28 और 29 जून 2012 की रात छत्तीसगढ़ के बीजापुर के सरकेगुडा (Sarkeguda Encounter) में 17 शव नहीं, गंभीर सवाल थे. 7 साल बाद इनका जवाब जस्टिस वी के अग्रवाल ने सरकेगुडा मामले की न्यायिक जांच में सामने रखा, बताया कि गांव वालों को प्रताड़ित किया गया और बाद में उन्हें काफी करीब से गोली मारी गई. ऐसा लगता है कि सुरक्षाबलों ने हड़बड़ाहट में फायरिंग की. रात में कई घंटों की कथित मुठभेड़ के बाद इनमें से हिरासत में लिए एक ग्रामीण को अगली सुबह गोली मारी गई.
7 साल बाद सारकेगुडा शांत हैं, रिपोर्ट आ गई लेकिन अपने चले गये. किसी के पैर में जख्म के निशान हैं, किसी के हाथ पर. कोई अपने झोंपड़े में बैठा है एनडीटीवी जब इस गांव में पहुंचा और लोगों से सवाल पूछे तो जवाब सिर्फ एक उम्मीद थी... न्याय की. सम्मीकारम ने परिवार के दस लोग खोये तो पुल्लया सारके उस दिन को याद करके सिहर जाते हैं. किसी तरह खुद को बटोर कर सम्मीकारम ने कहा, 'मेरे परिवार के दस लोग मार दिये, त्योहार में बैठे थे ना... पुलिस लोग आकर मार दिये.' वहीं पुल्लया सारके ने कहा, 'उस दिन बीज त्योहार के लिये जमा होकर बात कर रहे थे, पुलिसवालों ने आकर गोली चलाई, गांववाले घबरा गये घर में घुसे हैं. आधा लोग मर गये, आधा घायल हो गये. उम्मीद है अब न्याय मिलेगा.'
सात साल तक, सुनवाई बयान दर्ज करने के बाद जस्टिस अग्रवाल की इस रिपोर्ट के और कई बिंदुओं ने सुरक्षा बलों को कठघरे में खड़ा किया लेकिन कुछ सवाल अनसुलझे रहे. सामाजिक कार्यकर्ता और इस मामले में लंबी लड़ाई लड़ने वाली शालिनी गेरा ने कहा उनके पास कोई सबूत नहीं है कि वहां कोई नक्सली या सशस्त्र लोग मौजूद थे, एक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष आया है कि हर घटना के बाद पुलिस जांच होती है, इस घटना के बाद भी हुई आयोग ने कहा जो दस्तावेज पुलिस ने बनाये वो स्पष्ट रूप से फर्जी हैं उन्होंने जान बूझकर दस्तावेजों में हेराफेरी की है. एक सवाल हम सबको देखना पड़ेगा कि हर मुठभेड़ के बाद ऐसे ही पुलिस की जांच होती है, जिस हादसे में में पुलिस स्वंय दोषी है क्या उसकी हम ज़िम्मेदारी ले सकते हैं कि वो निष्पक्ष जांच करे.
उस वक्त कांग्रेस ने अपने ही तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदबंरम पर सवाल उठाये थे. आबकारी मंत्री कवासी लखमा पार्टी की ओर से जांच करने सारकेगुडा पहुंचे थे. अब वो चाहते हैं सब पर कड़ी कार्रवाई हो. उन्होंने कहा, 'मेरी मांग है कि ये (बीजेपी) सरकार लगातार बस्तर में गोली मारती थी, घर जलाते थी चाहे सारकेगुडा हो या एरसमेटा. आज सारकेगुडा का रिपोर्ट आया है. मैं बाद में मंत्री हूं, नेता हूं, पहले आदिवासी हूं, निर्दोष आदिवासी को गोली मारने वाले को उस वक्त के मुख्यमंत्री के ऊपर, गृहमंत्री के ऊपर, अधिकारी के ऊपर कार्रवाई होना चाहिये ये मेरी मांग है.'
'जब निर्दोष गांववालों पर गोलियां चलीं, उस वक्त मुख्यमंत्री थे रमन सिंह, अब विपक्ष में हैं तो उनको ज्यादा फिक्र सदन के अवमानना की है. सदन जब चल रहा है तो जो रिपोर्ट महीने भर पहले सरकार को मिली ऐसी रिपोर्ट पूरी प्रेस में लीक हो गई जो अवमानना है, बाकी जो कार्रवाई करना है सरकार करे. 2012 में कमेटी बनाई, जस्टिस अग्रवाल ने जांच की, सरकार इनकी है जो अध्ययन आया कार्रवाई करे आगे बढ़ें.'
दरअसल 28 जून 2012 की रात को सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस को नक्सलियों की मौजूदगी की सूचना मिली थी जिसके बाद उनकी टीमों ने संयुक्त अभियान शुरू किया था. सुरक्षाबलों के मुताबिक, दो टीमें बासागुडा से रवाना हुईं और तीन किलोमीटर दूर सरकेगुडा में एक माओवादी बैठक में पहुंची थीं. इस बैठक में हिस्सा ले रहे ग्रामीणों ने पुलिस वालों को देखकर उन पर गोलियां चलानी शुरू कर दी थी. जवाब में पुलिस ने भी उन पर गोलियां चलाईं. इस मामले में छत्तीसगढ़ की तत्कालीन रमन सिंह सरकार ने 11 जुलाई 2012 को न्यायिक जांच के आदेश दिए थे.
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