
राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने रविवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उनके डिप्टी सचिन पायलट के बीच हुई तनातनी के बाद सबको चौंका दिया. इस संकट से पहले 200 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी को 121 विधायकों का समर्थन प्राप्त था. सूत्रों ने कहा, पायलट बीजेपी के साथ बातचीत कर रहे हैं, उनका दावा है कि उनके पास 16 विधायकों और तीन निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन है.
आपको बताते हैं कि वर्तमान में राजस्थान विधानसभा में क्या दलगत स्थिति.
कांग्रेस पार्टी के पास वर्तमान में 107 विधायक हैं, जिनमें पिछले साल बीएसपी से कांग्रेस में शामिल हुए 6 विधायक भी है. इसके अलावा पार्टी को 10 निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है और एक-एक विधायक सीपीएम और भारतीय ट्राइबल पार्टी का भी कांग्रेस के समर्थन में है.
वहीं बीजेपी की बात करें तो पार्टी के पास फिलहाल 73 विधायक हैं इसके अलावा उसे राष्ट्रीय जनता पार्टी के तीन विधायकों का समर्थन प्राप्त है. वर्तमान विधानसभा के तीन निर्दलीय विधायक फिलहाल किसी भी गठबंधन में नहीं हैं. राज्य में सरकार बनाने के लिए बहुमत आंकड़ा 101 है.
ताजा संकट शुक्रवार को सामने आया जब राजस्थान पुलिस ने गहलोत, पायलट और सरकार के मुख्य सचेतक को नोटिस जारी किए और उनसे राज्य की कांग्रेस सरकार को अस्थिर करने के आरोपों पर अपने बयान दर्ज कराने के लिए उनसे समय मांगा.
राजस्थान में 2018 में कांग्रेस की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के दावेदार पायलट के करीबी सूत्रों ने कहा कि विशेष अभियान समूह (एसओजी) के पत्र ने राजस्थान कांग्रेस प्रमुख को परेशान कर दिया था, जिन्होंने स्पष्ट रूप से इसे एक अपमान के रूप में देखा.
रविवार को एक ट्वीट में, गहलोत ने जोर देकर कहा कि नोटिस कई लोगों के पास गए थे. उन्होंने इस संबंध में पायलट का नाम नहीं लिया, लेकिन कहा कि मीडिया के एक वर्ग ने नोटिस की गलत तरीके से व्याख्या की थी.
कई मंत्रियों और विधायकों ने मुख्यमंत्री के घर का दौरा किया और उन्हें समर्थन का संकेत दिया. गहलोत ने आज रात 9 बजे अपने आवास पर विधायक दल की बैठक बुलाई है. सूत्रों ने कहा कि पायलट के करीबी माने जाने वाले कुछ कांग्रेसी विधायक दिल्ली गए हैं.
कांग्रेस में यह संकट 19 जून को राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनावों की उथलृ-पुथल के एक महीने के भीतर ही आया. गहलोत ने तब कहा था कि बीजेपी उनकी सरकार को गिराने की कोशिश कर रही है. यह सब कुछ मध्य प्रदेश में बीजेपी द्वारा कांग्रेस की सरकार गिराने और ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने पाले में लेने के ठीक तीन महीने बाद आया है.
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