
महाराष्ट्र में भले ही फडणवीस सरकार ने भले ही हिंदी की अनिवार्यता वाले फैसले को वापस ले लिया हो. लेकिन हिंदी भाषा को लेकर हो रहा विवाद है कि थमता नहीं दिख रहा. महाराष्ट्र में हिंदी से जुड़ा निर्णय रद्द होने के बाद महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने नवी मुंबई में अनोखे अंदाज़ में विरोध जताया है. मनसे की ओर से जगह-जगह शोले फिल्म के मशहूर डायलॉग वाले बैनर लगाए गए हैं, जो अब चर्चा का विषय बन गए हैं.
इन बैनरों में लिखा गया है-
"कितने आदमी थे?"
"सरदार दो..."
"और तुम तीन... फिर भी वापस लौट आए... आ थू!"
मनसे ने इन डायलॉग्स के जरिए सत्ता पक्ष पर तंज कसते हुए यह संदेश देने की कोशिश की है कि मराठी अस्मिता के मुद्दे पर सरकार ने पीछे हटकर मराठियों का अपमान किया है. हालांकि, ये बैनर हिंदी में हैं, जिससे अब हिंदी विरोध के बीच हिंदी डायलॉग्स के इस्तेमाल को लेकर भी चर्चा छिड़ गई है. इस विरोध के जरिए मनसे ने एक बार फिर यह स्पष्ट किया है कि महाराष्ट्र में मराठी भाषा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और हिंदी थोपने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी.
हिंदी के विरोध में ठाकरे बंधुओं की रैली
हिंदी भाषा पढ़ाए जाने के विरोध में शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे 5 जुलाई को मुंबई में संयुक्त रैली निकालेंगे. शिवसेना (उबाठा) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने पांच जुलाई को मुंबई में ‘‘मराठी विजय दिवस'' मनाने के लिए मंगलवार को एक संयुक्त सार्वजनिक निमंत्रण जारी किया है. राज्य सरकार द्वारा स्कूलों में त्रि-भाषा नीति के आदेश को वापस लेने के बाद दोनों दलों ने पांच जुलाई को मराठी विजय दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है.
‘मराठीचा आवाज' नामक संयुक्त निमंत्रण इस कार्यक्रम की पहली आधिकारिक घोषणा है. इसमें किसी पार्टी का चिह्न या ध्वज नहीं है, सिर्फ राज्य की एक ग्राफिक छवि है. इसमें आयोजक के रूप में उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे के नाम हैं. शिवसेना (उबाठा) सांसद संजय राउत ने मंगलवार को कहा कि उनकी पार्टी के प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे रैली में भाग लेंगे.
ठाकरे बंधुओं की रैली पर संजय निरुपम का तंज
इस पर शिवसेना प्रवक्ता संजय निरुपम ने तंज कसते हुए कहा कि महानगरपालिका का चुनाव खत्म होने के साथ ही यह मुद्दा भी समाप्त हो जाएगा. ठाकरे बंधु की पार्टियां पूरी तरह से सिमट चुकी हैं.संजय निरुपम ने कहा कि जो लोग आज हिंदी भाषा का विरोध कर रहे हैं या मराठी की पुरजोर वकालत कर रहे हैं, वो ऐसा विशुद्ध रूप से राजनीतिक कारणों से कर रहे हैं, खासकर आगामी नगर निगम चुनावों के मद्देनजर. मराठी और हिंदू समाज में उनका विश्वास खत्म हो चुका है. ऐसे में उन पार्टियों को अपनी खोई हुई जमीन खोजनी है, इसलिए यह लोग मराठी का मुद्दा लेकर आए हैं. महानगर पालिका का चुनाव खत्म होने के साथ ही यह मुद्दा भी समाप्त हो जाएगा.
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