मध्य प्रदेश के खंडवा में उच्च न्यायालय ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की याचिका पर 10 जुलाई को एक अहम फैसले में राज्य सरकार को आदेश जारी किए हैं. न्यायालय के इस आदेश में ओंकारेश्वर बांध प्रभावित किसानों के वयस्क पुत्रों को भूमिहीन प्रभावितों के बराबर विशेष पैकेज दिए जाने का आदेश शामिल है. न्यायालय ने कहा है कि इस संबंध में सरकार जल्द फैसला ले. यह फैसला उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ और न्यायाधीश विशाल मिश्रा की खंडपीठ द्वारा दिया गया है.
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नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल ने बताया कि प्रभावितों के लंबे जल सत्याग्रह के बाद राज्य सरकार ने 7 जून 2013 को ओंकारेश्वर बांध प्रभावितों के लिए एक विशेष पैकेज देने का आदेश दिया था. इस आदेश पर भूमिहीन परिवारों और उनके वयस्क पुत्रों को ढाई लाख रुपए का अतिरिक्त पैकेज दिया गया था. बाद में राज्य सरकार ने 31 जुलाई 2019 के आदेश द्वारा पैकेज पर 15% वार्षिक ब्याज दिया. सरकार द्वारा उच्च न्यायालय में ली गई भूमिका और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार ओंकारेश्वर बांध प्रभावित किसानों के भूमिहीन वयस्क पुत्रों को दिए जाने वाले सभी लाभ देना जरूरी है, लेकिन बार-बार मांग करने पर भी यह लाभ व्यस्क पुत्रों को नहीं दिए गए. ऐसे में इन लाभों को पाने के लिए नर्मदा आन्दोलन द्वारा उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई थी.
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नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा उच्च न्यायालय में दायर याचिका में बताया गया कि पहले की याचिका में उच्च न्यायालय में राज्य सरकार द्वारा स्पष्ट भूमिका ली गई थी कि बांध प्रभावित किसानों के वयस्क पुत्रों को भूमिहीनों को दिए जाने वाले सभी लाभ दिए जा रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने आदेश में स्पष्ट कहा था कि किसानों के वयस्क पुत्रों को भूमिहीनों के वयस्क पुत्रों के समान लाभ दिए जाना चाहिए. 10 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान नर्मदा आंदोलन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज शर्मा ने न्यायालय को बताया कि आंदोलन के प्रतिनिधि कई बार अतिरिक्त मुख्य सचिव से मिल चुके हैं और ज्ञापन दे चुके हैं, पर कोई निर्णय नहीं लिया गया. इस पर न्यायालय ने आदेश दिया कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के अतिरिक्त मुख्य सचिव और उपाध्यक्ष इस विषय में नर्मदा आंदोलन द्वारा दिए गए ज्ञापन पर जल्द से जल्द निर्णय ले.
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