेंगे.
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