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This Article is From May 11, 2022

रूस-यूक्रेन के युद्ध के चलते मध्‍य प्रदेश के गेहूं की विदेशों में मांग बढ़ी, सरकारी खरीद हुई प्रभावित..

मध्यप्रदेश का गेहूं  अफ्रीका, मलेशिया, फिलीपींस, विएतनाम,यूएई, दक्षिण अफ्रीका,बांग्लादेश के बाज़ारों में पहुंच रहा है

रूस-यूक्रेन के युद्ध के चलते मध्‍य प्रदेश के गेहूं की विदेशों में मांग बढ़ी, सरकारी खरीद हुई प्रभावित..
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत के गेहूं की मांग विदेशों में काफी बढ़ी है
भोपाल:

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के चलते कम आपूर्ति ने मध्य प्रदेश के गेहूं की पूछ-परख बढ़ा दी है.राज्य के पास 150 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा गेहूं मौजूद है जो उसकी 30 लाख टन मीट्रिक टन की जरूरत से पांच गुना है. ऐसे में इस बार सरकारी खरीद 30 फीसदी से नीचे है.किसान भी कारोबारियों के गेहूं बेचने में ज्यादा खुश हैं क्योंकि मंडियों में उसे 2,015 रुपये एमएसपी के मुकाबले 2400- 2,500 रुपये प्रति क्विंटल तक का भाव मिल रहा है हालांकि वे किसान परेशान हैं जिन्होंने सहकारी समितियों को गेहूं बेचा है क्योंकि डेढ़-दो महीने बीतने के बावजूद अभी तक भुगतान नहीं हुआ है.

जगदीश मीणा मुबारकरपुर से भोपाल की करौंद मंडी आए, 3 ट्रॉली गेहूं लाये थे.नीलामी में एमएसपी से 105 रु. प्रति क्विंटल ज्यादा पैसे मिले हैं. पैसा भी फौरन मिल गया, वो खुश हैं. जगदीश कहते हैं, 'यहां नकद पैसा मिल रहा है, इधर तुलवाओ, उधर लो. पिछली बार थोड़ी दिक्कत थी.इस बार दिक्कतें कुछ कम होंगी.इसी तरह, नर्मदा प्रसाद अहिरवार ने 50 बोरे बेचे हैं, एमएसपी से 198 रु. प्रति क्विंटल ज्यादा मिले हैं. नर्मदा कहते हैं, 'जो नसीब का हो कहीं नहीं जाता.' भगवान सिंह को भी फायदा हुआ लेकिन थोड़े दुखी हैं, क्योंकि 500 क्विंटल बहुत पहले बेच दिया था. उन्‍होंने कहा कि जो 7000 बचेंगे, इस ट्राली से डीजल डलेगा, खर्चा बचेगा. अफसोस कि 500 क्विंटल बेचा है, करीब एक लाख का घाटा हुआ है.कारोबारी कह रहे हैं, बंपर आमद है. किसान खुश हैं वो भी क्योंकि सरकार ने कृषि टैक्स की भी छूट दी है.

मंडी व्यापारी संघ के अध्‍यक्ष हरीश ज्ञानचंदानी ने कहा, 'यूक्रेन-रूस युद्ध की वजह से अपने किसान वहां सप्लाई कर रहे हैं.पोर्ट पर ज्यादा माल जा रहा है. किसानों को भरपूर फायदा मिल रहा है. हल्के से हल्का गेंहू 2000 बिक रहा है. मालवा चक्की 2100 बिक रही है. लोकमन का कलर अच्छा है 2300 बिक रही है. पहले बड़े व्यापारी नहीं होते थे, इसलिये उसको एमएसपी पर बेचना पड़ता था लेकिन इस बार उससे ऊपर बिक रहा है तो वो एमएसपी पर क्यों देगा? मप्र शासन ने कृषि टैक्स की छूट दी है, वो क्लेम कर सकता है.महुआखेड़ा से आए राधो सिंह मीणा को करौंद मंडी में तो अच्छा भाव मिल गया लेकिन सोसाएटी में बेचे गेंहू का पैसा एक महीने से नहीं आया है, कहते हैं डिफॉल्टर हो रहे हैं, परेशानियां खड़ी हो गई हैं. वे कहते हैं, ' 300 बोरी विदिशा में 7 तारीख को तुलवाया था लेकिन पैसा अब तक नहीं आया.परेशान हो रहे हैं कर्जे वाले पैसे मांग रहे हैं. बैंक से डिफॉल्टर हो रहे हैं.

