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वाजपेयी के नेतृत्व में लिखी गई थी ऐतिहासिक इबारत, राजस्थान की तपती रेत पर धमाके की गूंज से दुनिया थी हैरान

आज भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है. आज ही के दिन 25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में वाजपेयी का जन्म हुआ था. इस खास मौके पर बात उनके उस साहसिक कदम की, जिसने भारत को दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई.  

वाजपेयी के नेतृत्व में लिखी गई थी ऐतिहासिक इबारत, राजस्थान की तपती रेत पर धमाके की गूंज से दुनिया थी हैरान

Atal bihari vajpayee Jayanti: राजस्थान के पोखरण में 11 मई 1998 को एक नई इबारत लिखी गई. भारत ने वो साहसिक कदम उठाया, जिसकी कल्पना तो वर्षों से थी. उस दिन दोपहर के ठीक 3 बजकर 45 मिनट पर भारत ने परमाणु परीक्षण करते हुए पहला बम फोड़ दिया था. इस परीक्षण ने भारत को परमाणु प्रतिरोध (Nuclear deterrence) दिया. रेगिस्तान की तपती रेत के नीचे इतिहास करवट ले रहा था और भारत ने दुनिया को  स्पष्ट संदेश दिया कि हम अपनी सुरक्षा के लिए किसी पर निर्भर नहीं है. संदेश था कि भारत किसी भी आक्रामकता का माकूल जवाब देने में सक्षम है. यह सबकुछ हुआ तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में, जब भारत ने सामरिक आत्मनिर्भरता की नई इबारत गढ़ी. 

यह परमाणु परीक्षण आसान नहीं था. बिना किसी विदेशी सहयोग और अंतरराष्ट्रीय दवाब के अलावा खास तौर पर अमेरिका की कड़ी निगरानी भी थी. बावजूद इसके भारत ने परमाणु परीक्षण को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. क्योंकि परमाणु संपन्न राष्ट्र उन देश हमेशा उन राष्ट्रों पर पैनी नजर रखते थे, जिनके पास परमाणु हथियार नहीं थे. भारत भी इस लिस्ट में शामिल था. लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व क्षमता में भारत ने बड़ी उपलब्धि हासिल की. 

जब ऐन वक्त पर रोकना पड़ा था टेस्ट

वाजपेयी ने 1998 के परमाणु परीक्षण के वक्त आलोचना और दवाब भी झेला. एक बार परीक्षण करने के लिए गड्ढा तक खोदा जा चुका था और सुरंग तैयार हो चुकी थी. यहां तक कि परीक्षण की तारीख भी तय हो गई थी, लेकिन विदेशी दवाब के चलते ऐन वक्त पर परीक्षण रद्द कर दिया गया था. 13 दिनों तक प्रधानमंत्री रहने के दौरान, उन्हें एहसास हुआ कि इतने जरूरी टेस्ट को अच्छे से करने के लिए ज्यादा समय नहीं है. जब वे 18 मार्च 1998 को सत्ता में वापस आए तो उन्होंने वैज्ञानिकों को इसके लिए हरी झंडी दे दी.

नरसिम्हा राव ने वाजपेयी से कहा था- सामग्री तैयार है

1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 पार्टियों की मिली-जुली सरकार थी. शपथ ग्रहण के कुछ दिनों बाद पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से एक मुलाकात की और कहा था कि सामग्री तैयार है, आप आगे बढ़ सकते हैं. संसद में अपनी ताकत दिखाने के लगभग पखवाड़े के बाद ही वाजपेयी ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और डॉ. राजगोपाला चिदंबरम  को बुलाकर तैयारी शुरू करने के निर्देश दिए थे. एपीजे अब्दुल कलाम ने सलाह दी थी कि परीक्षण बुद्ध पूर्णिमा के दिन किया जाए, जो 11 मई 1998 को पड़ रही थी.

एपीजे अब्दुल कलाम ने बताया था पूरा किस्सा

इस किस्से पर बात करते हुए पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने एक इंटरव्यू में बताया था, "बहुत प्रेशर था. लेकिन उन्होंने (अटल बिहारी वाजपेयी) फैसला लिया कि भारत डीआरडीओ टीम और उससे भी जरूरी एटॉमिक एनर्जी टीम के साथ टेस्ट करेगा. ये दो टीमें थीं. मैं और डॉ. चिदंबरम थे. हम उनसे मिले, उन्होंने कहा कि न्यूक्लियर टेस्ट के लिए आगे बढ़ो. भारत को परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र बनाने में अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका निर्णायक थी."

ऑपरेशन को बड़े ही खुफिया तरीके से दिया था अंजाम

उस समय तत्कालनी प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी राजेश मिश्रा को वैज्ञानिकों के साथ कोऑर्डिनेशन का काम दिया गया था. अटल बिहारी वाजपेयी से हरी झंडी मिलने के बाद काम बहुत सावधानी से शुरू हुआ. कंस्ट्रक्शन का काम आम तौर पर रात में होता था, ताकि अमेरिकी सैटेलाइट्स की नजर से बचा जा सके.

इस प्रोजेक्ट को 'ऑपरेशन शक्ति' कोड नेम दिया गया था. ऑपरेशन में काम करने वाले वैज्ञानिक कभी एक साथ ट्रैवल नहीं करते थे. वे मिलिट्री के कपड़े पहनते थे और उनके कोड नेम होते थे.एपीजे अब्दुल कलाम का कोड नेम 'मेजर जनरल पृथ्वीराज' था, जबकि चिदंबरम का कोड नेम 'नटराज' था. भारतीय सेना की 58वीं इंजीनियर्स रेजिमेंट ने ग्राउंड वर्क पूरा करने में अपना पूरा सपोर्ट दिया था.  

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