मध्यप्रदेश और केंद्र सरकार के बीच टकराव की स्थिति बन रही है और मुद्दा है गेंहू. मोदी सरकार ने कमलनाथ सरकार को एक बड़ा झटका दिया है. केंद्र ने साफ कहा है कि राज्य की सारी खरीद वह नहीं उठाएगा.
मध्यप्रदेश सरकार ने किसानों से 2000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से समर्थन मूल्य पर गेंहू खरीदा. इसमें केंद्र का 1840 रुपये समर्थन मूल्य और राज्य सरकार का 160 रुपये का बोनस शामिल था. खरीदी 74 लाख मीट्रिक टन हुई. लेकिन अब केंद्र सरकार कह रही है कि वह सिर्फ 66 लाख मीट्रिक टन गेंहू लेगी.
राज्य सरकार को लगता है कि उसे बिला वजह परेशान किया जा रहा है. इस मामले में जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने कहा 'मंजूरी देने के बाद केंद्र सरकार अब उससे पलट रही है. यह मध्यप्रदेश की सरकार का नहीं किसानों का मामला है. निश्चित तौर पर सरकार को परेशान करने का मामला है. जो पूरा गेंहू है, उसे उसका भुगतान करना चाहिए.'
मध्यप्रदेश सरकार की भावांतर योजना किसानों के लिए 'भंवर' बनी
मध्यप्रदेश सरकार की तिजोरी वैसे भी खाली है, इस फैसले से उसे सीधी 1500 करोड़ रुपये की चपत लगेगी. बीजेपी कह रही है कि सरकार बहानेबाजी कर रही है, केंद्र सरकार किसान हितैषी है. बीजेपी प्रवक्ता राहुल कोठारी ने कहा कि 'बीजेपी जब तक मध्यप्रदेश में रही, जागृत रही, समय पर क्या किया जाना है, इसका ध्यान रखा. आज तबादला सरकार है, कृषि आयुक्त को हटा दिया, ऐसे में सारे मामले आचार संहिता से लेट हुए. सरकार सिर्फ बहानेबाजी कर रही है. केंद्र सरकार कभी असहयोग नहीं करती, किसानों के साथ है. कमलनाथ की सरकार 6000 के लिए किसानों की सूची तक नहीं सौंप पाई है.'
सरकार 2016 के समझौते का हवाला भी दे रही है जिसके तहत अगर कोई राज्य किसानों को बोनस देता है, तो एफसीआई केंद्रीय पूल के लिए 27 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा गेंहू नहीं खरीदेगा. मध्यप्रदेश सरकार के पास आठ लाख मीट्रिक टन गेंहू के लिए विकल्प है कि उसे खुले बाजार में बेचे, दूसरे राज्यों को बेचे या किसी योजना से उसका निपटान करे. हालांकि यह भी सच्चाई है कि शिवराज सरकार के वक्त केंद्र ने पूरे 73 लाख मीट्रिक टन गेंहू की खरीदी की थी.
VIDEO : किसानों की दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार?
हालात को देखते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ खुद केंद्र से चर्चा कर रहे हैं.
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