मध्यप्रदेश का 51वां जिला आगर मालवा... इस जिले की पहचान कई मायनों में अलग है. इसकी एक पहचान ऑर्गेनिक मेन राधेश्याम परिहार हैं. या यूं कहे कि रासायनिक खेती के तिलिस्म को चुनौती देने वाला शख्स. इस जिले की बडौद तहसील का गांव विनायगा तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क है. गांव में थोड़ा आगे चलने पर चार दिवारी के आधे पक्के घर के आंगन में राधेश्याम परिहार सुबह-सुबह योग करते दिखते हैं. करीब दो घंटे शरीर को देने के बाद हाथ में मोबाइल लिए अपनी खेती की जमीन को बाकी वक्त देने में लग जाते है .
इनके खेत में तरह-तरह के फसल देने वाले पौधे जैसे संतरा, मिर्च, धनिया, हल्दी, प्याज, कलोंजी, मूसली, सतावर, कोच, असगंध आदि दिखाई देते हैं. किसी भी गांव में खेत पर ये सामान्य स्थिति हो सकती है, मगर राधेश्याम का खेत बिलकुल अलग है. क्योंकि ये सारे उत्पाद जैविक हैं यानी पूरी तरह से रसायन मुक्त है.
खेती में अधिक पैदावार और जल्दी उत्पाद वाली किसानों की प्रतिस्पर्धा ने रसायन और कीटनाशकों के उपयोग को जिस तरह से बढ़ावा दिया है, मानव शरीर इसका शिकार हो जा रहा है. स्वास्थ्य प्रतिकूलताओं के चलते दर्जनों बीमारियां हजारों लोगों की जिंदगी को लील रही है. ये एक बड़ी चुनौती है कैसे इससे पार पाया जाए. मगर आगर मालवा जिले के बडौद तहसील के विनायगा के किसान राधेश्याम परिहार ने इस चुनौती से निपटने की ठान ली है .
घर-परिवार चलाने के लिए खेती ही सहारा
राधेश्याम खेत में काम करते हुए कहते हैं कि "बहुत थोड़े से रकबे वाली पथरीली गैर उपजाऊ बेकार पड़ी हुई कुल एक हेक्टेयर पुश्तैनी जमीन में ये सब संभव नहीं था. शिक्षा सिर्फ आठवी तक हुई थी. कम उम्र में ही खेती संभालना शुरू कर दिया था . घर-परिवार चलाने के लिए खेती ही सहारा थी. हर बार गेहूं, चना, सोयाबीन पर निर्भर रहते थे .उत्पादन इतना नही होता था की खर्च निकल जाए . ये पूरी तरह से घाटे का मामला था."
मोबाइल से सीखी जैविक खेती की पूरी देसी तकनीक
चेहरे पर हल्की मुस्कान के साथ राधेश्याम कहते हैं "आजकल की युवा पीढ़ी मोबाइल के कारण पिछड़ती जा रही है. इसका सही इस्तेमाल नहीं करती, सोशल मीडिया पर-पूरा समय बर्बाद करती है. जबकि मोबाइल इस युग में ऐसा साधन है कि दुनिया की तमाम जानकारी ले सकते हैं. जिसका उपयोग करके मैने अपनी बंजर जमीन को खेती लायक बना लिया है . जैविक खेती की पूरी देसी तकनीक मैने मोबाइल से ही सीखी और अपने खेत पर प्रयोग शुरू किया. कुछ साल पहले तो गांव में नेटवर्क भी बहुत कम मिलता था "
उन्होंने बातचीत के दौरान कहा, "हां शुरुआत में दिक्कतें रही, क्योंकि जो जमीन कई सालों से रसायन ले रही थी उसको जैविक खेती के काबिल बनाने में कम से कम चार साल लग गए. उसके बाद धीरे धीरे उत्पादन बढ़ा, फसल की क्वालिटी में सुधार हुआ और अब तो मैं फसल को अपने दाम पर बेचता हूं .आसपास की सभी मंडियों के भाव मोबाइल से मिल जाते है. अपनी समझ आए वैसे बेचो. जहां दो पैसा ज्यादा मिले अपना प्रोडक्ट दे देता हूं ." राहत वाली मुस्कान फिर से राधेश्याम के चेहरे पर दिखती है.
ऑर्गेनिक मेन राधेश्याम परिहार ने बनाया अपना खुद का ब्रांड
दरअसल, राधेश्याम ने कुल एक हेक्टेयर रकबे पर जैविक खेती की शुरुआत साल 2010 से की थी, जो अब बढ़कर सात हेक्टेयर जमीन हो गई .आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ राधेश्याम ने बाजार की नब्ज भी पकड़ ली. जैविक उत्पादों की बढ़ती डिमांड को भांपकर अपना खुद का ब्रांड मालव माटी बना लिया. इतना ही नही अपनी फर्म को रजिस्टर्ड करवा लिया और सालाना करीब एक करोड़ रुपये का टर्नओवर करते हैं और इनकम टैक्स भी भरने लगे हैं.
ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के कई फायदे
वो कहते हैं, "रासायनिक उत्पादों से जो बीमारियां होती है वो शरीर को नष्ट करती है. पंजाब जैसे राज्य में रासायनिक खेती के दुष्परिणाम हमने देखे हैं, हजारों ज़िंदगी चली गई. अब लोगों को रुझान जैविक उत्पादों के सेवन की तरफ बढ़ने लगा है. इसलिए मैने भोजन में सामान्य रूप से इस्तेमाल होने वाले अनाज, सब्जियां और मसाले को पूरी तरह से प्राकृतिक तरीके से खेती करता हूं. इसके तीन फायदे हैं. एक तो उत्पादन ज्यादा मिलता है , दाम भी ज्यादा मिलता और स्वास्थ्य को कोई नुकसान नहीं करता. हमारा परिवार भी इनका ही सेवन करता हो तो शरीर के लिए कोई खतरा नहीं है और हम सुरक्षित रहते हैं"
उन्होंने बताया कि नीम, गौत्र आदि से प्राकृतिक उर्वरक तैयार करते हैं, तो फसल में कोई नुकसान नहीं होता है और जमीन भी ज्यादा उपजाऊ होती है. जबकि रसायनों के इस्तेमाल से जमीन की उत्पादन क्षमता लगातार कम होती है. देसी खाद टॉनिक की तरह होता है.
मालव माटी ब्रांड के जरिये सालाना 1 करोड़ रुपए की कमाई
मोबाइल की तरफ इशारा करते हुए राधेश्याम ने कहा, "पिछले दस सालो मे धीरे-धीरे इस मोबाइल की मदद से हमने बाजार को सीख लिया है. जहां जैसे-जैसे जरूरत वैसा माल की सप्लाई करता हूं. मेरा ब्रांड मालव माटी बाजार में भरोसे के साथ बिकता है. GST वाला पक्का बिल भी हम देते हैं. मालव माटी ब्रांड का माल इंदौर में डी मार्ट ,जैविक सेतु, आदिदेव फार्म भोपाल, शिव ऑर्गेनिक जोधपुर, नरांग ऑर्गेनिक दिल्ली और भी कई जगह में दुकानों पर जाता है. साल में करीब करीब एक करोड़ रुपए का टर्नओवर हो जाता हैं. देश विदेश की तकनीक और मौसम की जानकारी के अलावा गूगल और यूट्यूब से सारी जानकारी मिल जाती है "
10 जिलों के किसानों को सिखाते हैं प्राकृतिक खेती की तकनीक
आपको बता दें कि राधेश्याम की पुश्तैनी जमीन, जो पहले सिर्फ एक हेक्टेयर थी अब सात हेक्टेयर हो गई है. इतना ही नहीं, घर में मोटरसाइकिल और ट्रैक्टर भी आ गया है. ऑर्गेनिक मेन राधेश्याम को लहलाते खेत सुकून के साथ-साथ सम्मान भी देते हैं. जैविक खेती की इस यात्रा में राधेश्याम अब रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं. घर की दीवार पूरी तरह से अवार्ड से भरी पड़ी है. प्रदेश ही नहीं देश के अलग-अलग राज्यों में राधेश्याम जाकर किसानों को जैविक खेती के लिए प्रेरित करते हैं. इसके साथ ही कार्यशालाओ को संबोधित करने लगे हैं. 10 जिलों के करीब बारह सौ किसानों को अपने खेत पर ही कृषक पाठशाला में प्राकृतिक खेती की तकनीक सिखाने लगे हैं.अभी उम्र पचास साल हुई है मगर ज़िद्द युवाओं वाला ही है.
सीएम शिवराज सिंह ने राधेश्याम को दिया पुरुस्कार
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इनकी इसी शानदार कोशिश के नतीजे में अवार्ड से नवाजा. प्राकृतिक खेती में प्रथम स्थान पाने वाले ऑर्गेनिक मेन राधेश्याम को साल 2021-22 के लिए जैव विविधता पर राज्य स्तरीय पुरुस्कार दिया गया. इसके अलावा धरती मित्र , कृषक सम्राट , कृषि भूषण जैसे राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय कई सम्मान प्राप्त हुए .वह इंदौर के कृषि महाविद्यालय के अलावा कई कॉलेज में जैविक खेती के गुर सिखाने जाते हैं. अब वे ऑर्गेनिक मेन के नाम से जाने जाते हैं.
ऑर्गेनिक मेन राधेश्याम की राह पर चले सैकड़ों किसान
उनकी पत्नी ,दो बेटे और एक बेटी सभी अपने खुद के उत्पाद ब्रांड मालव माटी की फूड प्रोसेसिंग और पैकिंग में मदद करते हैं. जबकि खेत और बाजार का काम राधेश्याम संभाल लेते हैं. इनसे प्रेरित होकर आसपास के इलाके में और भी दूसरे किसान जैविक खेती को अपनाने लगे हैं. जिले में करीब एक लाख अठहत्तर हजार बीघा खेती का रकबा है . राधेश्याम की तर्ज पर लगभग पांच सौ किसान जैविक खेती करने लगे हैं. इसस तरह बदलाव की बयार शुरू हो गई है.
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