मध्यप्रदेश से अभी तक 4 लाख 81 हजार मैट्रिक टन गेहूं निर्यात के लिए बंदरगाहों पर पहुंच चुका है जिसका मूल्य 700 करोड़ रु. से ज्यादा है जबकि पिछले पूरे वित्तीय वर्ष में ये आंकड़ा 1.76 लाख मीट्रिक टन था जिसकी कीमत लगभग 420 करोड़ रु. थी. 2020-21 में 0.87 लाख मीट्रिक टन जिसकी कीमत 175 करोड़ रु. थी.सरकार ने 20 लाख मैट्रिक टन गेहूं निर्यात करने लक्ष्य रखा है.निर्यात को बढ़ावा देने निर्यातकों को 1000 रुपये में प्रदेश स्तरीय एकल लायसेंस दिया जा रहा है. हालांकि इस वजह से राज्य सरकार ने अब तक सिर्फ 40 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा है जबकि पिछले साल ये 128 लाख मीट्रिक टन था.राज्‍य के सीएम शिवराज सिंह चौहान कहते हैं,'किसान भाइयों! इस समय मध्य प्रदेश का गेहूं, पूरी दुनिया में धूम मचा रहा है. कनाडा, अमेरिका और इंग्लैंड में एमपी व्हीट के नाम से. इस साल सरकारी खरीदी कम हो रही है. इसका मतलब यह नहीं कि हम खरीदना नहीं चाहते. इसका मतलब यह है कि आपको अच्छे दाम मिले. किसान को ज्यादा फायदा हो इसलिए गेहूं एक्सपोर्ट हो. हम ऐसी कोशिश कर रहे हैं. गेहूं विदेश में निर्यात कर रहे हैं ताकि पूरी दुनिया मध्य प्रदेश का गेहूं खाए.'मध्यप्रदेश का गेहूं  अफ्रीका, मलेशिया, फिलीपींस, विएतनाम,यूएई, दक्षिण अफ्रीका,बांग्लादेश के बाज़ारों में पहुंच रहा है

जानकार इसका दीर्घकालिक फायदा देख रहे हैं. राज्य को नये बाज़ार मिलेंगे. मांग-आपूर्ति का संतुलन बनेगा. विपणन की दिक्कतें कम होंगी, सरकार विपणनन के कई चैनल को पाट सकती है जिससे किसान सीधे बाज़ार से जुड़ सकता है लेकिन एक अहम सवाल है कि गेहूं की सरकारी खरीद कम होने से क्या होगा क्योंकि सरकारी खरीद का मकसद खाद्यान्न सुरक्षा और गरीबों को पीडीएस से सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध कराना है. केन्द्र ने 2020-21 में अलग-अलग योजनाओं के तहत 464.7 लाख टन गेहूं का आवंटन किया था. जिसमें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना भी थी जबकि साल 2021-22 रबी मार्केटिंग सीजन में सरकार ने 433.3 लाख टन गेहूं की खरीद की थी.अब सवाल ये तो उठता ही है कि अगर सरकार इस बार आधी खरीद करती है तो गरीबों-जरूरतमंदों को उपलब्ध कराए जा रहे गेहूं का इंतजाम कहां से होगा? 1 मई 2022 को केंद्रीय पूल में 303.46 लाख टन गेहूं था.जुलाई में सरकार के पास लगभग 575.80 लाख टन गेहूं होना चाहिए अगर ऐसा नहीं हुआ तो कहीं फिलहाल दुनिया का पेट भरने निकली सरकार को खुद के लोगों का पेट भरने के लिये गेंहू आयात ना करना पड़े.

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