कार्यशाला में पेंटिंग बनाते हुए बच्चे।
वाराणसी:
"हम स्कूल जाते हैं, कॉलेज जाते हैं तो हमें सांस लेते वक्त दिक्कत होती है। स्कूल जाते वक्त भारी प्रदूषण होता है, धूल उड़ती है, मिट्टी उड़ती है। इन सभी चीजों से हम लोगों को घुटन होती है।'' यह दर्द है कक्षा 7 में पढ़ने वाली अनुष्का प्रजापति का। अनुष्का की ही तरह अन्य बच्चे भी इस तरह की समस्या से दो-चार हो रहे हैं। बनारस की हवा में उड़ रहे धूल कण गाड़ियों से निकलता कार्बन शहर को खतरनाक स्तर तक प्रदूषित कर चुके हैं। साल के आखिरी दिन बच्चों ने प्रदूषण से होने वाले नुकसान को चित्रों में बयां करके लोगों को समझाने का प्रयास किया।
बनारस में भारी प्रदूषण की पुष्टि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर लगा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक कर रहा है। अब इसे हर कोई प्रदूषण को महसूस भी करने लगा है। खास तौर पर बच्चे स्कूल जाते वक्त जहरीली हवा का सामना करते हैं। उनके फेंफड़े अभी इस जहरीली हवा को बर्दास्त करने के काबिल नहीं हैं। हालात के प्रति लोगों को चेताने के लिए लोग अपने-अपने तरीके से प्रयास कर रहे हैं।
चित्रों में धुंआ और धूल की समस्याएं
अनुष्का और उस जैसे बच्चों ने बनारस के प्रदूषण के दर्द को जितनी शिद्दत के साथ महसूस किया उतनी ही शिद्दत के साथ उसे अपने चित्रों में अभिव्यक्त किया। तेजी से कटते पेड़, फैक्ट्रियों की चिमनी से निकलता धुंआ, गाड़ियों से निकलता धुंआ, जल में प्रदूषण जैसी समस्याएं चित्रों में बयां हुईं। इनकी शिक्षक डा शारदा सिंह बताती हैं कि "भारत में खास तौर पर दिल्ली पाल्यूटेड है। वही स्थिति हमारे बनारस की हो रही है। हमारी कार्यशाला के माध्यम से यह संदेश देना चाहती हूं कि प्रदूषण को कैसे रोक सकते हैं। यह बच्चे अपनी पेंटिंग के माध्यम से, अपनी कार्यशाला के माध्यम से संदेश दे रहे हैं।
साल भर चलेगी जागरूकता की मुहिम
बच्चों की बनाई पेंटिंग लोगों के दिलों को छू जाती हैं। यही वजह है कि अभ्युदय और आनंदवन संस्था के बैनर तले लगी इस कार्यशाला में बच्चे अपनी पेंटिंग से लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। बड़ी बात यह है कि यह कार्यशाला सिर्फ एक दिन के लिए नहीं लगी, बल्कि पूरे वर्ष भर यह लोग बनारस में जगह-जगह इस तरह की कार्यशाला का आयोजन करेंगे और इस जरिए लोगों को जागरूक करेंगे। उनका कहना है कि हम कलाकार हैं लिहाजा हम अपनी इसी विधा से प्रदूषण कम करने में अपना योगदान दे सकते हैं। इस ग्रुप के सीनियर आर्टिस्ट एस प्रणाम सिंह कहते हैं "हम लोग तो कलाकार हैं तो अपने चित्र के माध्यम से ही इस तरह की समस्या को लोगों तक पहुंचा सकते हैं। तस्वीर एक ऐसा माध्यम है जो लोगों को सीधे जोड़ता है। हम लोगों ने संकल्प लिया है कि साल भर ऐसी कार्यशाला लगाकर लोगों को जागरूक करेंगे।''
वायु गुणवत्ता सूचकांक से जाहिर हुई असलियत
इन कलाकारों की चिंता यूं ही नहीं है। धूल के गुबार से बनारस के पाण्डेयपुर इलाके की सड़क बमुश्किल दिखती है। यह सिर्फ बनारस की अकेली सड़क नहीं बल्कि शहर की हर सड़क धूल से ऐसी ही पटी हुई हैं। यह धूल कितना नुकसान पहुंचा रही है इसके आंकड़े तब सामने आए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक लागू किया। इसके सूचकांक बता रहे हैं कि बनारस की फिजा खुली सांस लेने लायक नहीं है।
शहर के कई इलाके भारी प्रदूषित
बनारस के अर्दली बाजार में स्थित सूचकांक का सेंसर बताता है कि पीएम 10 की मात्रा का औसत 344 माइक्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर है। यह न्यूनतम 110 और अधिकतम 427 दर्ज किया गया। जबकि इसका स्तर 60 माइक्रान प्रति घन सेंटीमीटर से कम होना चाहिए। इसी तरह 10 माइक्रान से छोटे आकार के धूल के कण मानक से 7 गुना ज्यादा पाए गए। इसी क्रम में पीएम 2.5 की मात्रा का औसत 220 मिला। चौबीस घंटे में इसका न्यूनतम 50 और अधिकतम 500 रिकॉर्ड किया गया। जबकि इसकी मात्रा 40 से कम होनी चाहिए। यानी यह मानक से 12 गुना अधिक है।
