मालेगांव ब्लास्ट केस में मिलिंद जोशीराव का बड़ा खुलासा.
- मालेगांव ब्लास्ट केस के गवाह मिलिंद जोशीराव ने ATS पर झूठी गवाही का दबाव बनाने का आरोप लगाया.
- जोशीराव के मुताबिक, ATS ने उनको 28 अक्टूबर से 7 नवंबर 2008 तक सात दिनों से अधिक हिरासत में रखा था.
- उन्होंने किसी हिंदुत्ववादी राष्ट्र बनाने की शपथ वाली रायगढ़ की मीटिंग में शामिल होने से इनकार किया.
मालेगांव ब्लास्ट केस के गवाह मिलिंद जोशीराव (Milind Joshirao On Malegaon Blast Case) ने ATS पर झूठी गवाही देने के लिए मजबूर करने के गंभीर आरोप लगाए है. उनकी गवाही के मुताबिक, पुलिस ने उनसे उनके व्यापार और 'अभिनव भारत' संगठन के बारे में पूछताछ की थी. एटीएस (ATS) ने उनको 28 अक्टूबर 2008 से 7 नवंबर 2008 तक अपनी हिरासत में रखा. इस दौरान वे ATS के दफ्तर में ही रहे, यानी कुल 7 दिन से ज्यादा उन्हें वहीं रखा गया. हालांकि, इस पूछताछ के दौरान 'रायगढ़ मीटिंग' को लेकर कुछ भी ठोस बात सामने नहीं आई, इसलिए सरकारी वकील (SPP) ने कोर्ट से इजाजत लेकर उनकी जिरह की. लेकिन उनके बयान से कोई ऐसी जानकारी नहीं मिली जो अभियोजन के पक्ष में हो.
ये भी पढ़ें- मालेगांव ब्लास्टः CM योगी को भी फंसाने की हो रही थी साजिश, गवाह ने किया खुलासा
ATS मिलिंद से क्या करवाना चाहती थी?
जोशीराव ने साफ तौर पर किसी ऐसी मीटिंग में हिस्सा लेने की बात से इनकार किया जहां 'हिंदुत्व वादी राष्ट्र' बनाने की शपथ ली गई हो. उन्होंने कहा कि न ही ऐसी कोई मीटिंग रायगढ़ किले में हुई थी. इसके उलट, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ATS ने उनके साथ आरोपी जैसा व्यवहार किया और उन्हें जबरन 7 दिन तक अपने ऑफिस में रखा. ATS अफसर उन पर दबाव बना रहे थे कि वे 5 आरएसएस नेताओं के नाम लें.
इन 5 RSS नेताओं का नाम लेने का बनाया दबाव
उन्होंने बताया कि अफसरों ने उन्हें खासतौर पर योगी आदित्यनाथ, असीमानंद, इंद्रेश कुमार, प्रोफेसर देवधर, साध्वी, और काकाजी का नाम लेने को कहा. उनसे यहां तक कहा गया कि अगर वह इन लोगों के नाम लेते हैं, तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा. लेकिन जोशीराव ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया. इसके बाद डीसीपी श्रीराव और एसीपी परमबीर सिंह ने उन्हें डराया-धमकाया, यातना देने की धमकी दी, ताकि वे झूठे बयान दें.
ATS पर गलत बयान लिखने का आरोप
मिलिंद ने कहा कि जो बयान उनके नाम पर ATS ने लिखा, उसमें जो बातें दर्ज हैं, वो उन्होंने कभी नहीं कही थीं. वह बयान पूरी तरह ATS अफसरों ने अपने हिसाब से लिखा था. कोर्ट ने भी यह माना कि उनके बयान से ये साफ होता है कि उनसे जबरन बयान दिलवाया गया, यानी बयान स्वेच्छा से नहीं था. भले ही जांच अधिकारी उस बयान को सही मानें, लेकिन अगर बयान जबरन लिया गया हो, तो उसकी वैधता और सच्चाई पर शक किया जा सकता है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं