मणिपुर में मुख्यमंत्री पद को लेकर तस्वीर रविवार को साफ हो गई. अन्य दावेदारों को छोड़ते हुए एन. बीरेन सिंह को बीजेपी विधायक दल का नेता चुना गया. वो लगातार दूसरी बार मणिपुर के मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे. विधानसभा चुनाव में पार्टी को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले बीरेन सिंह ने फुटबॉल खिलाड़ी के तौर पर अपना सफर शुरू किया था और फिर बीएसएफ में उन्हें नौकरी मिल गई. फिर उन्होंने पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखा और नहारोल्गी थोउदांग अखबार के संपादक बने. दो दशक पहले वह राजनीति के मैदान में कूदे. वह पहली बार 2002 में डेमोक्रेटिक रेवोल्यूशनरी पीपुल्स पार्टी के टिकट पर विधानसभा सदस्य बने. बीरेन सिंह ने पहला चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस का दामन थाम लिया और 2003 में तत्कालीन ओकराम इबोबी सिंह की सरकार में मंत्री बने. बीरेन सिंह सीएम इबोबी सिंह के विश्वासपात्र बने.
2007 में दोबारा निर्वाचित होने के बाद वो सिंचाई और खाद्य नियंत्रण, युवा मामलों और खेल तथा उपभोक्ता मामलों और जनापूर्ति विभाग के मंत्री बने. बीरेन सिंह 2012 में तीसरी बार जीतकर विधानसभा पहुंचे लेकिन इबोबी सिंह से उनका रिश्ता बिगड़ गया था. उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता के खिलाफ बगावत कर दी. फिर बीरेन सिंह ने मणिपुर विधानसभा और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. अक्टूबर 2016 में वो बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी में शामिल होने के बाद वो पार्टी की मणिपुर इकाई के प्रवक्ता और चुनाव प्रबंधन समिति के सह समन्वयक बने. 2017 में वह बीजेपी के टिकट पर रिकॉर्ड चौथी बार हेईगांग सीट से जीते और पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.
हालांकि, पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को सिर्फ 21 सीटें मिली थीं. मगर बीजेपी कांग्रेस के कई विधायकों को पाले में लाने में सफल रही और सरकार बनाई. बीरेन ने 15 मार्च 2017 को मणिपुर में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली. उग्रवाद से प्रभावित बहुजातीय राज्य मणिपुर के मुख्यमंत्री के रूप में पिछले पांच साल में शांति स्थापना और घाटी तथा पहाड़ के लोगों के बीच की खाई पाटने का व्यापक रूप से श्रेय बीरेन सिंह को दिया जाता है. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने ‘गो टू हिल्स' (पहाड़ों तक पहुंचें), ‘मीयाम्गी नुमित' (हर महीने की 15 तारीख जनता दरबार) और ‘हिल्स लीडर्स डे' (पहाड़ के नेताओं का दिन) जैसे कदम उठाए.
इससे मणिपुर के दूरदराज इलाकों में रहने वालों को भी अपने निर्वाचित नेताओं और शीर्ष नौकरशाहों से मिलने का मौका मिला. इस कारण सिंह को जमीन से जुड़ा नेता भी कहा जाता है. पिछले पांच साल में थोंगाम बिस्वजीत सिंह की मुख्यमंत्री बनने की आकांक्षा के कारण मणिपुर में सरकार के लिए कुछ चुनौतियां पैदा हुईं, लेकिन सिंह उनसे निपटते हुए पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल रहे.
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