इन आंकड़ों को देखकर यही लगता है कि बनारस की हवा भी सांस लेने लायक नहीं रही। यानी आप कह सकते हैं कि अगर यही हाल रहा तो बनारस भी बीजिंग बन सकता है। इन हालात को समझाने के लिए बच्चे जो चित्र बना रहे हैं इनका यह प्रयास छोटा लग सकता है, पर इनकी आवाज़ दूर तक जरूर जाएगी।
बनारस में भारी प्रदूषण की पुष्टि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर लगा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक कर रहा है। अब इसे हर कोई प्रदूषण को महसूस भी करने लगा है। खास तौर पर बच्चे स्कूल जाते वक्त जहरीली हवा का सामना करते हैं। उनके फेंफड़े अभी इस जहरीली हवा को बर्दास्त करने के काबिल नहीं हैं। हालात के प्रति लोगों को चेताने के लिए लोग अपने-अपने तरीके से प्रयास कर रहे हैं।
चित्रों में धुंआ और धूल की समस्याएं
अनुष्का और उस जैसे बच्चों ने बनारस के प्रदूषण के दर्द को जितनी शिद्दत के साथ महसूस किया उतनी ही शिद्दत के साथ उसे अपने चित्रों में अभिव्यक्त किया। तेजी से कटते पेड़, फैक्ट्रियों की चिमनी से निकलता धुंआ, गाड़ियों से निकलता धुंआ, जल में प्रदूषण जैसी समस्याएं चित्रों में बयां हुईं। इनकी शिक्षक डा शारदा सिंह बताती हैं कि "भारत में खास तौर पर दिल्ली पाल्यूटेड है। वही स्थिति हमारे बनारस की हो रही है। हमारी कार्यशाला के माध्यम से यह संदेश देना चाहती हूं कि प्रदूषण को कैसे रोक सकते हैं। यह बच्चे अपनी पेंटिंग के माध्यम से, अपनी कार्यशाला के माध्यम से संदेश दे रहे हैं।
साल भर चलेगी जागरूकता की मुहिम
बच्चों की बनाई पेंटिंग लोगों के दिलों को छू जाती हैं। यही वजह है कि अभ्युदय और आनंदवन संस्था के बैनर तले लगी इस कार्यशाला में बच्चे अपनी पेंटिंग से लोगों का ध्यान खींच रहे हैं। बड़ी बात यह है कि यह कार्यशाला सिर्फ एक दिन के लिए नहीं लगी, बल्कि पूरे वर्ष भर यह लोग बनारस में जगह-जगह इस तरह की कार्यशाला का आयोजन करेंगे और इस जरिए लोगों को जागरूक करेंगे। उनका कहना है कि हम कलाकार हैं लिहाजा हम अपनी इसी विधा से प्रदूषण कम करने में अपना योगदान दे सकते हैं। इस ग्रुप के सीनियर आर्टिस्ट एस प्रणाम सिंह कहते हैं "हम लोग तो कलाकार हैं तो अपने चित्र के माध्यम से ही इस तरह की समस्या को लोगों तक पहुंचा सकते हैं। तस्वीर एक ऐसा माध्यम है जो लोगों को सीधे जोड़ता है। हम लोगों ने संकल्प लिया है कि साल भर ऐसी कार्यशाला लगाकर लोगों को जागरूक करेंगे।''
वायु गुणवत्ता सूचकांक से जाहिर हुई असलियत
इन कलाकारों की चिंता यूं ही नहीं है। धूल के गुबार से बनारस के पाण्डेयपुर इलाके की सड़क बमुश्किल दिखती है। यह सिर्फ बनारस की अकेली सड़क नहीं बल्कि शहर की हर सड़क धूल से ऐसी ही पटी हुई हैं। यह धूल कितना नुकसान पहुंचा रही है इसके आंकड़े तब सामने आए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक लागू किया। इसके सूचकांक बता रहे हैं कि बनारस की फिजा खुली सांस लेने लायक नहीं है।
शहर के कई इलाके भारी प्रदूषित
बनारस के अर्दली बाजार में स्थित सूचकांक का सेंसर बताता है कि पीएम 10 की मात्रा का औसत 344 माइक्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर है। यह न्यूनतम 110 और अधिकतम 427 दर्ज किया गया। जबकि इसका स्तर 60 माइक्रान प्रति घन सेंटीमीटर से कम होना चाहिए। इसी तरह 10 माइक्रान से छोटे आकार के धूल के कण मानक से 7 गुना ज्यादा पाए गए। इसी क्रम में पीएम 2.5 की मात्रा का औसत 220 मिला। चौबीस घंटे में इसका न्यूनतम 50 और अधिकतम 500 रिकॉर्ड किया गया। जबकि इसकी मात्रा 40 से कम होनी चाहिए। यानी यह मानक से 12 गुना अधिक है।
इन आंकड़ों को देखकर यही लगता है कि बनारस की हवा भी सांस लेने लायक नहीं रही। यानी आप कह सकते हैं कि अगर यही हाल रहा तो बनारस भी बीजिंग बन सकता है। इन हालात को समझाने के लिए बच्चे जो चित्र बना रहे हैं इनका यह प्रयास छोटा लग सकता है, पर इनकी आवाज़ दूर तक जरूर जाएगी।
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