कौस्तुभ खाडे
- 'कच्छ टू कन्याकुमारी' तक कौस्तुभ और शांजलि सफर तय करेंगे
- 3300 किलोमीटर का सफर 100 दिन में पूरा करने का लक्ष्य
- पेशे से इंजीनियर एशियाई चैंपियनशिप में कौस्तुभ मेडल जीत चुके हैं
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मुंबई:
'कच्छ टू कन्याकुमारी' तक एक जोड़ा सफर तय करेगा. एक उतरेगा समंदर में नौका पर, तो दूसरी चलेंगी सड़क के रास्ते साइकिल से. इरादा रिकॉर्ड बनाने के साथ-साथ लोगों को नौकायन जैसे खेल के लिए जागरूक बनाना है.
कच्छ से कन्याकुमारी यानी देश के पूरे पश्चिमी तट को नापने का संकल्प लिया है. 3300 किलोमीटर का सफर 100 दिन में पूरा करने का लक्ष्य रिकॉर्ड बनाने की ठानी है. पेशे से इंजीनियर लेकिन समंदर में चप्पू चलाने वाले कौस्तुभ खाडे ने नौका से सफर करने का निर्णय लिया है. वहीं, सड़क पर साइकिल से उनका साथ दे रही हैं उनकी असल जिंदगी की हमसफर शांजलि शाही. दोनों की कोशिश लोगों को नौकायन के खेल के बारे में बताने की है.

एशियाई चैंपियनशिप में कौस्तुभ मेडल जीत चुके हैं. कौस्तुभ ने कहा, "2012 में हमने कायकिंग में 6 सिल्वर, 3 ब्रॉन्ज मेडल जीते. 2013 में मैं पांचवे स्थान पर रहा फिर भी देश में लोग इस खेल को नहीं जानते थे. इसलिये मैंने सोचा सबसे अच्छा है कि कुछ ऐसा करूं जो किसी ने नहीं किया हो.
वहीं शांजलि ने कहा "हमारा पहला चरण पूरा हो गया है. हम मुंबई में हैं. यहां से कन्याकुमारी जाएंगे. मैंने साइकिल से पूरे देश के यात्रा करने की सोची है. इसलिये मैं कौस्तुभ के साथ जुड़ी हूं ताकि हिमालय के लिये स्टैमिना बना सकूं." आईआईटी से इंजीनियर कौस्तुभ के माता-पिता हर कदम पर उनके साथ रहे. नौकरी छोड़कर कायकिंग के शौक को अपनाने तक, लेकिन एक दिन उनकी मां ने मज़ाक में ही कह दिया "मछुआरा ही बनना था तो आईआईटी में जाने की क्या जरूरत थी."
कुछ ऐसे ही चुनौती मार्केटिंग छोड़ साइकिल उठाने वाली शांजलि के साथ भी आई लेकिन मिसाल बनाने, दोनों कई मील निकल चुके हैं. जहां पीछे सिर्फ ये बातें याद का हिस्सा हैं. आगे कुछ कर गुज़रने की ख्वाहिश है. कच्छ से कन्याकुमारी के सफर की प्लानिंग दो साल से चल रही थी.
फिलहाल हर दिन दोनों खिलाड़ियों की सुबह 5 बजे होती है. जीपीएस पर मैप बनाने से लेकर दिनचर्या तय करने तक. वेरावल के हरे वहीं द्वारका के नीले पानी से लेकर हर दिन रास्ते में आने वाले चुनौती. फिर शाम साथ बैठकर अगले दिन की तैयारी.
कच्छ से कन्याकुमारी यानी देश के पूरे पश्चिमी तट को नापने का संकल्प लिया है. 3300 किलोमीटर का सफर 100 दिन में पूरा करने का लक्ष्य रिकॉर्ड बनाने की ठानी है. पेशे से इंजीनियर लेकिन समंदर में चप्पू चलाने वाले कौस्तुभ खाडे ने नौका से सफर करने का निर्णय लिया है. वहीं, सड़क पर साइकिल से उनका साथ दे रही हैं उनकी असल जिंदगी की हमसफर शांजलि शाही. दोनों की कोशिश लोगों को नौकायन के खेल के बारे में बताने की है.

एशियाई चैंपियनशिप में कौस्तुभ मेडल जीत चुके हैं. कौस्तुभ ने कहा, "2012 में हमने कायकिंग में 6 सिल्वर, 3 ब्रॉन्ज मेडल जीते. 2013 में मैं पांचवे स्थान पर रहा फिर भी देश में लोग इस खेल को नहीं जानते थे. इसलिये मैंने सोचा सबसे अच्छा है कि कुछ ऐसा करूं जो किसी ने नहीं किया हो.
वहीं शांजलि ने कहा "हमारा पहला चरण पूरा हो गया है. हम मुंबई में हैं. यहां से कन्याकुमारी जाएंगे. मैंने साइकिल से पूरे देश के यात्रा करने की सोची है. इसलिये मैं कौस्तुभ के साथ जुड़ी हूं ताकि हिमालय के लिये स्टैमिना बना सकूं." आईआईटी से इंजीनियर कौस्तुभ के माता-पिता हर कदम पर उनके साथ रहे. नौकरी छोड़कर कायकिंग के शौक को अपनाने तक, लेकिन एक दिन उनकी मां ने मज़ाक में ही कह दिया "मछुआरा ही बनना था तो आईआईटी में जाने की क्या जरूरत थी."
कुछ ऐसे ही चुनौती मार्केटिंग छोड़ साइकिल उठाने वाली शांजलि के साथ भी आई लेकिन मिसाल बनाने, दोनों कई मील निकल चुके हैं. जहां पीछे सिर्फ ये बातें याद का हिस्सा हैं. आगे कुछ कर गुज़रने की ख्वाहिश है. कच्छ से कन्याकुमारी के सफर की प्लानिंग दो साल से चल रही थी.
फिलहाल हर दिन दोनों खिलाड़ियों की सुबह 5 बजे होती है. जीपीएस पर मैप बनाने से लेकर दिनचर्या तय करने तक. वेरावल के हरे वहीं द्वारका के नीले पानी से लेकर हर दिन रास्ते में आने वाले चुनौती. फिर शाम साथ बैठकर अगले दिन की तैयारी.
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